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अपनी सरकार में सशक्तिकरण को तरसती अंजू अग्रवाल

मुजफ्फरनगर शहर की प्रथम नागरिक बनकर लिये कई बड़े फैसले, विकास के शिखर पर पहुंचा शहर, पहली बार सभासदों को मिले बोर्ड फण्ड से विकास कार्य, किसी भी वार्ड से नहीं रखा भेदभाव, परोपकार की नीति से मिला हौसला, कर्जदार पालिका की आमदनी बढ़ाकर बनाया लाभकारी।

अपनी सरकार में सशक्तिकरण को तरसती अंजू अग्रवाल
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मुजफ्फरनगर। नगरपालिका परिषद् की तस्वीर और तकदीर अब सीमा विस्तार के प्रस्ताव की मंजूरी के साथ ही बदलाव की राह पर चल पड़ी है। भविष्य में कई नये आयाम यह पालिका हासिल करती नजर आ सकती है, पूर्व में विकास के पैमाने पर काफी चमक बिखेरी है, लेकिन मौजूदा बोर्ड में करीब पौने पांच साल में शहरवासियों ने जिस दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ काम करने वाली चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल के कार्यकाल के कामों को महसूस किया है, वह उनका यह कार्यकाल यादगार बताते हैं। कई ऐसे बोल्ड डिसीजन के लिए अंजू अग्रवाल का कार्यकाल हमेशा याद किया जायेगा। उन्होंने कई ऐसे कार्य किये, जो शायद ही कोई सोच पायेगा। सबसे बड़ा कार्य कर्जदार पालिका को आमदनी की राह पर लाकर यूपी की सबसे रिचेस्ट पालिका बनाकर उन्होंने दिखाया। आज पालिका के एक भी कर्मचारी का बकाया पालिका प्रशासन पर नहीं होना ही उनकी प्रशासनिक सूझबूझ को दर्शाता है। उन्होंने अनेक ऐसे कार्य किये, जो याद रखे जायेंगे। इनमें पालिका को कर्जा मुक्त बनाना, कर्मचारियों के सारे देयकों का भुगतान कराना, पहली बार सभासदों को बोर्ड फण्ड से काम मिलना, पालिका के खर्चो में बचत करना प्रमुख रूप से शामिल हैं। ऐसे ही कुछ कार्यों को हम यहां पेश कर रहे हैं।

16 करोड़ की कर्जदार पालिका को 60 करोड़ के लाभ में पहुंचाया


साल 2017 में जब अंजू अग्रवाल चुनाव जीतकर चेयरपर्सन बनीं तो शहर में दौरे पर निकलीं। लोगों ने कामों की लंबी फेहरिस्त उनको थमाई, अपेक्षा थी कि अब काम होगा। लेकिन पालिका कंगाल थी। 16 करोड़ रुपये का कर्ज बड़ा बोझ था। नाली पर एक टूटा चैनल लगाने की हैसियत भी नहीं थी। वह कहती हैं, जबकि कुछ रिटायर्ड कर्मचारी, उनके परिजन अपना बकाया मांगने उनके पास आते तो वह असहाय उनको निहारती। काम के लिए कहती तो टका सा जवाब मिलता, पैसा नहीं है। इस विपरीत स्थिति से लड़ते हुए उन्होंने पालिका को आमदनी बढ़ाने का रास्ता दिखाया और 16 करोड़ रुपये की पालिका को 60 करोड़ रुपये के लाभ में पहुंचाया। आज पालिका बोर्ड फण्ड में पैसे की कमी नहीं है। यह पैसा तब है जबकि पालिका के एक भी कर्मचारी का कोई बकाया नहीं है। वह कुर्सी से हटी तो कर्मचारियों को वेतन पाने और एरियर का भुगतान हासिल करने के संकट का सामना करना पड़ा। स्वायत्त शासन कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष गोपाल त्यागी ने आंदोलन को चेताया तो भुगतान हो पाया। अंजू अग्रवाल ने यह व्यवस्था लागू की जिसमें कर्मचारी को रिटायर्ड होने के दिन ही उनके देयकों के भुगतान का चेक मिला। कई कर्मचारी की चाहत है कि वह उनके कार्यकाल में ही रिटायर्ड हो जायें, क्योंकि उनको देखा है कि किस प्रकार कर्मचारियों को अपना पैसा पाने के लिए दर दर भटकना पड़ा।

एलईडी लाइट खरीद में सूझबूझ से बचाये थे 6 करोड़ रुपये


चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल पर आज टिपर वाहन खरीद में गड़बड़ी के आरोप है, अधिकार सीज है, उनके अनुसार निर्दोष होकर भी उनकी सुनवाई कहीं नहीं हो पाई, लेकिन अंजू अग्रवाल ने एलईडी लाइटों की खरीद में अपनी सूझबूझ से पालिका के 6 करोड़ रुपये बचाये थे। 14वें वित्त आयोग में पालिका को पैसा मिला था। शहर में पथ प्रकाश के लिए सोडियम और सीएफएल लाइटों को बदलकर एलईडी में परिवर्तित किया जाना था। तत्कालीन जिलाधिकारी ने विभागीय रिपोर्ट पर इसके लिए करीब 15 हजार से ज्यादा एलईडी लाइट खरीदने के लिए 8 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि खर्च करने के एस्टीमेट पर अपनी मंजूरी प्रदान की। वह चाहती तो इसी पर लाइट खरीद की जाती और ऐसे में बड़े स्तर पर धनराशि की बंदरबांट होती, लेकिन उन्होंने डीएम की मंजूरी के बाद भी बिला टैण्डर कराया और शहर में लगी 250 वॉट की 15 हजार सोडियम लाइटों को उतारकर उकने स्थान पर 90 एवं 45 वॉट की एलईडी लाइटें लगाने के लिए पारदर्शी व्यवस्था में 73 प्रतिशत बिलो पर टेण्डर प्राप्त किया। जो लाइट 8 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि में खरीदी जानी थी, वह लाइट उन्होंने करीब सवा दो करोड़ रुपये में खरीदी। जो पैसा बचा, उससे अन्य विकास कार्य कराये गये।

