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आक्रमण कारी सिर्फ शत्रु होता है : अशोक बालियान

आक्रमण कारी सिर्फ शत्रु होता है : अशोक बालियान
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मुजफ्फरनगर । किसान नेता अशोक बालियान का कहना है कि विदेशी आक्रमणकारी सिर्फ शत्रु होता है चाहे उसका मजहब कोई भी हो। उन्होंने कहा कि हम सब भारतीयों की पहचान हमारे पूर्वजों से हैं, चाहे वे हिन्दू हो या मुस्लिम हो। इस बात को इंडोनेशियाई मुसलमान समझतें हैं और जागृति की ऐसी ही लहर मिश्र, तुर्की, ईरान आदि मुस्लिम मुल्कों में भी आई थी, जो उन्हें आक्रांता और पूर्वज के बीच फर्क करना सिखलाता है।

उनका कहना है कि धर्म-परिवर्तन अपनी परंपराओं और पूर्वजों से कटना नहीं है। हमारा अतीत हमें एक साथ जोड़ता है। हमारी धार्मिक आस्था चाहे कोई भी हो, लेकिन हम सभी एक ही परंपरा के उत्तराधिकारी हैं। भारतीय उपमहाद्वीप के दो बड़े समुदायों के बीच एकता का सबसे बड़ा आधार यही है। भारतीय उपमहाद्वीप का मुसलमान रंग, नस्ल और पूर्वज परंपरा से सिर्फ और सिर्फ भारतीय है। इस्लाम कबूल करने से वो न तो अरब हो सकता है, न तुर्क और न ही ईरानी और न ही अपना पूर्वज बदल सकता है। भारत में कुछ सौ साल पहले कुछ लोगों ने अपनी पूजा पद्धति बदल ली थी, पर इनका मूल तो हिंदू ही था। ये भी उन्हीं हिंदुओं की संतानें हैं, जिनके वंशज होने का दावा यहां के सनातन धर्माबलंबी करतें हैं। सवाल ये है कि क्या पूजा-पद्धति की तब्दीली से पूर्वज भी बदल जातें हैं? उत्तर नहीं में आता है। यह बात भी तो समझने की है कि आज अगर कोई हिन्दू है या मुस्लिम है जो अपने पूर्वजों की वजह से ही है। अपने पूर्वजों को याद करने व उनके लिये दुआयें करने की पुनीत परंपरा दुनिया के प्रायः हर मजहब में है। हिंदू अपने पूर्वजों के लिये पिंड दान करता है, तो मुसलमान शबे-बरात में कब्रिस्तान जाकर उनके लिये दुआयें करतें हैं। यह भाव सभी भारतीय मुसलमानों के मानस में भी जागृत हो तो, यह न केवल खुद उनके बल्कि सारे मुल्क के हित में होगा। दुनिया का कोई भी स्वाभिमानी मुल्क अपने किसी भी नागरिक को यह अनुमति कभी नहीं देगा कि वह अपने मुल्क के राष्ट्रनायकों और महापुरुषों को छोड़कर किसी दूसरे मुल्क से आये बर्बर हमलावरों को अपने नायक के रुप में देखे और उनके प्रति श्रद्धाभाव रखे।

उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यवश हमारे मुल्क में कुछ लोग कट्टरपंथियों के बहकाबे में आने के कारण ऐसी मानसिकता रखतें हैं। ऐसी मानसिकता रखने वाले लोग अपनी इस सोच के कारण आज तक इस मुल्क की परंपराओं के साथ समरस नहीं हो पायें हैं, जिसकी परिणति देशवासियों के बीच वैमनस्य और अविश्वास के रुप में दिखती है। उनकी ऐसी सोच का आधार उनका और आक्रमणकारियों का एक मजहब का होना है। ऐसी सोच रखते हुये वो भूल जातें हैं कि हमारी पहचान हमारे वतन से है, और उस पर आक्रमण करने वाला कोई भी हो, वह हमारा शत्रु है, चाहे उसका मजहब कोई भी हो। दुनिया में हर मुल्क पहले अपने वतन के हितों को तरजीह देता है। भारत में विदेशी आक्रमणकारियों को साथ सहानुभूति रखने और उन्हें अपने नायक के रुप में देखने की सीख यहां के लोगों को उनके मजहब के कट्टरपंथी देतें हैं। कट्टरपंथियों के बहकाबे में आकर कुछ लोग भूल जाते है कि जिन्हें उनके मजहबी रहनुमा नायक और आदर्श के रुप में पेश कर रहें हैं वो सिर्फ और सिर्फ आक्रमणकारी थे। यह भी सच है कि विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारी शासक यहां के धर्मान्तरित मुसलमानों को तुर्क और मंगोल खून का न होने के कारण हेय दृष्टि से भी देखते थे। मुगल शासक बाबर का जन्म वर्तमान उज्बेकिस्तान के फरगना घाटी में हुआ था। भारत में इसे मुगल वंश के संस्थापक के रुप से जाना जाता है। दशकों तक चला रामजन्मभूमि विवाद इसी बाबर के द्वारा श्रीराम जन्म स्थान पर बनवायी गयी मस्जिद की परिणति थी। बाबर को उसके मरने बाद काबुल में दफनाया गया था, पर काबुल वासियों ने कभी भी उसे आदर्श या नायक रुप में नहीं देखा है। क्योंकि उनकी नजर में वो सिर्फ एक आक्रांता था, जो मध्य एशियाई मुल्क से उनके वतन को रौंदने आया था।

बालियान ने कहा कि उत्तर मुगलकालीन शासकों के शासन काल में मराठों के अतिरिक्त भारत में सिक्खों, राजपूतों, जाटों तथा रुहेलों के रूप में अन्य शक्तियाँ भी राज कर रही थीं। इन्होने अपनी स्वतन्त्र सत्ता स्थापित कर ली थी और हमेशा मुगलों की संप्रभूता की अवहेलना की थी। विदेशी मुगल शासक हमेशा भारतीय मुसलमानों की बजाए अपने हमवतन तुर्कों, अफगानों व मुगलों को ही स्थान देते थे। इन सभी तथ्यों की पुष्टि इन आक्रांताओं के जीवन और कार्यों के निष्पक्ष आकलन करने से हो जाती है। मुगल साम्राज्य के पतन के बाद अंग्रेजो ने भारत पर राज किया। और वर्ष 1947 में भारत विदेशी गुलामी से आज़ाद हुआ था। भारत में पल्लवों, शकों और हूणों की घुसपैठ अल्पकालीन सिद्ध हुई थी। हमारी पहचान हमारे महान पूर्वजों से हैं और श्रीराम जन्म भूमि के बाद काशी, मथुरा और विश्वनाथ मंदिर विवादों का समाधान भी इस मानसिकता परिवर्तनों में है। हमारी राय में ये विदेशी हमलावर शासक बर्बर आक्रमणकारी थे, जिनका एकमात्र उद्देश्य यहाँ शासन करना और अपना स्वार्थ साधना था। इसलिए हमे यह समझना चाहिए कि विदेशी आक्रमणकारी सिर्फ शत्रु होता है चाहे उसका मजहब कोई भी हो। हमारी पहचान हमारे महान पूर्वजों से हैं।और हमारे हिंदू व मुस्लिमों के पूर्वज एक है।

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