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ऐतिहासिक धरोहर है रायमल जाट की समाधि

ऐतिहासिक धरोहर है रायमल जाट की समाधि
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मुज़फ्फरनगर । जिले के ग्राम पलडा में स्थित जमींदार रायमल की समाधि का संरक्षण करने के लिए अशोक बालियान, चेयरमैन, पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने मांग की है।

उन्होने कहा कि सर्वखाप पंचायत सोरम के रिकार्ड के अनुसार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जनपद मुज़फ्फरनगर में कुछ पठान परिवार वहां आपसी लड़ाईयां होने के कारण अफगानिस्तान से साल 1606 में हसन खां व सिजावल खां के साथ पलडी गाँव जिसका नाम पालमपुर था वहां आये थे। पालमपुर गाँव के जमींदार रायमल ने इन्हें कुछ भूमि दे दी थी, जिससे इन्होने इस जगह बसी गाँव बसाया था।

जमींदार रायमल की मृत्यु के बाद जमींदार रायमल की समस्त सम्पत्ति हसन खां व् सिजावल खां को मिल गई थी और जमींदार रायमल के गांवों को मुस्लिम पठानों के बारा बस्ती कहा जाने लगा था। जनपद मुज़फ्फरनगर के ग्राम पलडा में स्थित समाधि जमींदार रायमल की है। ये पठान ज्यादातर दाउदजई (यादगारे साल्फ़) और लोदी जनजाति के हैं। भारत में धर्मांतरण के समय भी बहुत से हिन्दुओं द्वारा पठान समुदाय में शामिल होने का भी पता चलता है।

भारत मे कुछ पठान हिन्दू धर्म का पालन भी करते हैं, जो काकोरी क़बीले से तालुक रखते हैं, ये लोग पहले अफ़ग़ानिस्तान से पाकिस्तान में बसे, और साल 1947 में बंटवारे के वक़्त इनको भारत का रुख़ करना पड़ा था। हिंदू पठान इस्लाम आने से पहले अफगानिस्तान में कंधार के वनों में रहते थे और इस्लाम आने के बाद बहुत सारे लोगों का इस्लाम में कन्वर्जन हुआ था।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में मुस्लिम धर्म के विभिन्न समुदाय निवास करते हैं। पठान (पश्तून) उन्हीं समुदायों में से एक है। भारत में पठान समुदाय का प्रवास 11 वीं और 12 वीं शताब्दी में शुरू हुआ था।

अलीगढ़ से सहारनपुर तक और आसपास के गांवों में पठान आबादी के साथ-साथ कुछ और समुदाय विशेष रूप से मुस्लिम राजपूत, मुस्लिम गुर्जर, गाड़े, और मुले जाट समुदाय निवास करते हैं। इनके पूर्वज हिन्दू है और इनका औरंगजेब के समय में धर्मांतरण हुआ था। मेरठ जिले में पठानों के यूसुफजई और गौरी जनजाति के लोग सबसे अधिक संख्या में हैं। इसके आलावा, जिले में अन्य पठान जनजातियों में ककर, तारेन, बंगश और अफरीदी समूह शामिल हैं।

जनपद मुज़फ्फरनगर के ग्राम पलडा में स्थित जमींदार रायमल के समाधि का संरक्षण होना चाहिए। इस सम्बन्ध में हमारी खोज जारी है।हर देश के इतिहास का बड़ा हिस्सा लिखित रेकार्ड पर नहीं, बल्कि इसी प्रकार की मौखिक परंपराओ के माध्यम से भी जिन्दा रहता है।

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