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ये सरकारी अस्पताल है जनाब!-कोरोना काल में महामारी को दावत दे रही भीड़

जी हां, यह जिले का सरकारी अस्पताल ही है, जहां कोरोना संकट के भय के कारण ओपीडी भवन बंद है, चिकित्सक मास्क, सेनिटाइजर के साथ शीशों के पीछे कैद हैं। लेकिन यहां पर अपने दर्द की दवा कराने आने वाले मरीजों और अन्य लोगों को पूरी तरह से राम भरोसे छोड़ा गया है।

ये सरकारी अस्पताल है जनाब!-कोरोना काल में महामारी को दावत दे रही भीड़
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मुजफ्फरनगर। जनपद में कोरोना का अटैक से सरकार तंत्र परेशान हो चुका है। कोरोना संक्रमण ऐसा बढ़ा कि स्वास्थ्य विभाग से लेकर प्रशासनिक अफसरों तक की रातों की नींद भी उड़ चुकी है। दिन रात बैठकों का दौर है, निरीक्षण का भय है, लेकिन इसके बावजूद भी कोरोना की इस विकरालता को लेकर खुद स्वास्थ्य विभाग ही स्थिति को अनदेखा कर रहा है, जिसके चलते व्यवस्था ही अव्यवस्था के वेंटीलेटर पर कोमा में पड़ी दिखाई देती है। जिला अस्पताल का नजारा व्यवस्था और नियम कायदों पर चोट करता हुआ नजर आता है। यहां पर चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों के जीवन सुरक्षा के लिए तमाम प्रबंध नजर आते हैं, लेकिन अपने मर्ज की एक अदद बंटी डाक्टर से पाने की उम्मीद लेकर यहां आने वाले मरीजों का मर्ज बढ़ता ही नजर आता है।

जी हां, यह जिले का सरकारी अस्पताल ही है, जहां कोरोना संकट के भय के कारण ओपीडी भवन बंद है, चिकित्सक मास्क, सेनिटाइजर के साथ शीशों के पीछे कैद हैं। सोशल डिस्टेंस बनाने के लिए दरवाजे पर पहरेदार है तो इमरजेंसी में भी रस्सी की बेरिकेडिंग ने डाक्टर और मरीज के बीच दूरी का अहसास कराने में कोई कमी नहीं की है, लेकिन यहां पर अपने दर्द की दवा कराने आने वाले मरीजों और अन्य लोगों को पूरी तरह से राम भरोसे छोड़ा गया है। उनके लिए कोविड गाइडलाइन का प्रयोग के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गयी है। जिधर देखो उधर ही भीड़ का आलम है कि खतरा-ए-जान बना हुआ है। अस्पताल में सारी व्यवस्था कोरोना संकट के कारण बदल दी गयी हैं।


पंजीकरण कक्ष चिकित्सकों का कवर्ड रूम बन गया है। यहां पर कहने को हेल्प डेस्क बनी है, लेकिन हेल्प के लिए लोगों को यहां किसी को तलाशना भी भारी हो रहा है। चिकित्सक शीशे की खिड़की के पीछे माइक के सहारे मरीजों से सम्पर्क साध रहे हैं। रिपोर्ट भी बाहर से ही दिखाई जाती है। मर्ज बताओ और दवा की पर्ची पाओ, के आधार पर अब अस्पताल में इलाज हो रहा है। यहां पर इमरजेंसी के बाहर ही नया अस्थाई पंजीकरण कक्ष बना दिया गया है। एक रुपया की सफेद पर्ची अब निःशुल्क इलाज के प्रमाण के रूप में लाल पर्चे के रूप में नजर आने लगी है। यहां पर पर्ची बनवाने के लिए मरीजों को लंबी लाइन में लगना पड़ता है। इमरजेंसी के बाहर ही इस भारी भीड़ ने यहां सारी व्यवस्था को बदहाल कर दिया है। कोई इमरजेंसी केस आने पर वार्ड तक पहुंचना भी इस भीड़ के कारण भारी हो रहा है।

इसके बाद सीएमएस कार्यालय के दायी और बायी ओर चिकित्सकों के द्वारा मरीजों को देखा जा रहा है, यह देखना भी बंदिशों में है। शीशे के आगे लोहे की जाली है तो कहीं चैनल, दूर से मरीज अपनी समस्या बताते हैं, डाक्टर बताये गये रोगों के अनुसार दवा लिखते हैं, जांच आदि का परामर्श देते हैं और जिम्मेदारी खत्म। अब इस मरीज को तीसरी लाइन दवा के लिए लगानी पड़ रही है। पर्ची से दवा तक भीड़ ही भीड़ है। कोई सोशल डिस्टेंस नहीं है, और इस अव्यवस्था पर कोई कुछ कहने वाला नहीं है, क्योंकि मस्त राम मस्ती में, आग लगे बस्ती में, वाली कहावत पर जिला अस्पताल की व्यवस्था चल रही है।


सीएमएस से लेकर स्वास्थ्य कर्मी तक जीवन सुरक्षा के लिए तमाम उपाय करते हुए भीड़ से खुद को बचाने में सफल है, लेकिन भीड़ को सोशल डिस्टेंस का पालन कराने के लिए वहां पर ना तो गोलाई के घेरे नजर आते है, ना ही कोई कर्मचारी तैनात कर किसी प्रकार की नसीहत सरकारी दवा के लिए एक दूसरे पर टूटती भीड़ को कोई नसीहत देने वाला वहां पर मिलता है। स्वास्थ्य विभाग की नाक के नीचे ही यह हो रहा है तो दूसरे स्थानों पर कोरोना गाइडलाइन और नियमों का कौन क्यों मानेगा। यह अस्पताल है जनाब, जहां लोग ठीक होने आते हैं, लेकिन अब अपनी ही जान खतरे में डालने को विवश हैं।

इस संबंध में जिला अस्पताल के सीएमएस डा. पंकज अग्रवाल का कहना है कि कोरोना की गंभीरता को बताने के लिए माइक से लगातार कर्मचारियों द्वारा प्रचार किया जा रहा है। पहले हमने रस्सियों के सहारे व्यवस्था बनाई थी, लेकिन भीड़ ने वह भी तोड़ दी। लोग अपनी सुरक्षा से स्वयं खिलवाड़ कर रहे हैं तो हम क्या कर सकते हैं। लोगों को स्वयं जागरुक रहना चाहिए।

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