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फागुन मास की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि के रूप में पूजने की परम्पराः पं. संजीव शंकर

महामृत्युंजय सेवा मिशन अध्यक्ष पंडित संजीव शंकर ने बताया कि वैसे तो प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि मास शिवरात्रि कहलाती है, परंतु फागुन मास में पढ़ने वाली शिवरात्रि को ‘महाशिवरात्रि’ के रूप में पूजने की परंपरा है।

फागुन मास की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि के रूप में पूजने की परम्पराः पं. संजीव शंकर
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मुजफ्फरनगर। महामृत्युंजय सेवा मिशन अध्यक्ष पंडित संजीव शंकर ने बताया कि वैसे तो प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि मास शिवरात्रि कहलाती है, परंतु फागुन मास में पढ़ने वाली शिवरात्रि को 'महाशिवरात्रि' के रूप में पूजने की परंपरा है। महाशिवरात्रि को चतुर्दशी तिथि प्रदोष व्यापिनी लेनी चाहिए। अतः चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 11 मार्च को दोपहर 2 बजकर 39 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 12 मार्च को दोपहर 3 बजे बजकर कर 2 मिनट तक रहेगी। महाशिवरात्रि का निशीथ काल 11 मार्च को रात 12 बजकर 6 मिनट से 12 बजकर 55 मिनट तक रहेगा। महाशिवरात्रि पर्व क्योंकि रात्रि में मनाया जाने वाला पर्व है। अतः चारों पहर का पूजन महाशिवरात्रि को विशेष मान्यता

पहला प्रहर- 11 मार्च, शाम 06 बजकर 27 मिनट से 09 बजकर 29 मिनट तक।

दूसरा प्रहर- 11 मार्च, रात 9 बजकर 29 मिनट से 12 बजकर 31 मिनट तक।

तीसरा प्रहर - 11 मार्च, रात 12 बजकर 31 मिनट से 3 बजकर 32 मिनट तक

चैथा प्रहर- 12 मार्च, सुबह 03 बजकर 32 मिनट से सुबह 06 बजकर 34 मिनट तक

शिवपूजन की त्रिवेणी- भगवान शिव की पूजा आराधना करने के लिए कण्ठ में रुद्राक्ष, मस्तक पर त्रिपुंड व मुख में शिव नाम, शिवपूजन की त्रिवेणी कहीं गई है इसके अलावा शिव पुराण का पाठ, महामृत्युंजय मंत्र का जप, पंचाक्षर मंत्र ऊँ नमः शिवाय का जप या फिर शिव नाम का जप अति कल्याणकारी है।

शिवरात्रि पूजनः- साधारण जल से ही प्रसन्न होने वाले भगवान शंकर का पूजन भी अत्यंत ही सामान्य पत्र-पुष्पं से किया जाता है आके के,धतूरे के कनेर के पुष्पों से बेलपत्रो से पंचामृत (दूध,दही, शहद,घी, गंगाजल) से भगवान शिव का पूजन पूर्ण रूप से स्वीकार्य है। महाशिवरात्रि की रात्रि, पूजा पाठ के अनुसार प्रदोष अर्थात त्रयोदशी की रात्रि को निराहार रहकर चतुर्दशी को व्रत करना चाहिए।

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