व्यंग्य-टाउनहाल पर काला साया-हर शय पर कब्जा जमाया
टाउनहाल को इस विदाई के बाद ऐसा ग्रहण लगा कि महारानी और बादशाह की हर चाहत को इस काली छाया ये मुक्ति नहीं मिली।;
भोर के समय दूध वाले की आवाज से हमारी नींद को सीजफायर वाला झटका लगा, अधखुली आंखों से हम पतीला लेकर अपनी दिनचर्या का दायित्व निभाने के लिए गेट की ओर लपके, दरवाजा खुला तो अपनी चिर-परिचित मुस्कान के साथ दूध वाला भैया सामने था, उसने तेजी दिखाई तो हमने भी तत्काल पतीला उसके हाथों में थमाया, उसने कैन में मापक यंत्र घुमाया और पतीला दूध से भरा नजर आया। इसमें दूध की मात्रा जो थी सो थी, लेकिन जीवन के आधार जल ने अपनी भरपूर उपस्थिति दर्ज कराने का साक्ष्य जरूर दे दिया।
भैया जी को हाय-बाय के बाद हमने दरवाजा सरकाया और उससे झांकते अखबार को बगल में दबाने के बाद रसोई की तरफ लपके, दूध का केस सुलटा, तो फिर ताजा तरीन, मिर्च मसाले से भरपूर खबरों को वाचने के लिए मन बैचेन हुआ, हम बालकनी पहुंचे कुर्सी जमाई और अपनी कजरारी आंखे अखबार पर जमाई, देश विदेश का हो हल्ला समझने के बाद पन्ना पलटा ही था कि चटोरों के सत्यानाश की खबर ने हिला दिया, हैडिंग था-शहरी चटोरों की शामत आई, चाट बाजार हट गया भाई, हटाने के कारण पर गौर किया तो खबरीलाल की पड़ताल वाली खबर से पता चला कि महारानी और बादशाह टाउनहाल की बदहाली से नाराज है तो उनकी इच्छानुसार टाउनहाल की खूबसूरती बढ़ाने के लिए रानी के कलम दवात से निखरकर सामने आई एक शाही फरमान वाली चिट्ठी की आधी ने चटोरों का ठिया उसी अंदाज में हवा में उड़ा दिया, जैसे एक कस्बे से गुजरते हाईवे पर बने मंडप को आकाशीय बिजली ने यहां से वहां बिखेर दिया। इस मंडप की सामग्री को यहां-वहां से मिल गई, लेकिन भैया चटोरों को टाउनहाल से चली हवा में उड़ी चाट के स्वाद को तलाशने के लिए न जाने कहां से कहां तक भटकना पड़ रहा है।
अभी इस चटपटी चाट को लेकर खबरीलाल के मसालेदार चिली पटेटो तक ही हम पहुंच पाये थे कि चचा मुकन्दा की समस्याग्रस्त साइकिल की आवाज से ध्यान भंग हुआ। हमने यहां-वहां ताका और बालकनी सी नीचे झांका तो देखा कि चचा सिर से लेकर पांव तक काले लिबास में थे, हाथ में झाड़ू तो दूसरे हाथ में मिर्च, सिंदूर, नींबू और न जाने क्या टोटका लिये हुए साइकिल को संभालकर गुपचुप निकलने की फिराक में थे। हमने आवाज लगाई, चचा ने भी ऊपर मुंडी घुमाई और हिरनी जैसी आंखों को घूरा, पूछा तो बताया कि आज वो किसी खास खूफिया मिशन पर हैं। ज्यादा पूछते, इससे पहले ही चचा मुकन्दा साजो-सामान के साथ अपनी साइकिल का हैंडल संभालते हुए राफेल की तेजी के साथ अपने ऑपरेशन नींबू सिंदूर पर निकल पड़े। हम भी उठे और अखबार समेटकर सैर पर निकल लिए। देवी अहिल्याबाई होलकर के दर्शन के बाद शिव चौक पहुंचकर चाय की चुस्की का आनंद लिया और टाउनहाल रोड की ओर कदम बढ़ाया ही था कि झांसी की रानी पार्क में लोगों का एक बड़ा हुजूम नजर आया। हमने रफ्तार तेज कर ली। अंदर क्या चल रहा था, नजर नहीं आया तो हमने राजनीतिक कार्यकर्ता की तरह कोहनियों को संभाला और उनके बल पर चीरते-फाड़ते मुख्य मंच तक पहुंचने में कामयाब हो गये। सामने का नजारा चौंकाने वाला था, क्योंकि वहां तो चचा मुकन्दा टाउनहाल की तरफ मुंह करके अपनी धूनी जमाये बैठे थे। हम भी वहीं बैठ गये, जब तक चचा की आंखें खुली भीड़ निकल चुकी थी।
