बिस्तर पर पड़े 'लकवाग्रस्त मरीज' फिर से लगेंगे दौड़ने

Update: 2021-01-31 07:37 GMT

लकवाग्रस्त मरीजों के लिए उम्मीद की नई किरण जगी है। जर्मन शोधकर्ताओं ने एक ऐसी जीन थेरेपी ईजाद करने का दावा किया है, जो महज दो से तीन हफ्ते में उनकी रीढ़ की हड्डी की बेजान नसों में जान भर देगी। रुर यूनिवर्सिटी बोशम की तकनीक एक डिजाइनर प्रोटीन पर आधारित है। चूहों पर शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने उनके 'मोटर सेंसरी कार्टेक्स' में मौजूद कोशिकाओं को 'हाइपर-इंटरल्युकिन-6' प्रोटीन पैदा करने के लिए प्रेरित किया। इस बाबत चूहों को अनुवांशिक रूप से संवर्दि्धत वायरस का इंजेक्शन लगाया गया। यह वायरस कोशिकाओं को प्रोटीन के उत्पादन को बढ़ावा देने वाली प्रक्रिया से रूबरू कराता था। मुख्य शोधकर्ता दायत्मर फिशर के मुताबिक 'हाइपर-इंटरल्युकिन-6' प्रोटीन धीरे-धीरे रीढ़ की हड्डी में मौजूद तंत्रिका तंतु 'एक्जान' में आए विकार को दूर करने लगा। इससे चूहे दो से तीन हफ्ते के भीतर फिर पहले जैसी फूर्ति के साथ दौड़ाने लगे, जबकि इंजेक्शन लगाने से पहले उनके दोनों पैर पूरी तरह से निष्क्रिय कर दिए गए थे।

'एक्जान' रीढ़ की हड्डी का अहम हिस्सा

'एक्जान' त्वचा, मांसपेशियों और मस्तिष्क के बीच संदेशों का आदान-प्रदान सुनिश्चित करते हैं। चोट या फिर किसी अन्य कारण से इनके निष्क्रिय पड़ने से कोशिकाओं के बीच संवाद ठप पड़ जाता है। 'एक्जान' के दुरुस्त न होने पर व्यक्ति को लकवा मारने की शिकायत हो सकती है।

प्राकृतिक रूप से नहीं पैदा होता है प्रोटीन

'हाइपर-इंटरल्युकिन-6' क्षतिग्रस्त 'एक्जान' की मरम्मत के लिए जरूरी एक ऐसा प्रोटीन है, जो प्राकृतिक रूप से पैदा नहीं होता। रीढ़ की हड्डी में इसका उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए विशेषज्ञों को जेनेटिक इंजीनियरिंग तकनीक से तैयार खास वायरस का सहारा लेना पड़ता है।

इनसानों पर आजमाइश की तैयारी

शोधकर्ताओं ने दावा किया कि नई जीन थेरेपी न सिर्फ रीढ़ की हड्डी, बल्कि मस्तिष्क में मौजूद तंत्रिका तंतुओं को भी सक्रिय करने में कारगर है। ये तंतु हाथ-पैर में हरकत पैदा कर चलने-फिरने की क्षमता निर्धारित करते हैं। अब यह तकनीक इनसानों पर आजमाने की तैयारी चल रही है।

हाथों में जान भरने वाली पट्टी तैयार

ब्रिटिश शोधकर्ताओं ने कुछ महीने पहले एक विशेष पट्टी तैयार की थी, जो कंधे की कमजोर हो चुकी मांसपेशियों की मरम्मत में सक्षम है। उन्होंने दावा किया था कि यह पट्टी 15 दिनों में लकवाग्रस्त मरीजों के हाथों में जान लौटा देगी। डाक टिकट के आकार की इस पट्टी को सर्जरी के जरिये कंधे में प्रतिरोपित किया जाता है। ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा ने इस के इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है।

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