देवकी नंदन महाराज ने अल्पसंख्यक कानून के विरूद्ध सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका
यााचिका में अल्पसंख्यक कानून में हिंदुओं के साथ भेदभाव को असंवैधानिक बताते हुए इसकी समीक्षा करने की मांग की है।

याचिका में कहा गया है कि 17 मई 1992 को केंद्र ने मुस्लिम ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी आदि 5 समुदाय को अधिसूचित किया है। जबकि हिंदू लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप कश्मीर, नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब, मणिपुर में वास्तविक अल्पसंख्यक हैं। राज्य स्तर पर (अल्पसंख्यक) की पहचान न होने के कारण हिंदू अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और संचालन नहीं कर सकते हैं।
याचिका में कहा गया है कि लद्दाख में सिर्फ 1% मिजोरम में 2.75%, लक्षद्वीप में 2.77%, कश्मीर में 4% हिंदू हैं। इसके अलावा नागालैंड में 8.74% मेघालय में 11.52% अरुणाचल प्रदेश में 29%, पंजाब में 38.49% और मणिपुर में 41.29% हिंदू हैं। इसके बावजूद सरकार ने उन्हें (अल्पसंख्यक)घोषित नहीं किया है। दायर याचिका मे कहा गया है कि जिन्हे अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया है वे अपने पसंद के शिक्षण संस्थान खोल सकते हैं परंतु विभिन्न राज्यो मे हिन्दुओ की संख्या कम होने के कारण भी उन्हे अल्पसंख्यक का दर्जा नही दिया गया है। जिस कारण वे अपने पसंद के शिक्षण संस्थान का निर्माण करने से वंचित है। जबकि संविधान अल्पसंख्यक को यह अधिकार देता है। यााचिका में अल्पसंख्यक कानून में हिंदुओं के साथ भेदभाव को असंवैधानिक बताते हुए इसकी समीक्षा करने की मांग की है।