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वीर सावरकर के हिंदुत्व की परिभाषा

वीर सावरकर के हिंदुत्व की परिभाषा
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*भारत माता के महान सपूत वीर सावरकर की हिंदुत्व की परिभाषा का विश्लेष्ण- अशोक बालियान, चेयरमैन, पीजेंट वेलफ़ेयर एसोसिएशन*

आज भारत के महान क्रांतिकारी, दृढ़ राजनेता, ओजस्वी वक्ता व समर्पित समाज सुधारक श्री विनायक दामोदर सावरकर की जयंती पर हम उनको शत्-शत् नमन करते है। उनका जन्म आज ही के दिन 28 मई 1883 को नासिक के ग्राम भागुर में हुआ था।

सन 1906 में सावरकर कानून की पढ़ाई करने के लिए लंदन चले गए थे। वहां उनकी गतिविधियां देखकर ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें 13 मार्च 1909 को गिरफ्तार कर लिया गया था। उन पर भारत में भी मुकदमे चल रहे थे, इसलिए उन्हें मोरिया नामक पानी के जहाज से भारत लाया जा रहा था।

10 जुलाई 1909 को जब जहाज मोर्सेल्स बंदरगाह पर खड़ा था, तो वे समुद्र में कूद गये और तैरकर तट पर पहुंच गये थे। उन्होंने स्वयं को फ्रान्सीसी पुलिसकर्मी के हवाले कर दिया था, लेकिन तत्कालीन सरकार ने उन्हें फ्रांसीसी सरकार से ले लिया था और तब यह मामला हेग न्यायालय पहुंच गया था। जहां उन्हें अंग्रेज शासन के विरूद्ध षड़यंत्र रचने तथा शस्त्र भेजने के अपराध में आजन्म कारावास की सजा सुनाई गई थी। उनकी सारी सम्पत्ति भी जब्त कर ली गई थी।

वीर सावरकर को दो बार आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। उसी दौरान उनकी मुलाकात आरएसएस के संस्थापक डॉ. हेगडेवार से हुई थी। उनसे हुई मुलाकात ने उन्हें हिन्दू समाज की उन्नति के लिए कुछ कर गुजरने का लक्ष्य दिया था।

सावरकर ने अंडमान के जेल में काला पानी की सजा पाए राजनीतिक कैदी बतौर जब पैर रखा था, तो वह हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रबल पक्षधर थे। सावरकर की हिंदुत्व की परिभाषा वास्तव में हिंदू-मुस्लिम एकता का ही समर्थन करती थी, उन्होंने जब अंडमान के जेल से बाहर कदम रखा था, तो वह हिंदू राष्ट्र के पक्षधर हो गए थे। सन 1921 में उन्हें अंडमान से रत्नागिरि जेल में भेज दिया गया था। सन 1937 में वहां से भी मुक्त कर दिये गये थे।

जेल से मुक्त होने के बाद उन्होंने हिंदुत्व की परिभाषा देते हुए कहा कि इस देश का बाशिंदा मूलत: हिंदू है। इस देश का नागरिक वही हो सकता है, जिसकी पितृ भूमि, मातृ भूमि और पुण्य भूमि यही हो। यहाँ के मुस्लिमों के पूर्वज हिन्दू थे, इसलिए यहाँ की मातृ भूमि भी इनकी उतनी ही है, जितनी हिन्दुओं की है।और उनको भी अपने पूर्वजों को मानना चाहिए।

वीर सावरकर का व्यक्तित्व विशेषताओं से भरा था। उन्होंने देशवासियों को राष्ट्र निर्माण के प्रति खुद को समर्पित करने के लिए प्रेरित किया। वीर सावरकर को उनकी बहादुरी और ब्रिटिश राज के खिलाफ उनके संघर्ष के लिए जाना जाता है,लेकिन इन सबके अलावा वे ओजस्वी कवि और समाज सुधारक भी थे।

वीर सावरकर किसी के भी तुष्टीकरण के खिलाफ थे। उनके अनुसार गलत तुष्टीकरण की नीति आदमी की भूख को और बढ़ाती जाती है, फिर जिसका घातक परिणाम सभी को भोगना होता है। भारत माता के इस महान सपूत ने आमरण अनशन का सहारा लेते हुए 26 फरवरी 1966 में अपनी अंतिम सांस ली थी। हम महान देशभक्ति वीर सावरकर को उनकी जयंती पर नमन करते हैं।

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