तीस साल बाद खुले ज्ञानवापी परिसर के बंद ताले
वाराणसी। तीस साल बाद आज ज्ञानवापी परिसर के ताले खुले और सर्वे का काम शुरू किया गया। विवाद की शुरुआत के बाद प्रशासनिक कार्रवाई के तहत चार जनवरी वर्ष 1993 के बाद जिलाधिकारी सौरभ चंद्र के निर्देशन में मस्जिद के तीन कमरों में ताले लगाए गए थे। कमरे की दो चाबियां प्रशासन और मुस्लिम पक्ष के पास सुरक्षित थीं। अब मस्जिद के बंद हिस्सों का ताला आखिरकार शनिवार को एडवोकेट कमिश्नर की कार्रवाई के दौरान खुला तो काफी कुछ अतीत के झरोखों से सुबूतों ने दस्तक दी। साक्ष्यों की पड़ताल के लिए दोनों पक्षों के 52 सदस्य वीडियोग्राफी के लिए पहुंचे और एक एक कर सुबूतों को तलाशने के साथ ही सुबह आठ बजे से दोपहर 12 बजे तक जांच की।
सुबह छह बजे से ही परिसर और आसपास के क्षेत्र को सुरक्षा बलों के हवाले कर दिया गया। ज्ञानवापी परिसर के चारों ओर बने ऊंचे मकानों की छतों पर सुरक्षा बलों की टीम चौकस हो गई ताकि कोई भी एडवोकेट कमिश्नर की परिसर में कार्यवाही के दौरान सुरक्षा से खिलवाड़ न कर सके। सभी 52 सदस्यों की लिस्ट सुरक्षा बलों को सौंप दी गई थी। जांच के बाद ही सभी को परिसर में प्रवेश करने दिया गया। इस दौरान गोपनीयता को बरकरार रखते हुए सभी सदस्यों के मोबाइल सहित अन्य उपकरणों को गेट पर ही जमा कराया गया तो कुछ लोगों ने विरोध भी किया। लेकिन, सुरक्षा और गोपनीयता का हवाला देते हुए उपकरणों को भीतर नहीं जाने दिया गया। सिर्फ वीडियो रिकार्डिंग का कैमरा और रोशनी के लिए उच्च गुणवत्ता की टार्च को ही भीतर जाने दिया गया।
अदालत के आदेश पर 29 वर्ष चार माह और 10 दिन के बाद ज्ञानवापी परिसर में बंद कमरों और तहखानों को साक्ष्य संकलन के लिए वीडियोग्राफी करने के लिए के तालों को खोला गया तो भीतर सीलन और बदबू भी खूब रही। बाहर निकलकर आए जांच टीम के सदस्यों ने जांच के दौरान जो देखा उसे अदालत के निर्देशों के तहत जाहिर नहीं किया।