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रफी अहमद किदवई पार्क, हाथी पार्क में हो रहा अवैध निर्माण, प्रशासन मौन

रफी अहमद किदवई पार्क, हाथी पार्क में हो रहा अवैध निर्माण, प्रशासन मौन
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लखनऊ। गांधी परिवार का गढ़ माने जाने वाला रायबरेली राजनीतिक नजरिए से भारत के इतिहास में अलग जगह रखता है। यहां की गतिविधियों पर देश-विदेश की निगाहें लगी रहती हैं। जवाहरलाल नेहरू, फिरोज गांधी, इंदिरा गांधी के बाद चौथी पीढ़ी का नेतृत्व कर रहे रायबरेली एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार मामला जरा हटके है। शहर के मध्य में स्थित रफी अहमद किदवई पार्क जो हाथी पार्क के नाम से भी प्रसिद्ध है में अवैध रूप से निर्माण हो रहा है। यहां बटोही का होट‌ल/रेस्टोरेंट बन रहा है। आशंका जताई जा रही है कि इसमें जालसाजी व फर्जीवाड़े का बड़ा खेल चल रहा है। सूत्रों की मानें तो इस पार्क को जिला पंचायत ने छद्म रूप से बटोही रेस्टोरेंट को बेच दिया है। इस मामले में नगर पालिका परिषद और जिम्मेदार प्रशासन मौन है। भू-माफिया द्वारा रायबरेली शहर की सरकारी जमीनों पर कब्जा करने की जिस तरह होड़ लगी है और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा कब्जे कराने की, वास्तव में चिंता की बात है। नजूल, तालाब, चरागाह, बन्जर, ऊसर, नहरों व सड़क आदि की सरकारी जमीनों को हज़म करने के बाद अब सरकारी पार्कों का नम्बर लग गया है। इन्दिरा नगर के एक पार्क के एक बड़े हिस्से पर एक माननीय का बहुत लम्बे समय से अवैध कब्जा है। हाथी पार्क के नाम से चर्चित, यह रफी अहमद किदवई पार्क है, जो रायबरेली की ऐतिहासिक विरासत और अनमोल धरोहर है। किसान आन्दोलन की गोपनीय योजना इसी स्थान पर बनी थी, जो मुन्शीगंज गोलीकांड के नाम से स्वातन्त्र आन्दोलन की एक बड़ी ऐतिहासिक अजर अमर घटना है। यह पार्क सरकारी नजूल भूमि गाटा संख्या-34 पर स्थित है, जिसमें डिस्ट्रिक बोर्ड दर्ज है, जिसका स्वामित्व संरक्षण व रखरखाव पिछले 50-60 वर्षों से नगर पालिका परिषद रायबरेली द्वारा किया जा रहा है, जिसमें भारी सरकारी धन के साथ साथ सांसद निधि की भी भारी भरकम धनराशि लगी हुई है। 20-25 वर्ष पहले इस पार्क में प्रवेश हेतु 2/- रू0 व 5/-रू0 का टिकट लगता था, जिसका ठेका नगर पालिका द्वारा उठाया जाता था। संज्ञान में आया है कि नगर पालिका एवं जिला पंचायत की मिली भगत से इस पार्क की बेशकीमती जमीन को बेचने की साज़िश रचकर, जालसाजी व फर्जीवाड़े के तहत कूट योजना द्वारा अवैधानिक स्वामित्व परिवर्तन जिला पंचायत के नाम हुआ है, जिसके फर्जीवाड़े में सरकारी अधिकारियों के साथ साथ अध्यक्ष नगर पालिका एवं अध्यक्ष जिला पंचायत सामिल है, जिनकी जानकारी में यह हेराफेरी हुई है। यह पब्लिक प्रापर्टी है, इसे न कोई बेच सकता है और न ही इसके स्वरूप को बदला जा सकता है। नयन जागृति संवाददाता ने जिलाधिकारी रायबरेली से उनके सीययूजी नंबर पर काल करके जानकारी करने का प्रयास किया लेकिन ओएसडी ने काल रिसीव किया।

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