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बुजुर्ग पिता को घर से निकाला, खर्च नहीं दिया तो बेटों को सुप्रीम कोर्ट ने लगाई लताड़

दोनों बेटे मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते हैं। कोर्ट ने कहा कि यह मत भूलिये कि आज वे जो भी हैं, वो अपने पिता की बदौलत हैं। पिता की देखभाल करना कानून के तहत उनका एक कर्तव्य है।

बुजुर्ग पिता को घर से निकाला, खर्च नहीं दिया तो बेटों को सुप्रीम कोर्ट ने लगाई लताड़
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुजुर्ग पिता की अनदेखी करने वाले दो बेटों को जमकर लताड़ लगाई। बेटों पर पिता को पुश्तैनी घर से बेदखल करने और गुजारा खर्च भी ना देने का आरोप लगाया गया था।

मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने बेटों के वकील से कहा कि बेटे अपने पिता के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं कर सकते हैं। दोनों बेटे मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते हैं। कोर्ट ने कहा कि यह मत भूलिये कि आज वे जो भी हैं, वो अपने पिता की बदौलत हैं। पिता की देखभाल करना कानून के तहत उनका एक कर्तव्य है। सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि दोनों बेटे पुश्तैनी घर पर कब्जा कर वहां से किराया भी खुद प्राप्त कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह प्राॅपर्टी भी उन लोगों को अपने पिता की बदौलत ही मिली है। दोनों बेटे अपने बीवी-बच्चों के साथ करोलबाग में स्थित पुश्तैनी घर पर रह रहे हैं। दोनों ने अपने पिता को घर से निकाल दिया था। इस मामले पर एक ट्रिब्घ्यूनल ने पिछले साल बेटों को 7,000 रुपये जीवनयापन के लिए पिता को देने का निर्देश दिया था। बेटों ने इस आदेश के खिलाफ कोर्ट में अपील करते हुए मेंटिनेंस एंड वेलफेयर पैरेंट्स एंड सीनियर सिटिजन एक्ट 2007 के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती दी। हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल के आदेश के आदेश पर रोक लगाई तो पिता को सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर दस्तक दी। पिता की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की बेटों को एक सभ्य व्यवस्था बनाने के लिए कहा। उनके वकील ने पिता के लिए हर महीने 10,000 रुपये का भुगतान करने का प्रस्ताव रखा। पीठ ने इस बात पर भी चिंता जताई कि बेटे पैतृक घर पर कब्जा कर रहे हैं और इससे किराया भी कमा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह एक बुजुर्ग को न्याय दिलाया।

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