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जम्मू-कश्मीर के इतिहास में केंद्र सरकार का अच्छा व साहसिक कदम

जम्मू-कश्मीर के इतिहास में  केंद्र सरकार का अच्छा व साहसिक कदम
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- अशोक बालियान

केंद्र सरकार ने दिनक 05 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाला अनुच्छेद 370 खत्म कर दिया था।इसके साथ ही केंद्र ने इस राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने का फैसला किया था। इसमें कोई दो राय नहीं कि जम्मू-कश्मीर के इतिहास में यह एक अहम मोड़ था।यह केंद्र सरकार का अच्छा व साहसिक कदम था।

अंग्रेजी भारतवर्ष में 662 देशी रियासतें थीं जिनमे से 562 भारत व 106 पाकिस्तान के साथ शामिल हुई थी। इन 565 में से केवल 21 रियासतों में ही सरकार थी।

7वीं सदी से शुरू हुई देश के राजाओं की लंबी लड़ाई का परिणाम यह हुआ था कि भारत के पश्चिम में जहां कश्मीर, बलूचिस्तान, खैबर-पख़्तूनख्वा, कबायली इलाके में मुस्लिम आबादी आबाद हो गई थी, वहीं दूसरी ओर पूर्व में पूर्वी बंगाल मुस्लिम बहुल इलाका बन गया था। लेकिन सिंध और पंजाब में हिन्दू और सिख बहुमत में थे। इसके बावजूद दोनों प्रांतों को विभाजन की त्रासदी झेलना पड़ी थी। दूसरी ओर समूचे बंगाल की बात करें तो हिन्दू बहुसंख्यक थे, लेकिन पूर्वी बंगाल में मुस्लिम शासक थे। विभाजन का सबसे ज्यादा दर्द कश्मीर, बंगाल, पंजाब और सिंध के हिन्दू और मुसलमानों ने उठाया था।

देश की आज़ादी की घोषणा के बाद भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के अनुसार, रियासतों के शासकों पर निर्भर था कि वे भारत या पाकिस्तान, किसमें अपने राज्य का विलय करते हैं। परन्तु ब्रिटिश इंडिया के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने सभी रजवाड़ों को यह साफ़ कर दिया था कि स्वतंत्र होने का विकल्प उनके पास नहीं है। वे भौगोलिक सच्चाई की अनदेखी नहीं कर सकते है।

स्वतंत्रता के समय भारत के अन्तर्गत तीन तरह के क्षेत्र थे जिसमे एक ब्रिटिश भारत के क्षेत्र जो गवर्नर-जनरल के सीधे नियंत्रण (प्रिंसली स्टेट) में थे। दूसरे क्षेत्र देसी राज्य थे और तीसरे क्षेत्र फ्रांस और पुर्तगाल के औपनिवेशिक क्षेत्र (चन्दननगर, पाण्डिचेरी, गोवा आदि) थे। ये रियासत सन्धि द्वारा ब्रिटिश राज के प्रभुत्व के अधीन थे।

इन सभी क्षेत्रों को एक राजनैतिक इकाई के रूप में एकीकृत करना स्वतन्त्रता के बाद भारत सरकार का लक्ष्य था। स्वतन्त्रता प्राप्ति के दौरान भारत में करीब 562 देशी रियासतें थीं। सरदार पटेल तब अंतरिम सरकार में उपप्रधानमंत्री के साथ देश के गृहमंत्री थे।

इन 565 रजवाड़ों जिनमें से अधिकांश प्रिंसली स्टेट (ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य का हिस्सा) थे में से भारत के हिस्से में आए रजवाड़ों ने जूनागढ, हैदराबाद, भोपाल, जोधपुर, त्रावणकोर और कश्मीर को छोडक़र एक-एक करके विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए थे। इससे पहले लार्ड माउंटबेटन सभी राजाओं व नबाबों को चैंबर आफ प्रिंसेज के साथ मीटिंग में कह चुके थे कि 15 अगस्त के बाद मैं महारानी के प्रतिनिधि के तौर पर आपके मध्यस्तता करने की स्थिति में नहीं रहूंगा।

जूनागढ़ के नवाब मोहम्मद महाबत खानजी हिन्दू बाहुल जूनागढ़ को पाकिस्तान में मिलने की घोषणा कर चुका था। और पाकिस्तान इसे स्वीकार कर चुका था। इसके बाद स्थिति बिगड़ती देख नवाब और उनके परिवार ने जूनागढ़ छोड़ दिया और 25 अक्टूबर 1947 को कराची भाग गया था।

इसके बाद सरदार पटेल ने पाकिस्तान से जूनागढ़ में जनमत संग्रह कराने की मांग की। क्योकि इसका पाकिस्तान में विलय हो चुका था। जूनागढ़ में 20 फरवरी 1948 को जनमत संग्रह हुआ और 91 प्रतिशत लोगों ने भारत में शामिल होने की इच्छा जाहिर की थी। इस तरह जूनागढ़ भारत का हिस्सा बन गया था।

हैदराबाद रियासत के निजाम मीर उस्मान अली चाहते थे कि हैदराबाद को ब्रिटिश कॉमनवेल्थ के तहत एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया जाए, लेकिन लार्ड माउंटबेटन ने निजाम से साफ कह दिया था कि ये संभव नहीं है। यहाँ की बहुसंख्यक जनता हिन्दू थी। इसके बाद 15 अगस्त 1947 को निजाम ने हैदराबाद को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया।

