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शासन से दुखी भाजपा की चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल

नगरपालिका परिषद् की चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल ने सीधे तौर पर शासन द्वारा की गयी कार्यवाही को एक प्रायोजित साजिश बताते हुए कहा कि शासन ने उनके हर सुबूत को दरकिनार दबाव में कार्यवाही की।

शासन से दुखी भाजपा की चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल
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मुजफ्फरनगर। नगरपालिका परिषद् की चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल ने शासन द्वारा उनको पद से हटाये जाने के मामले में बुधवार को अपना बयान जारी करते हुए शासन की कार्यवाही को दुर्भावना पूर्वक पा्रयोजित षडयंत्र का एक हिस्सा बताते हुए कहा कि वह पाई-पाई का हिसाब जनता को देने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि उनके द्वारा पालिका में एक भी पैसे का गबन, अनियमितता और घोटाला नहीं किया गया है। उन्होंने हाईकोर्ट के निर्धारित समय से दोगुने समय में जांच पूरी कर फ्रैश निर्णय करने पर भी सवाल उठाये और केन्द्रीय राज्यमंत्री डा. संजीव बालियान का बचाव भी किया है। उन्होंने कहा कि उनको ईश्वर पर भरोसा है कि इंसाफ होगा, लेकिन उनके ईमानदार कार्यकाल से उनको संतुष्टि है और विरोधी बैचेन रहे हैं।

हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ लिया शासन ने निर्णय


नगरपालिका परिषद् की चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल ने बुधवार को मीडिया को जारी किये गये अपने बयान में कहा कि प्रदेश शासन द्वारा 04 बिन्दुओं पर गैर संवैधानिक ढंग से मेरे अध्यक्ष पद के वित्तीय अधिकार 19 जुलाई 2022 को कावड़ यात्रा के दौरान सीज कर दिये गये। इस पर मेरे द्वारा उच्च न्यायालय, इलाहाबाद में योजित रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए 02 सितम्बर को शासन के आदेश को असंवैधानिक मानते हुए निरस्त किया गया तथा आदेश दिये गये कि यथाशीघ्र नियमानुसार सुनवाई करते हुए फ्रैश आदेश जारी करें। परन्तु किसी भी दशा में 14 दिन से अधिक की अवधि ना हो परन्तु शासन द्वारा हाईकोर्ट के आदेशों की अवहेलना करते हुए मुझे वित्तीय अधिकार प्रदत्त नहीं किये गये बल्कि 14 दिन के स्थान पर 39 दिन बाद हाईकोर्ट में निरस्त हुए उसी आदेश के उन्हीं बिन्दुओं पर मेरे वित्तीय अधिकार के साथ-साथ अब प्रशासनिक अधिकार भी समाप्त कर दिये गये। यह हाईकोर्ट के आदेश के विपरीत ज्यादा समय में कार्यवाही गलत है।

सुनवाई महज एक औपचारिकता ही थी


चेयरपर्सन ने कहा कि हाईकोर्ट में फैसला आने के बाद इस प्रकरण में 26 सितम्बर को मुझे सुनवाई के लिये शासन में बुलाया गया था। मैंने तमाम साक्ष्यों के साथ अपना पक्ष रखा परन्तु जारी किये गये आदेश में सुनवाई के किसी भी बिन्दु को सम्मिलित ही नहीं किया गया। इससे यह साफतौर से स्पष्ट हैं कि सुनवाई महज एक औपचारिकता ही थी। केवल दबाव एंव प्रभाव में मेरे विरूद्ध निर्णय लिया जाना प्रायोजित था। जबकि कोई भी आरोप मेरे पर सिद्ध नहीं होता है। मुझे बिना प्रतिपरीक्षण रिपोर्ट उपलब्ध कराये ही सुनवाई में बुलाया जाना एक औपचारिकता भर ही था।

