undefined

मधुमेह के निदान के लिये अनुवांशिकी के उपयोग का नया तरीका

मधुमेह के निदान के लिये अनुवांशिकी के उपयोग का नया तरीका
X

आपको यह जानकार हैरानी हो सकती है कि मधुमेह के निदान के लिए अनुवांशिकी के उपयोग का एक नया तरीका भारतीयों में बेहतर निदान और उपचार का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। सीएसआईआर-कोशिकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र ;सीसीएमबीद्ध, हैदराबाद, केईएम अस्पताल, पुणे और एक्सेटर विश्वविद्यालय, यू.के. के शोधकर्ताओं द्वारा संयुक्त रूप से किए गए एक ताजा अध्ययन में यह बात उभरकर आयी है। अध्ययन में स्पष्ट किया गया है कि भारतीयों में टाइप-1 मधुमेह के निदान के लिए जेनेटिक रिस्क स्कोर प्रभावी हो सकता है। एक्सेटर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित जेनेटिक रिस्क स्कोर टाइप-1 मधुमेह की संभावना को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार ज्ञात विस्तृत आनुवांशिक जानकारी पर आधारित है। किसी व्यक्ति में टाइप-1 मधुमेह का पता लगाने के लिए निदान करते समय इस स्कोर का इस्तेमाल किया जा सकता है। मधुमेह के मामले में यूरोपीय आबादी के परिप्रेक्ष्य में अधिकतर अनुसंधान किए गए हैं। इस नये अध्ययन में पता चला है कि भारतीयों में टाइप-1 मधुमेह के निदान के लिए यूरोपीय रिस्क स्कोर कितना प्रभावी हो सकता है।

शोधकर्ताओं ने पुणे में रह रहे मधुमेह रोगियों पर अध्ययन किया है। अध्ययन में टाइप-1 मधुमेह के 262, टाइप- 2 मधुमेह के 352 और बिना मधुमेह के 334 लोगों को शामिल किया गया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ये सभी भारतीय ;इंडो-यूरोपियनद्ध वंश के थे। भारतीय आबादी के परिणामों की तुलना वेलकम ट्रस्ट केस कंट्रोल कंसोर्टियम के अध्ययन में शामिल यूरोपियन आबादी के साथ की गई है। इस शोध में पाया गया है कि यूरोपीय आंकड़ों पर आधारित अपने वर्तमान स्वरूप में भी यह परीक्षण भारतीयों में मधुमेह के सही प्रकार का निदान करने में प्रभावी है। शोधकर्ताओं को आबादी के बीच आनुवांशिक अंतर भी देखने को मिला है, जो भारतीय आबादी में बेहतर परिणामों के लिए परीक्षण में संभावित और उन्नत सुधार की ओर संकेत करते हैं। यह अध्ययन शोध पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया है।

Next Story