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धर्मनगरी देवबंद में धूमधाम से मनाया गया आचार्य श्री 108 अरुण सागर जी महाराज का 63वां अवतरण दिवस

धर्मनगरी देवबंद में धूमधाम से मनाया गया आचार्य श्री 108 अरुण सागर जी महाराज का 63वां अवतरण दिवस
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उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर के धर्मनगरी देवबन्द में श्री दिगंम्बर जैन पारसनाथ मंदिर जी सारगवाड़ा अतिथि भवन में विराजमान आराध्य धाम प्रेरणाता आचार्य श्री 108 अरुण सागर जी महाराज का 63वां अवतरण दिवस सकल जैन समाज व वर्षायोग समिति द्वारा बड़े ही हर्ष उल्लास के साथ मनाया। प्रातः बेला में समाज द्वारा श्रीजी का अभिषेक ,शांतिधारा , भक्तामंर विधान-पूजन कर व आचार्य श्री 108 पुष्पदंत सागर जी महाराज का अर्ध चढ़ाकर आराध्य धाम प्रणेता आचार्य श्री 108 अरुण सागर जी की भक्ति के साथ महाराज श्री के चरणो का पद प्रक्षालन ,पूजा-अर्चना व आरती की गई। समाज द्वारा आचार्य श्री 108 अरुण सागर जी महाराज के 63वें अवतरण दिवस पर शास्त्र भेंट किया गया। शाम की बेला में आचार्य श्री की गुरु भक्ति में आरती के थाल प्रतियोगिता , आचार्य श्री के परिचय पर प्रश्नमंच का आयोजन किया जायेगा। वर्षायोग समिति ने आचार्य श्री 108 अरुण सागर जी महाराज का जीवन परिचय प्रकाश डालते हुए कहा कि महाराज श्री का पूर्व नाम राजेश जैन, जन्म 23 जुलाई 1963 को सहजपुर ,जिला जबलपुर (मध्य प्रदेश) मे पिता श्री बाबूलालजी जैन, श्रीमती शांति देवी जैन के परिवार में हुआ। इन्होंने ग्रह त्याग 12 अप्रैल 1986 इंदौर (मध्य प्रदेश) में किया। इन्होने क्षुल्लक दीक्षा 20 जुलाई 1988 वागीदौरा(राज.) , मुनि दिक्षा 18 अप्रैल 1989 को पावन पर्व महावीर जयंती के दिन (परतापुर राज.) व आचार्य पद 23 जनवरी 2022 पुष्पगिरी तीर्थ (मध्य प्रदेश) मे आ.प. पू. वात्सल्य दिवाकर आचार्य श्री 108 पुष्पदंत सागर जी महाराज से ली। इनका वर्ष 2002 में धर्मानगरी देवबन्द मे मुनि पद पर रहेकर वर्षायोग किया था। अब पुन: दूसरी बार वर्ष 2025 मे इनका आचार्य पद पर रहेकर हमे वर्षायोग का सौभाग्य से प्राप्त हुआ।महाराज श्री ने अपने अवतरण दिवस पर दिए गए प्रवचन में कहा की स्वयं को पहचानने, कर्मों से मुक्ति पाने, और अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, और अपरिग्रह जैसे जैन सिद्धांतों का पालन करने पर जोर दिया।



उनके प्रवचनों का मुख्य विषय

आत्म-साक्षात्कार:

आचार्य श्री ने श्रोताओं को स्वयं को आत्मा के रूप में पहचानने और अपनी वास्तविक प्रकृति को समझने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि आत्मा, आनंद, ज्ञान और शक्ति का भंडार है, और यह जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पा सकती है। उन्होंने कर्मों के फल से बचने के लिए, व्यक्ति को अच्छे कर्म करने चाहिए और बुरे कर्मों से बचना चाहिए। बाहरवें दिन का भक्तांमर विधान श्री महेंद्र कुमार जैन द्वारा कराया गया। इस अवसर पर अनुज जैन ,सुबोध जैन ,अजय जैन ,रविंद्र जैन ,अंकित जैन ,मुकेश जैन,अर्चना जैन,सविता जैन,सुनीता जैन,ऊषा जैन सहित समस्त सकल जैन समाज उपस्थित रहा।

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