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भाकियू-अ करेगी केंद्र सरकार के निर्णय का विरोध: धर्मेन्द्र मलिक

भाकियू-अ करेगी केंद्र सरकार के निर्णय का विरोध: धर्मेन्द्र मलिक
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मुजफ्फरनगर। आज भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक के राष्ट्रीय प्रवक्ता धर्मेन्द्र मलिक ने केन्द्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र सिंह यादव को पत्र लिखकर जीएम सरसों को स्वीकृति न देने का आग्रह किया। पत्र में कहा गया कि जीएस सरसों को स्वीकृति देने का एक भी तथ्यात्मक अध्य्यन नहीं हैं। यह केवल बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का भ्रमजाल हैं। जीएम सरसों से किसानों का नहीं बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का लाभ होगा। यह बीटी कॉटन में भी साबित हो चुका है।

राष्ट्रीय प्रवक्ता धर्मेन्द्र मलिक ने पत्र में लिखा की भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक किसानों की एक प्रतिनिधि संस्था है। हम आपके संज्ञान में लाना चाहते हैं कि जीएम सरसों के बारे में देश का किसान कोई जानकारी नहीं रखता है। हालांकि यह कुछ वर्षों से चर्चा में जरूर है। जीएम सरसों के बारे में उत्पादन और कीट न लगने का जो दावा किया गया है वह बीटी कॉटन में पूरी तरह से झूठ साबित हुआ हैं। देश में सबसे अधिक किसानों की आत्महत्याऐं बीटी कॉटन के क्षेत्र में हुई हैं। देश में निजी कम्पनियां बीज के क्षेत्र में एकाधिकार स्थापित करना चाहती हैं। कृषि के क्षेत्र में निजी कम्पनियों के अध्य्यन एवं दावों पर भरोसा करना उचित नहीं है। देश में अगर यही काम भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा किया जाता तो किसान इसको लेकर विश्वास कर सकता था। निजी कम्पनियों की प्रजातियों से धीरे-धीरे किसानों के हाथ से बीज निकल रहा है और निजी कम्पनियां बीज बेचकर मालामाल हो रही हैं। इससे देश की मधुमक्खी पालकों की जीविका भी प्रभावित होगी क्योंकि पर-परागण से इसके लक्षण शहद के अन्दर भी पाएं जाएंगें। जीएम सरसों से होने वाले प्रभाव के बारे में कोई विस्तृत शोध भी नहीं किया गया है। इसका मानव स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव होगा इसका भी कोई तथ्यात्मक अध्य्यन नहीं किया गया है। देश में डीएमएच11-1,2,3 सहित अधिक पैदावार वाली प्रजाति पहले से ही उपलब्ध हैं। केवल उत्पादन के दावे के आधार पर इसकी अनुमति उचित नहीं हैं। देश में पहले ही फसलों में प्रयोग कीटनाशक के जरिये कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां बढ़ रही हैं। जीएम सरसों से बने खाद्य तेलों या सरसों के साग के साथ कीटनाशक के रूप में देश के नागरिक जहर खाने को मजबूर होंगे। 1986 में शुरू हुए खाद्य तेल तकनीकी मिशन से 1993-94 तक देश में जरूरत का 97 फीसदी तिलहन उत्पादित होने लगा था। सरकारों की गलत आयात नीतियों के कारण अब हम 60 फीसदी से अधिक तेल का आयात करने लगे हैं। इससे स्पष्ट है कि किसानों के लिए तिलहन उत्पादन फायदेमंद नहीं रहा। यह केवल बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को मायाजाल हैं।

आपसे आग्रह है कि आप इसमें अवलिम्ब हस्तक्षेप कर जीएम सरसों के बीज को व्यावसायिक अनुमति दिए जाने से रोकने का कष्ट करें। इसके लिए देश का किसान आपका आभारी रहेगा।

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