ज़हरीला धुआं, दमघोंटू हवा-फैक्ट्रियों में जल रही पॉलीथिन

आरडीएफ की अनुमति के बहाने प्रतिबंधित कचरा जलाने से तबाह हो रहा जीवन, सांस लेना भी मुश्किल;

Update: 2025-06-09 09:58 GMT

मुजफ्फरनगर। औद्योगिक क्षेत्रों में बढ़ते प्रदूषण को लेकर प्रशासन जहां एक ओर जागरूकता फैलाने के दावे कर रहा है, वहीं दूसरी ओर फैक्ट्रियों में खुलेआम पर्यावरण नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। जनपद में औद्योगिक क्षेत्र के साथ ही अन्य स्थानों पर चल रही कुछ फैक्ट्रियों द्वारा प्रतिबंधित ईंधन दृपॉलीथिन और ठोस कचरा जलाए जाने का मामला सामने आया है, जिससे न केवल स्थानीय पर्यावरण प्रभावित हो रहा है, बल्कि लोगों के स्वास्थ्य पर भी गंभीर खतरा मंडरा रहा है। यहां पर एक पेपर मिल का गोदाम भी ठोस कचरे का अवैध भंडारण पकड़ा गया और गोदाम सील भी किया गया था। इन फैक्ट्रियों में रात्रि के समय जब निगरानी कम होती है, तब बड़ी मात्रा में पॉलीथिन, रबर, प्लास्टिक और घरेलू ठोस कचरा जलाया जाता है। इससे उठने वाला काला धुआं पूरे इलाके को धुंधला कर देता है और सांस लेने में तकलीफ की शिकायतें आम हो गई हैं। शिकायतों के बावजूद कार्यवाही के नाम पर केवल खानापूरी हो रही है।

जनपद में आज भी पंजाब, हरियाणा और दिल्ली से अवैध रूप से ठोस कचरा लाया जा रहा है। इसमें प्रतिबंधित पॉलीथिन भी शामिल है। इस कचरे को नियमों के अनुसार बताकर फैक्ट्रियों में इसको जलाने की अनुमति प्रदान करते हुए विभागीय अधिकारी और जिला प्रशासन के अफसर भी मौन साधे हुए हैं, जबकि लोगों को गंभीर प्रदूषण का सामना करते हुए गंभीर बीमारियों से लड़ना पड़ रहा है। अफसरों की चुप्पी के कारण अवैध कचरे के ईंधन से लोगों का दम घुटने लगा है और हवा लगातार जहरीली हो रही है। पूर्व में भी जनपद एक्यूआई के मामले में यूपी में सबसे खतरनाक स्तर पर टॉप पर बना रहा है। ऐसी फैक्ट्री क्षेत्र के पास ही रहने वाले लोग बताते हैं, कि रोजाना रात के समय फैक्ट्रियों से बदबूदार धुआं निकलता है। बच्चों को खांसी और सांस लेने में दिक्कत हो रही है। हमने कई बार प्रशासन से शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। हालांकि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत पॉलीथिन और प्लास्टिक कचरे का जलाना स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित है, लेकिन प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की कार्रवाई न होने से यह सवाल उठता है कि आखिर क्यों इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा? विशेषज्ञों के अनुसार, प्लास्टिक और पॉलीथिन को जलाने से डाइऑक्सिन और फ्यूरन जैसे विषैले रसायन निकलते हैं, जो कैंसर, फेफड़ों की बीमारियों और त्वचा संबंधी विकारों का कारण बन सकते हैं। छोटे बच्चों और बुजुर्गों के लिए यह धुआं बेहद घातक है।

आरटीआई कार्यर्क्ता सुमित मलिक पीनना का कहना है कि हमने एक-दो बार नहीं बल्कि न जाने कितनी लिखित शिकायत जिला प्रशासन, शासन और प्रदूषण नियंत्रण विभाग में की है, लेकिन कोई निरीक्षण नहीं हुआ और न ही कोई ठोस कार्यवाही की गई, जबकि प्रतिबंधित पॉलीथिन को ईंधन के नाम पर जलाने से उद्योगों को नहीं रोका जा रहा है। अगर यही हाल रहा तो आने वाले समय में ये इलाका रेड ज़ोन घोषित करना पड़ेगा। उनका कहना है कि जहां एक ओर सरकार स्वच्छ भारत और पर्यावरण संरक्षण के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, वहीं दूसरी ओर कुछ उद्योगपति और लापरवाह फैक्ट्री मालिक अपने लाभ के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। जरूरत है कि प्रशासन तत्काल कार्रवाई करे और दोषियों को सख्त सजा दिलाए, ताकि भविष्य में कोई पर्यावरण और जनता के स्वास्थ्य से इस प्रकार खिलवाड़ न कर सके।

1 लाख तक जुर्माना और 5 साल तक की सजा का प्रावधान

मुजफ्फरनगर जनपद की कुछ फैक्ट्रियों में रात के अंधेरे में एक गुप्त और घातक खेल चल रहा है। यहां खुलेआम पॉलीथिन, प्लास्टिक और घरेलू ठोस कचरा जलाया जा रहा है, वो भी तब, जब केंद्र सरकार ने 2016 में इसे सख्त रूप से प्रतिबंधित किया है। प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2016 के अनुसार किसी भी प्रकार के प्लास्टिक/पॉलीथिन को जलाना दंडनीय अपराध है। इसमें 1 लाख तक जुर्माना और 5 साल तक की सजा का प्रावधान है। फिर भी इस कानून का पालन जमीन पर नहीं हो रहा। सरकार स्वच्छता और हरित ऊर्जा के बड़े-बड़े वादे करती है, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे कोसों दूर है। अगर यही हाल रहा तो आने वाले वर्षों में हमारा शहर प्रदूषण राजधानी कहलाएगा और हम अपनी अगली पीढ़ी को केवल जहर भरा वातावरण सौंप पाएंगे।

आरडीएफ में प्लास्टिक-पॉलीथिन जलाने की अनुमतिः गीतेश चन्द्रा

मुजफ्फरनगर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी गीतेश चन्द्रा का कहना है कि रिड्यूज ड्राई फ्यूल ;आरडीएफद्ध के लिए उद्योगों को विभागीय स्तर पर रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य कर दिया गया है। इसके लिए बनाये गये नियमों में शासन के द्वारा उद्योगों को प्लास्टिक-पॉलीथिन जलाने की अनुमति प्रदान की गई है। ठोस कचरे के रूप पॉलीथिन को आरडीएफ का ही इस हिस्सा माना गया है। क्षेत्रीय अधिकारी गीतेश चन्द्रा ने बताया कि जनपद मुजफ्फरनगर में प्रतिदिन दो हजार मीट्रिक टन से अधिक रिड्यूज ड्राई फ्यूल ;आरडीएफद्ध अर्थात निकायों, पंचायतों का वर्षों पुराना कूड़ा-कचरा जलाया जाता है। यह आरडीएफ दिल्ली, पंजाब और हरियाणा आदि राज्यों से मुजफ्फरनगर पहुंचता है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से आरडीएफ को जलाने की कई फैक्ट्रियों ने अनुमति ले रखी है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी 18 फैक्ट्रियों को नोटिस जारी किया था। विभाग कचरा के आवागमन के मानकों की जांच कर रहा है। इसी जांच की कड़ी में भोपा रोड स्थित एक पेपर मिल पर छापामार कार्यवाही में आरडीएफ का अवैध भंडारण पकड़े जाने पर गोदाम को सील करते हुए जुर्माना लगाने की कार्यवाही की गई है। 

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