हमारी उत्सुकता बढ़ी थी, हमने तपाक से सवाल कर दिया कि चचा माजरा क्या है, अब चचा ने खामोशी तोड़ी और बोले, शहर की महारानी और बादशाह के शाही मिजाज को एक काले साये की नजर लग गई, बस नजर-ए-बद का ही उपचार करने के लिए आज हम ऑपरेशन नींबू सिंदूर पर निकले हैं, ताकि भारत रत्न चौ. चरण सिंह और महानायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जैसे हस्तियों के साये में खिलखिलाते टाउनहाल में फिर बहार लौट आये। टाउनहाल में काला साया!, हमारा चौंकना भी लाजिमी था। अब तो पूरा माजरा समझने के लिए हम भी वहीं पर धूनी जमाकर बैठ गये और चचा मुकन्दा के हवन में आहुति देनी शुरू कर दी। चचा से बातों का सिलसिला आगे बढ़ा, चचा बोले-भैया अल्लाह-अल्लाह करके इस काले साये को चादर ओढ़ाकर, घंटा-घड़ियाल और धूप से बचने के लिए छाता-छतरी देकर टाउनहाल से विदा किया था, इस विदाई के बाद सभी ने राहत की सांस ली कि चलो भाई अब तो यहां सवेरे होगा और काली घटा छट जायेगी, लेकिन काला साया तो कुकरमुत्ते के तरह यहां पर जड़ ही जमाकर बैठ गया।
चचा ने ताव खाकर कहा, निखरते, संभलते और चहकते टाउनहाल को इस विदाई के बाद ऐसा ग्रहण लगा कि महारानी और बादशाह की हर चाहत को इस काली छाया ये मुक्ति नहीं मिली। काले साये ने महारानी को सताने के लिए रानी को अपने प्रभाव में ऐसा लिया कि बादशाह भी परेशान हो गया और प्रजा में त्राहिमाम हो गया। महारानी ने जुगाड़ भिड़ाया और हवन कराया तो काले साये की जड़े कुछ हिली, लेकिन भैया मिजाज से बड़े से बड़े बाबूजी वाली ये आत्मा तो खुुट्टा गाड़के बैठ गी। महारानी का हवन अपना असर दिखाता पता तो काला साया एक जनप्रतिनिधि का ऐसा ताबीज लाया, जिससे उसका प्रभाव और बढ़ गया, भैया अब तो टाउनहाल से छोले भठूरे वाली गली तक काला साया लहराता, इठलाता और चहल-कदमी करता दिखाई भी देने लगा है। चचा ने कान तक आकर धीरे से कहा, लोगों में इस साये के कारण भय है, क्योंकि चटोरो का ठिया दरबदर होने के बाद रानी के सहारे इस काले साये ने चाय की चुस्की भी बंद करा दी है। मजे की बात तो यह है कि काले साये से बड़ी सरकार भी डरी हुई है, चरना चाय वाले के राज में किसी चाय वाली का उत्पीड़न हो जाये, किसकी मजाल है, पर भैया पूरा हाल ही बेहाल है। काले साये का प्रभाव तो ऐसा है कि वो काली सूची के घेरे में फंसे लोगों को भी गांधी जी के आशीर्वाद से बाहर निकालने की शक्ति रखता है।
हमने कहा, चचा जब यह काला साया इतना शक्तिशाली है तो तुम इस बुढ़ापे में उसका क्या इलाज कर दोगे, घर चले जाओ, कहीं तुम्हारी हड्डियां उससे जोर आजमाइश में कीर्तन न करने लगे। चचा मुकन्दा को ताव आ गया, अपने नामूछिया चेहरे पर तांव देते हुए बोले-महारानी को इस काले साये के प्रभाव से बचाने के लिए ही मैंने झांसी की रानी पार्क में यह ऑपरेशन नींबू सिंदूर शुरू किया है, जाकि काले साये की उड़ान को टाउनहाल से छोले-भठूरे वाली गली के बीच रोका जा सके। वरना तो भैया महारानी तो शाही मिजाज वाली हैं, वो संभल जायेंगी, पर बेचारी रानी की जान आफत में आ सकती है। बादशाह भी परेशान है, तो ऐसे में नागरिक दायित्व निभाने के लिए ही मैं इस ऑपरेशन के लिए समर्पित हो गया हूं।
हम बोले चचा-आपके इस ऑपरेशन का कुछ असर हुआ भी या नहीं, हो तो रहा है, भाई-अभी काले साये ने टाउनहाल से पंजाब तक की दौड़ लगाई और अपनी काली शक्तियों का प्रभाव कम देखकर भूत-प्रेत एक्सपर्ट से सारी जांच कराई। उसमें शक्तियां कुछ कमजोर होने की बात सामने आई। इसी चर्चा के बीच चचा तेजी से उठे और पेड़ की ओट लेकर छोले भठूरे वाली गली में झांका, वापस आकर बोले काला साया रानी तक पहुंचने के लिए उड़ान भर रहा है, ये किसी का विकेट न गिरा दे, इससे पहले ही इसका इलाज करना होगा, इतना कहते ही चचा मुकन्दा झांसी की रानी का जयकारा करते हुए फिर से ध्यानमग्न हो गये और हमने भी अपने घर की राह पकड़ ली। ....इति सिद्धम