बिजली बिल कम कराकर बचाये 45 करोड़

शहर में पथ प्रकाश के लिए लगी सोडियम लाइटों के कारण करीब 90 लाख रुपये का बिजली बिल प्रतिमाह आता था। पूरे शहर की लाइटों को एलईडी में परिवर्तित कराये जाने के बाद इसमें कमी आई और जो बिल 90 लाख रुपये प्रतिमाह आ रहा था, वह 15 लाख रुपये प्रतिमाह हो गया। इससे शासन में बिजली बिल के कारण ग्रांट में होने वाली कटौती में भी कमी आई और 75 लाख रुपये प्रतिमाह बचत हुई। इस तरह से उन्होंने अपनी सूझबूझ से पालिका प्रशासन को आर्थिक संसाधन में मजबूत किया और अपने कार्यकाल में करीब 45 करोड़ रुपये की बचत की।

अपने खर्च पर दिया सेनिटाइजर, गाड़ी का नहीं लिया किराया

नगरपालिका में पंकज अग्रवाल से पूर्व के चेयरमैनों ने गाड़ी खर्च खूब लिया। पंकज की परम्परा को अंजू अग्रवाल ने कायम रखा। उन्होंने अपने कार्यकाल में गाड़ी या अन्य किसी प्रकार का निजी खर्च प्राप्त नहीं किया। यहां तक की कोरोना काल में महामारी से बचाने के लिए पूरे शहर का सेनिटाइजेशन के लिए वह सड़क पर रहीं और कोरोना संक्रमण भी उनको हो गया था। सेनिटाइजेशन के लिए उन्होंने सेनिटाइजर भी अपने निजी खर्च पर अपनी फैक्ट्री से दिलाया, ऐसा कोई भी चेयरमैन नहीं करके दिखा पाया। पूर्व में एक भाजपा चेयरमैन के कार्यकाल में उनकी ही दुकान से खरीदा गया कली चूना घोटाला सभी को याद होगा।

पालिका सभागार को संवारा, ठेकेदार का रोका भुगतान


30 साल से ज्यादा समय से पालिका के सभागार के जर्जर होने के कारण पुनःनिर्माण और सौन्दर्यकरण के लिए मांग उठती रही। इसके लिए कई चेयरमैन आये और चले गये, लेकिन यह सभागार अपनी बदहाली पर आंसू बहाता रहा। इसको लेकर भी अंजू अग्रवाल ने दृढ़ता दिखाई और आज एक भव्य सभागार सभासदों को समर्पित है। इसके लिए 10 करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्च किया गया। उनकी प्राथमिकता पर काम हुआ। सभासदों को फुली एसी हाल नई भव्यता के साथ मिला। लेकिन उनकी शक्ति कमजोर हुई तो ठेकेदार का भुगतान रोक दिया गया।

पीस लाइब्रेरी का ध्वस्तीकरण, बारातघर और श्मशान घाट बनाये


अंजू अग्रवाल ने पालिका की आमदनी बढ़ाने के लिए कई बोल्ड डिसीजन लिये, इनमें गृहकर और जलकर में वृद्धि का उनका विरोध हुआ, लेकिन यह पालिका हित में रहा। पालिका की आय बढ़ाने के लिए ही उन्होंने 100 साल पुरानी पीस लाइब्रेरी को ध्वस्त कराया, वहां पर एक भव्य शापिंग कॉम्पलेक्स बनाने की योजना परवान नहीं चढ़ पाई। इसके साथ ही उन्होंने बिना पुलिस प्रशासन के सहयोग से पालिका की करीब 3 बीघा भूमि को मुक्त कराकर 40 लाख का बजट खर्च कर वहां पर गरीबों के लिए बारात घर का निर्माण कराया, इसके साथ ही शहर को एक नये श्मशान घाट दिया। इस भूमि पर भी गंभीर विवाद था। वह लड़ी और श्मशान घाट बनाकर दिखाया, इसका लाभ जिनता को मिल रहा है।


इतना ही नहीं उन्होंने शहर में गर्मियों में जनता केा शीतल जल उपलब्ध कराने के लिए 50 स्थानों पर शीतल वाटर कूलर स्थापित कराये। नलकूपों को नई तकनीक से जोड़ा गया। पार्कों का सौन्दर्यकरण, महापुरुषों की प्रतिमाओं का सौन्दर्यकरण और जीर्णो(ार, महाराज अग्रसैन की प्रतिमा स्मारक का निर्माण, 2019 से लगातार नालों की सफाई का कार्य कराकर जलभराव की समस्या को निम्नतम बनाया और कई करोड़ रुपये की बचत की। इसके बावजूद भी अपनी ही सरकार में उनको सशक्तिकरण के लिए तरसना पड़ रहा है। उनके कामकाज को लेकर जो सवाल उठाये गये हैं, वह कई बार शासन ने ही निराधार साबित किये हैं। वह चार बिन्दुओं पर अपनी ही सरकार में घेरी गयी, लेकिन उनसे पहले 36 बिन्दुओं पर आरोपी बने चेयरमैन बहाल हो गये। अब देखना यही है कि आखिर शासन अंजू अग्रवाल के इन कार्यों को कहीं नोटिस में लेता है या शासन का नया फैसला भी वहीं जस का तस रहेगा।

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