निजाम की सेना के खिलाफ भारतीय सैन्य अभियान के बाद 17 सितम्बर, 1948 को निजाम उस्मान अली ने पटेल के सामने हाथ जोड़ दिए और हैदराबाद रियासत के भारत में विलय हेतु विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए थे।

भोपाल के नबाब हमीदुल्लाह खान ने भोपाल के स्वतंत्र रहने की घोषणा की थी। भोपाल नवाब रियासतों की एसोसिएशन चैंबर्स आफ प्रिंसेस के मुखिया थे। और वे भारत और पाकिस्तान से अलग देशी रियासतों का एक संघ बनाना चाहते थे। सरदार पटेल के दबाव में 30 अप्रैल 1949 को नवाब ने विलीनीकरण के पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए थे।

जोधपुर रियासत का महाराजा हनवंत सिंह हिंदू होने के बावजूद पाकिस्तान का हिस्सा बनना चाहता था, लेकिन सरदार पटेल के कहने पर इन्होने जोधपुर रियासत के भारत में विलय पर 11 अगस्त 1947 को हस्ताक्षर किये थे।

11 जून 1947 को त्रावणकोर के महाराजा बलराम वर्मा और उनके उनके दीवान रामास्वामी अय्यर ने ने त्रावणकोर को आजाद संप्रभुता संपन्न देश बनाने का एलान कर दिया था। जनता ने भारत में मिलने का फैसला किया था और इसलिए जनता ने अपने राजा पर दबाव बनाने के लिए विद्रोह शुरू कर दिया था। इसके बाद त्रावणकोर दीवान और वकील सर सीपी रामास्वामी अय्यर ने 30 जुलाई 1947 को आखिरकार विलीनीकरण के पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए थे।

काश्मीर महाराजा हरि सिंह स्वतंत्र बने रहने की बात कह रहे थे। लेकिन 22 अक्टूबर, 1947 को कबीलाई लोगों का वेश धारण कर पाकिस्तानी सेनाओं ने कश्मीर में प्रवेश किया और रियासत को सैन्य बल के द्वारा पाकिस्तान में विलय कर लेने का प्रयास करने लगे थे। पाकिस्तानी घुसपैठ से रक्षा के लिए महाराजा हरी सिंह ने जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के समझौते पर 26 अक्टूबर, 1947 को ही हस्ताक्षर कर दिये थे।

इसके बाद 31 दिसंबर 1947 को प्रधानमंत्री नेहरू ने यूएनओ को एक पत्र लिखा कि वह पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी लुटेरों को भारत पर आक्रमण करने से रोके। प्रधानमंत्री नेहरू के यूएनओ में चले जाने के कारण 1 जनवरी 1949 को युद्धविराम हो गया और भारतीय सेना के हाथ बंध गए, जिससे पाकिस्तान द्वारा कब्जा किए गए शेष क्षेत्र को भारतीय सेना प्राप्त करने में उस समय सफल न हो सकी थी।

वर्ष 1951 में एक प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र संघ में रखा गया, जिसमें यह व्यवस्था थी की पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर से अपनी सेनाएं हटा ले और संयुक्त राष्ट्र संघ की देख-रेख में जनमत संग्रह कराया जाये, जिसके आधार पर कश्मीर को भारत या पाकिस्तान का अंग स्वीकार कर लिया जायेगा।

लार्ड माउण्टबेटन ने 27 अक्टूबर,1947 को एक पत्र महाराजा हरि सिंह को भेजा जिसमे उन्होंने जनमत संग्रह की बात कही थी लेकिन ये केवल राय थी,क्योकि भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 में इसका कोई प्रावधान नही था।

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के अनुसार 26 अक्टूबर, 1947 को भारतीय संघ में जम्मू-कश्मीर के विलय के उपरांत उस राज्य की संवैधानिक स्थिति वही होनी चाहिए थी जो राजस्थान की रियासतों सहित 562 देशी रियासतों की भारत में विलय के बाद हो गयी थी।

उसे विशेष दर्जा देकर अलगाववाद को बढ़ावा देने का कार्य उस समय की केन्द्र सरकार द्वारा किया गया था। जम्मू-कश्मीर के लिए एक अलग संविधान बनाया गया था, जो 1956 से वहां लागू था। पूरे देश में जम्मू-कश्मीर एक मात्र ऐसा राज्य था, जहाँ दिनांक 05 अगस्त 2019 तक एक अलग संविधान लागू था। इसलिए कश्मीर समस्या के स्थाई समाधान में पिछली सरकारों की नीतिविहीनता ही मुख्य बाधा रही है।

केंद्र सरकार के इस कदम से देश के 29 राज्यों की तरह ही केंद्र के सभी कानून, योजनाएं, विकास परियोजनाएं जम्मू-कश्मीर पर भी लागू होंगे। विधानसभा में कश्मीर से 46, जम्मू क्षेत्र से 37 और लद्दाख से 4 विधायक चुनकर आते थे।

केंद्र की मोदी सरकार द्वारा धारा 370 व धारा 35 अ हटाने से राज्य में शांति आ रही है और राज्य विकास की तरफ़ जा रहा है।

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