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संयुक्त किसान मोर्चा अपनी बेतुकी मांगों के कारण खत्म होता जा रहा है-अशोक बालियान

संयुक्त किसान मोर्चा अपनी बेतुकी मांगों के कारण खत्म होता जा रहा है-अशोक बालियान
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मुज़फ्फरनगर संयुक्त किसान मोर्चा अपनी बेतुकी मांगों के कारण खत्म होता जा रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा के घटक के एक नेता ने अग्निपथ योजना का विरोध किया था और इसके लिए आन्दोलन चलाने की भी धमकी दी थी, हालांकि वह आन्दोलन चला नहीं पाए। भारत के सैन्य बलों की भर्ती के लिए लाई गई अग्निपथ योजना की वैधता को चुनौती देने वाली दो याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने कल खारिज कर दिया है। इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि यह योजना राष्ट्रीय हित में यह सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई थी, ताकि सशस्त्र बल बेहतर हो। अभी हाल में ही संयुक्त किसान मोर्चा के घटक के उस नेता ने किसान क्रेडिट कार्ड को किसान के लिए नुकसानदेह बताया है। जबकि उसको पता होना चाहिए कि किसानों को फसल पकने तक वित्तीय सहायता की जरूरत होती है, जिसे किसान क्रेडिट कार्ड से पूरा किया जा रहा है। किसान क्रेडिट कार्ड योजना लागू होने से पहले देश के अधिकतर किसान सूदखोरों से उच्च ब्याजदर पर कर्ज लेकर पूरा करते थे, जो अत्यधिक ब्याजदर होने के किसान खून चूसने वाला होता है।

संयुक्त किसान मोर्चा के घटक के नेता का यह भी कहना है सरकार किसानों से भूमि लेकर उद्योगपतियों को भूमि दे रही है, और बड़े व्यवसायी भी चाहते हैं कि किसान अपने खेतों में मजदूर के रूप में काम करें और वे जमीन उन्हें बेच दें। जबकि संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं को यह भी पता होना चाहिए कि देश में विकास के राह पर लेजाने के लिए सडकें व उद्योग को बढ़ावा दिया जाता है, इसके लिए भूमि की जरूरत पड़ती है। गांव के युवा बेरोज़गार मजबूरी में अपने परिवार के छोटे छोटे खेतों में लगे नज़र आते हैं, जबकि उतने हाथों की वहां जरूरत ही नहीं है।उन्हें अन्य क्षेत्र में रोजगार चाहिए और वह रोजगार उन्हें विकास के कार्यों व उद्योग में ही मिल सकता है, इसलिए संयुक्त किसान मोर्चा की ये बातें बेतुकी है। किसान के लिए छोटी जोत पर खेती के दो रास्ते है, जिनमे एक रास्ता है कि वह व्यापारिक सोच के साथ खेती व उसके साथ सहायक कार्य डेयरी आदि भी चलाये। इन्ही कार्यों को बढ़ावा देने के लिए व ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के अवसर देने के लिए ही कृषि कानून आये थे, जिन्हें संयुक्त किसान मोर्चा ने काले कानून बता कर केंद्र सरकार को वापिस लेने पर मजबूर किया था। दूसरा रास्ता किसान के पास यह है कि वो खेती के आलावा दूसरा व्यवसाय शुरू करें, जो वह अब कर भी रहा है। तभी किसान की तरक्की हो सकती है।

