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राजपाल सैनी के रूप में अखिलेश के हाथ लग रहा बड़ा तुरुप का पत्ता

राजपाल सैनी के रूप में अखिलेश के हाथ लग रहा बड़ा तुरुप का पत्ता
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लखनऊ। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले अपना कुनबा बढ़ाने में जुटी समाजवादी पार्टी को एक बड़ा तुरुप का पत्ता हाथ लग गया है। पिछड़े वर्ग के दिग्गज पूर्व सांसद राजपाल सैनी जल्द साइकिल पर वापस सवार होने वाले हैं।

वेस्ट यूपी की सियासत में भी जल्द ही बड़ा भूचाल आने जा रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बसपा के दिग्गज नेता व पूर्व मंत्री एवं राज्यसभा सदस्य राजपाल सैनी हाथी की सवारी छोड़कर साईकिल पर सवार होने जा रहे है। अति पिछड़ा वर्ग में खास असर रखने वाले पूर्व मंत्री पर अब सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव अपने पाले में पहुंचने वाले हैं। सियासी गलियारों में खबर यह है कि राजपाल व उनके बेटे शिवान सैनी इसी माह समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर लेंगे। विश्वनीय सूत्रों ने पुष्टि की है कि पूर्व मंत्री इसी माह किसी भी दिन पार्टी ज्वाइन कर सकते है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन से गर्माएं माहौल में विधानसभा-2022 की सियासत में भी उथल पुथल के बीच राजपाल सैनी का सपा में आना वेस्ट यूपी की राजनीति में बड़ी करवट साबित होने वाला है। साल 2017 में चुनाव से ऐन वक्त पहले बसपा को सबसे बड़ा नुकसान हुआ, जब उसके कई दिग्गज नेताओं ने हाथी की सवारी छोड़ दी थी। इनमें खासतौर से पिछड़ा वर्ग में बड़ा दखल रखने वाले बसपा सुप्रीमो के खास रहे प्रदेश अध्यक्ष रहे स्वामी प्रसाद मौर्य व पूर्व कैबिनेट मंत्री धर्म सिंह सैनी समेत कई नेताओं ने पार्टी को बाय बाय कर भाजपा का दामन थाम लिया था। सियासत के मंंझे हुए खिलाड़ी कहे जाने वाले व माया के खासमखास राजपाल सैनी को भी भाजपा से टिकट मिलने की चर्चाएं चल रही थी, लेकिन उस वक्त उन्होंने पार्टी छोड़ने से इंकार कर दिया था। अब बसपा से तमाम नेताओं का मोह भंग हो रहा है। सूत्रों से खबर आ रही है कि पूर्व मंत्री राजपाल सैनी को हाथी की सवारी भा नहीं रही है। इसकी भनक सपा हाईकमान को लगते ही उन्हें हाथों हाथ अपने खेमे में लाने की तैयारी शुरू कर दी गई है। सूत्रों का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव व पूर्व मंत्री की निरंतर वार्ता चल रही है। सपा सुप्रीमो जल्द ही राजपाल को साईकिल की सवारी कराने की जुगत में है। इसे लेकर बात काफी आगे बढ़ चुकी है और बस औपचारिक घोषणा होना बाकी है। प्रदेश में पिछड़ा वर्ग बड़ी तादाद में है, खासतौर से अति पिछड़ा वर्ग का वोट बैंक बड़ी संख्या में है। इनमें सैनी, पाल, कश्यप, प्रजापति समेत विभिन्न बिरादरी शामिल है। भाजपा ने 2017 में प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर केशव मौर्य की ताजपोशी कर पिछड़ों पर दाव खेला था। वजह सत्ता में भाजपा की वापसी हो गई। चर्चा है कि भाजपा की तोड़ के लिए अब इसी तरह से अब समाजवादी पार्टी काम कर रही है। सियासी पंडितों के अनुसार, सांप्रदायिक रंग को फींका करने व भाजपा खेमे को इसी तरह से शिकस्त देने के मूड में है। अति पिछड़ा वोट बैंक में खासतौर से प्रदेश की मजबूत सीट कैराना लोकसभा पर एक लाख 40 हजार है, वहीं मुजफ्फरनगर, बिजनौर, सहारनपुर समेत कई जिलों में बड़ी तादात है। राजपाल की सैनी बिरादरी के साथ ही अति पिछड़ा वर्ग में भी बड़ी दखल है। यहीं वजह है कि अब राजपाल को तोड़कर यह तुरूप की चाल चली जा रही है।

सियासी गलियारों में यह चर्चाएं तेज है कि सैनी बिरादरी का रूझान भाजपा की ओर रहा है। वहीं सपा भी अच्छी तादात में वोट होने के कारण इस वोट बैंक पर नजर रखती है। यहां सपा सरकार में साहब सिंह सैनी को एमएलसी व कैबिनेट मंत्री बनाया गया तो भाजपा ने अब धर्मसिंह सैनी को राज्यमंत्री बनाया है। सूत्रों का कहना है कि राजनीति में राजपाल को तोड़कर 2022 में भाजपा को शिकस्त देने की तैयारी है। इनमें खतौली व शामली जिले के थानाभवन पर नजर है। यहां सैनी 40 हजार की सुख्या में है। वहीं कैबिनेट मंत्री सुरेश राणा यहां से दो बार विधायक है। साल 2007 में बसपा के अनूप सैनी यहां से चुनाव लुड़ चुके है, जो मात्र चार हजार वोट से हारे थे।

राजपाल सैनी ने 90 के दशक में जनता दल के प्रदेश महासचिव पद से राजनीति में एंट्री की थी। साल 1994 में पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के कहने पर सपा में शामिल होने के बाद 1994 में मुजफ्फरनगर जिलाध्यक्ष सपा के पद से ताजपोशी के साथ पार्टी की रीढ बने रहे। हालांकि साल 1998 में बसपा में शामिल होकर बसपा जिलाध्यक्ष पद से नवाजे गये। 1999 में मुजफ्फरनगर लोकसभा से सांसद का चुनाव लड़े। 2002 में मोरना विधानसभा क्षेत्र में विधायक व मंत्री बने। 2007 में बसपा सरकार में खाद बीज निगम के चैयरमैन बनाकर कैबिनेट का दर्जा उन्हें दिया गया। 2010 में बसपा की राज्यसभा सदस्य बने। 2017 में खतौली विधानसभा में बेटे शिवान सैनी को चुनाव लडाया। अब जबकि यूपी में भाजपा बनाम सपा के चुनावी युद्ध की भूमिका तैयार हो रही है तो राजपाल सैनी पर सपा का दांव बड़े सियासी उलटफेर के रूप में देखा जा रहा है।

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