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अब फुंकेगी नहीं पराली अवशेषों के बदले पैसा देगी योगी सरकार

अवशेष के लिए गन्ने की पत्ती की बेल (गांठ) डेढ़ रुपए प्रति किलो, सरसों की डंठल (तूड़ी) दो रुपए प्रति किलो, मक्का डंठल डेढ़ रुपए प्रति किलो, पराली (धान पुआल) बेल डेढ़ रुपए प्रति किलो, गेहूं का निष्प्रयोज्य अवशेष डेढ़ रुपए किलो, अरहर स्टैक (झकरा) तीन रुपए प्रति किलो तथा मसूर भूसा दो रुपए प्रति किलो की दर से भुगतानकिया जाएगा।

अब फुंकेगी नहीं पराली अवशेषों के बदले पैसा देगी योगी सरकार
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लखनऊ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार ने किसानों को पराली अवशेषों के बदले पैसा देने का फैसला किया है। इससे पराली जलाने की समस्या से निजात मिलेगी और पर्यावरण संरक्षण भी होगा।

किसानों की आय में बढ़ोतरी और लागत में कमी लाने के निर्देश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कृषि विभाग को दिए थे। उनकी ही पहल पर बहराईच के रिसिया मेंकृषि अपशिष्टों से बायोकोल उत्पादन ईकाई की स्थापना की जा चुकी है। इसके लिए क्षेत्र के हजारों किसानों से कृषि अपशिष्टों धान का पुआल, मक्के का डंठल, गन्ने की पत्ती आदि 15 सौ से लेकर दो हजार तक प्रति टन भुगतान कर खरीदी जा रही है। एग्रो वेस्ट से निर्मित फ्यूल ब्रिकेट पैलट का संयत्र में ट्रायल पूरा हो चुका है। अब तक किसानों से उनका फसल अवशेष पराली, मक्के का डंठल, गन्ने की पत्ती आदि करीब 10 हजार कुंटल खरीदी भी जा चुकी गई है। इसके अलावा एनटीपीसी ऊंचाहार की ओर से फर्म को 1000 टन प्रतिदिन पैलेट आपूर्ति का आदेश भी मिल चुका है। इस ईकाई की स्थापना से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सौ से ज्यादा लोगों को नियमित रोजगार मिला है। साथ ही किसानों को पराली और कृषि फसल अवशेषों से अतिरिक्त आय हो रही है। संयत्र की स्थापना में तीन करोड़ 10 लाख रुपए की लागत आई है। राज्य सरकार की ओर से ढाई फीसदी स्टेट जीएसटी 10 साल के लिए छूट दी गई है। साथ ही पूंजीगत लागत पर 25 फीसदी अनुदान भी सरकार की ओर से दिया जाएगा। उनका कहना है कि ईकाई की शुरूआत में ही हमें ब्वायलर्स से आर्डर ज्यादा मिल रहे हैं, जिस कारण ईकाई का विस्तार दो महीने में किया जाना प्रस्तावित है। इससे अन्य और लोगों को रोजगार मिलेंगे।

बायोमास ब्रिकेट एसोसिएशन उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष भी राम रतन अग्रवाल का कहना है कि प्रदेश में करीब दो सौ ईकाईयां कार्यरत हैं, जो फैक्ट्री कचरे से बिक्रेट बना रही हैं, जिसका ईंट भट्ठों में इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन यह उत्पाद ब्वायलर में नहीं जलाया जा सकता। इसलिए अब इन्हें कृषि अवशेषों से ब्रिकेट बनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इसी तरह का संयत्र लगाने के लिए शाहजहांपुर से दो, पीलीभीत से एक, फैजाबाद से एक, बस्ती से एक और गोरखपुर से भी एक प्रस्ताव आए हैं, जिन्हें प्रशिक्षित किया जा रहा है कि किस प्रकार से कृषि अवशेषों से पैलेट्स बना सकें, क्योंकि इससे कोयले के साथ मिलाकर पैलेट्स को जलाया जाता है, तो कोई हानि नहीं होती है।

अवशेष के लिए गन्ने की पत्ती की बेल (गांठ) डेढ़ रुपए प्रति किलो, सरसों की डंठल (तूड़ी) दो रुपए प्रति किलो, मक्का डंठल डेढ़ रुपए प्रति किलो, पराली (धान पुआल) बेल डेढ़ रुपए प्रति किलो, गेहूं का निष्प्रयोज्य अवशेष डेढ़ रुपए किलो, अरहर स्टैक (झकरा) तीन रुपए प्रति किलो तथा मसूर भूसा दो रुपए प्रति किलो की दर से भुगतानकिया जाएगा।

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