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देश के मस्तिष्क का ताज हूं, हां मैं दिल्ली हूं,

जो मुझे सबसे प्रिय था जो मेरी ही मिट्टी से जुड़ा रहा, उसने ही मुझे तार-तार कर दिया, मेरे ही छाती पर बैठकर मेरे ही पुत्रों की बक्कल उतारने की बात करने वाला किसान के लिबास में कौन था, 26 जनवरी के दिन मुझे बड़ा अफसोस है

देश के मस्तिष्क का ताज हूं, हां मैं दिल्ली हूं,
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मैं दिल्ली हूं देश की आन बान शान हूं, देश के मस्तिष्क का ताज हूं, हां मैं दिल्ली हूं,

मैं आज बड़ी परेशान हूं, कभी मेरे आंसू ना गिरे मैं जहरीली प्रदूषण वाली हवा पीती रही, अपने अंदर प्रदूषित जल समाती रही, कि इतना बोझ दिल्ली का मै अपने सीने पर सहन करती रही हूं, शायद कोई ओर राजधानी इतना बोझ नहीं सही होगी, मुझे प्रगतिवाद के दौर में खोखला कर दिया गया कभी मैट्रो ने, कभी अंडरलाइन पाइपों ने, पर मैं कभी विचलित ना हुई, दिल्ली वासियों ने प्रदूषण का आडंबर लगा दिया पर मैं सब दर्द अपने सीने पर सहती चली गई ,हां मैं दिल्ली हूं।

जब भी किसी को देश में विरोध करना हो, दिल्ली चला आता मेरे क्षेत्र निवासियों को इससे बड़ी तकलीफ हुई परंतु मैंने उफ्फ तक ना निकाला, मेरे सीने पर रहकर छात्र विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा ग्रहण करते रहे, और पाकिस्तान की जयकार करते रहे, सरकार की बगावत करते रहे,पर मैं फिर भी चुप हूं, किंतु 26 जनवरी की घटना ने लाल किले से तिरंगा हटाकर और उत्पात मचाकर जो बर्बरता का घिनोना तांडव किया उससे मेरा सीना फट गया, मानो किसी ने आकर लाल किले से तिरंगा को क्या हटाया मेरे माथे से ही सिंदूर मिटा दिया, यह कोई गैर करता तो भी मुझे दुख ना होता, यह कार्य वह कर गया जो मेरे ही कोख से जन्मा जिसके नाम से मेरा सीना गदगद हो जाता था, जो मुझे सबसे प्रिय था जो मेरी ही मिट्टी से जुड़ा रहा, उसने ही मुझे तार-तार कर दिया, मेरे ही छाती पर बैठकर मेरे ही पुत्रों की बक्कल उतारने की बात करने वाला किसान के लिबास में कौन था, 26 जनवरी के दिन मुझे बड़ा अफसोस है, मुझे कलंकित करने वाला यह कौन सा धरतीपुत्र है। हां मैं दिल्ली हूं आज अपने बच्चों पर शर्मिंदा हूं।

अवतोष शर्मा स्वतंत्र पत्रकार

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