अमेरिका जैसे विकसित देश ने काफी पहले ही अपनी 50 प्रतिशत आबादी जो खेती में लगी थी, उसे दूसरे रोजगार में खपा लिया था। हम जहां पारंपरिक खेती ही कर पा रहे हैं वहीँ अमेरिका में उन्नत बीज, बढ़िया जल प्रबंधन, कृषि यांत्रिकी में नए आविष्कार और इन सारे कामों पर भारी सरकारी निवेश के कारण वहां मांग के अनुरूप आधुनिक खेती हो रही है। देश का किसान कृषि संबंधी आर्थ‍िक जरूरतों को पूरा करने के लिए साहूकारों के चंगुल में फंसा हुआ था, जिसे ध्यान में रखते हुए ही केंद्र सरकार ने अगस्त 1998 में किसान क्रेडिट कार्ड योजना (केसीसी) शुरू की थी। इस योजना में वर्ष 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ बदलाव किया था, जिसका उद्देश्य किसानों को उनकी खेती के लिए बैंकों द्वारा आसान तरीके से 4 प्रतिशत के ब्याज दर पर समय से किसानों को ऋण दी जा सके देश में किसान परिवार 14.5 करोड़ है। मोदी सरकार ने किसान क्रेडिट कार्ड योजना को पीएम किसान स्कीम से जोड़ा है, इससे कार्ड बनवाना आसान हो गया है। पीएम किसान स्कीम की वजह से देश के 11.5 करोड़ किसानों का राजस्व रिकॉर्ड, आधार कार्ड और बैंक अकाउंट नंबर का डेटाबेस केंद्र सरकार के पास आ चुका है। इस रिकॉर्ड को केंद्रीय कृषि मंत्रालय और राज्य सरकार ने अप्रूव्ड किया हुआ है। इसलिए लाभार्थियों को 6000 रुपये मिल रहे हैं। इस तरह से किसान को लिंक करने से केसीसी बनाने की प्रक्रिया में तेजी आई है।

किसान की चार बुनियादी जरूरतें हैं। उसे समय पर और सही कीमत पर बीज मिल जाए। सिंचाई का सही इंतजाम हो जाये। खाद की उपलब्धता हो और उसे अपनी उपज का सही मूल्य मिल जाए। अगर फसल खराब होती है तो उसका बीमा क्लेम समय पर मिल जाए, इसके अलावा वे चाहते हैं कि बाकी क्षेत्रों की तरह कृषि क्षेत्र में भी निजी पूंजी निवेश को बढ़ावा दिया जाए। इन कामों के लिए उसे सस्ते ऋण की जरूरत होती है, जो उसे किसान क्रेडिट कार्ड के द्वारा मिल रही है। किसान को बीमा का क्लेम उस समय चाहिए जब वह सबसे ज्यादा संकट में हो। यानी हफ्ते भर के अंदर फसल नुक्सान का आकलन हो और 15 दिन के अंदर पैसा उसके खाते में आ जाए। इसके अलावा छोटी जोत के किसानों को कोऑपरेटव फार्मिंग के लिए प्रेरित करना एक दूरगामी जरूरत है। देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि की भागीदारी 14 प्रतिशत तक सिमटने के बाद कृषि पर निर्भर लोगों की संख्या घटाकर उन्हें वैकल्पिक रोजगार में ले जाना भी बड़ी जरूरत है। ये किसान क्रेडिट कार्ड अप्रत्यक्ष रूप से इसमें मददगार भी बन रहे है। क्योकि 4 प्रतिशत ब्याज पर 3 लाख तक का ऋण लेकर किसान के बेटे अपनी खेती को बेहतर कर अपनी आर्थिक स्थिति को सुधार कर अन्य व्यवसाय शुरू कर सकते है। केंद्र सरकार कृषि क्षेत्र को प्रोत्साहहित करने के लिए 2023-24 के बजट में कृषि लोन के टारगेट को 18 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर 20 लाख करोड़ रुपये किया है। ताकि अधिक किसानों को सस्ता ऋण मिल सके।

इसलिए संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल कुछ नेताओं के ये बयान बेतुके है और इन्ही बेतुके बयानों व मांगों के कारण संयुक्त किसान मोर्चा खत्म होता जा रहा है। इन नेताओं ने कृषि कानूनों को वापिस कराकर किसानों को गड्ढे में धकेलने का कार्य किया है।इन्होने आजतक ये नहीं बताया कि इन कानूनों में गलत क्या था और इन तीनों कृषि कानूनों की किन धाराओं के कारण किसान की जमीन छिनी जा रही थी। पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन देशभर के किसानों को जागरूक करने का कार्य कर रहा है। और देश के किसानों की उचित माँगों को सरकार के सामने रखता है।पीजेंट जैसे संगठनों की जागरूकता के कारण ही संयुक्त किसान मोर्चा का दिल्ली में 20 मार्च का आन्दोलन में भीड़ न आने के कारण बेमानी हो गया था।

-अशोक बालियान, चेयरमैन,पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन

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