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क्या फायदा ऐसे लोकायुक्त का, यह पद खत्म कर देना चाहिए, कहकर जस्टिस पीके मिश्रा ने दिया इस्तीफा

जस्टिस (रिटायर्ड) मिश्रा के अनुसार उन्होंने अपने कार्यकाल में उन्होंने कई अधिकारियों और नेताओं के खिलाफ 21 रिपोर्ट दीं, लेकिन राज्य सरकार ने एक भी रिपोर्ट पर कार्रवाई नहीं की।

क्या फायदा ऐसे लोकायुक्त का, यह पद खत्म कर देना चाहिए, कहकर जस्टिस पीके मिश्रा ने दिया इस्तीफा
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पणजी। गोवा में करीब साढ़े 4 साल तक लोकायुक्त रह चुके रिटायर्ड जस्टिस प्रफुल्ल कुमार मिश्रा ने राज्य सरकार के रवैये से असंतुष्ट होकर इस व्यवस्था को ही खत्म करने की मांग की है। जस्टिस (रिटायर्ड) मिश्रा के अनुसार उन्होंने अपने कार्यकाल में उन्होंने कई अधिकारियों और नेताओं के खिलाफ 21 रिपोर्ट दीं, लेकिन राज्य सरकार ने एक भी रिपोर्ट पर कार्रवाई नहीं की। ऐसे में पद के औचित्य पर सवाल उठाते हुए प्रफुल्ल कुमार मिश्रा ने सोमवार को गोवा भी छोड़ दिया।

एक रिपोर्ट में रिटायर्ड जस्टिस प्रफुल्ल कुमार मिश्रा ने कहा कि शिकायतों से निपटने में जो रवैया है उसे देखते हुए लोकायुक्त की संस्था को समाप्त कर देना चाहिए। ऐसे में जनता के पैसे को बिना मतलब क्यों खर्च किया जा रहा है? अगर लोकायुक्त अधिनियम को इतनी ताकत के साथ कूड़ेदान में डाला जा रहा है, तो लोकायुक्त को खत्म करना ही बेहतर है ना। मेरे पास खुद के आदेशों की तामील की शक्तियां नहीं थी। अब राज्य सरकार और सिस्टम से मोहभंग हो गया है। लोकायुक्त का पद खत्म ही कर देना बेहतर है।

73 वर्षीय मिश्रा ने 18 मार्च 2016 से 16 सितंबर 2020 तक गोवा के लोकायुक्त के रूप में एक पूर्व मुख्यमंत्री और एक मौजूदा विधायक समेत कई लोगों के खिलाफ कार्रवाई के लिए रिपोर्ट दी। उन्होंने अपने कार्यकाल में मिली कुल 191 शिकायतों में 133 का निपटारा किया गया। उनकी पीडा है कि जिन मामलों की रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजी गई, कोई एक्शन ही नहीं लिया गया। उन्होंने कहा कि लोगायुक्त के लिए मौजूदा अधिनियम पर्याप्त नहीं है। कर्नाटक और केरल के अधिनयमों में लोकायुक्त को अभियोग की शक्तियां मिली हैं, लेकिन गोवा में ऐसा नहीं है। गोवा में लोकायुक्त के आदेशों की अवहेलना पर अवमानना का कोई प्रावधान भी नहीं है, जो इस अधिनियम को कमजोर करता है। लोकपाल या लोकायुक्त अनुचित शासन, अनुचित लाभ पहुंचाने या भ्रष्टाचार से संबंधित किसी मंत्री या केंद्र या राज्य सरकार के सचिव के द्वारा की गई कार्यवाही से पीड़ित व्यक्ति द्वारा लिखित शिकायत करने पर अथवा स्वतः संज्ञान लेते हुए जांच प्रक्रिया शुरू कर सकता है, लेकिन न्यायिक कोर्ट के निर्णय के संबंध में किसी प्रकार की जांच नहीं की जा सकती।

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