झूठ का पुलिंदा है शासन का आरोप पत्र


चार बिन्दुओं के आरोप में टिपर आपूर्ति तथा उसका जीएसटी एंव वाल पेन्टिंग में कम जमानत धनराशि लगाये जाने एवं पोरटेबल काम्पेक्टर आपूर्ति के बिन्दु सम्मिलित करते हुए अनियमितता वर्णित की गयी। निर्गत आदेश में यह लिखना कि 11 टिपर में 4 या 5 चलना वर्णित किया गया है। जबकि बीएस-4 के 11 टिपर निरन्तर कूड़ा उठाने का कार्य कर रहे हैं तथा जो बीएस-06 के 05 टिपर फॅर्म द्वारा पालिका को आपूर्ति कराये गये हैं, वह विभागीय अधिकारियों की घोर लापरवाही के कारण कम्पनी बाग में निष्प्रयोजित खड़े हुए हैं। साथ ही टिपर की जीएसटी जमा करने मामले में सक्षम न्यायालय द्वारा आपूर्तिकर्ता फॅर्म की अपील स्वीकार करते हुए जीएसटी समायोजन पूर्व में ही किया जा चुका हैं। परन्तु इनका कोई भी उल्लेख आदेश में नहीं किया गया हैं, जिससे यह आदेश पत्र झूठ पर आधारित लगता है।

संजीव बालियान की शिकायत हो चुकी थी निस्तारित


अंजू अग्रवाल ने कहा कि जहाँ तक डा. संजीव बालियान, केन्द्रीय राज्यमन्त्री भारत सरकार के शिकायती पत्र का हवाला दिया गया हैं। यह पूर्व से ही मण्डलायुक्त, सहारनपुर द्वारा जैम-पोर्टल के माध्यम से हुई निविदा प्रकरण हाई लेविल कमेटी द्वारा जाँच करते हुए समाप्त किया जा चुका था। जबकि इन साक्ष्यों का कोई भी संज्ञान ना लेते हुए दोबारा वहीं प्रकरण उठाया गया हैं।

जब 5500 रुपये जमानत, ईओ ने 4.94 लाख की एफडी क्यों रिलीज की?


वाल पेन्टिंग में अंकन 5500 रूपये की जमानत लगाये जाने का उल्लेख किया गया। हैं जबकि कार्य सन्तोषजनक दर्षित करते हुए ईओ द्वारा अंकन 4,94,000 रूपये की जमानत धनराशि की एफडीआर ठेकेदार की अवमुक्त की गयी हैं। यह भी आरोपित किया गया कि वाल पेन्टिंग में जेई की बिना पैमाइश किये ही भुगतान किया गया हैं जबकि यह पूर्णरूपेण मिथ्या हैं, क्योंकि मैकेनिकल अवर अभियन्ता एवं विभागीय अधिकारियों द्वारा की गयी पैमाइश एंव सत्यापन व संस्तुति के उपरान्त भुगतान की कार्यवाही की गयी हैं। तमाम अभिलेख विभाग में अनुरक्षित हैं, कोई भी उनका मुआयना कर सकता हैं। लगाये गये तीन प्रथम आरोप स्वच्छ भारत मिशन से सम्बन्धित हैं, जिसमें शासनादेश द्वारा अधिशासी अधिकारी को पूर्ण उत्तरदायी माना गया हैं।

कॉम्पेक्टर का कंपनी को भुगतान नहीं, तो घोटाला कैसा?


अधिष्ठापित कराये गये दोनों पारटेबल काम्पेक्टर का सम्बन्धित फॅर्म को कोई भुगतान ही नहीं किया गया हैं, तो ऐसे में अनियमितता का प्रश्न ही नहीं हैं। इस प्रकार कोई भी आरोप सिद्ध ना होते हुए भी जबरन मेरे अधिकार समाप्त किये गये हैं। मेरे पावर्स सीज कर 135 विकास कार्य बाधित कर दिये गये हैं। अधिकांश कूड़ा वाहन मरम्मत के अभाव में पालिका के गैराज में खड़े हो चुके हैं। जबकि बोर्ड से मेरे द्वारा इन कार्यों को स्वीकृत कराया गया था। इसके पीछे किसकी क्या मन्शा हैं? मेरी समझ से बाहर हैं।

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