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कांग्रेस के चाणक्य अहमद पटेल का निधन

कांग्रेस वर्किंग कमेटी के वरिष्ठ सदस्य अहमद पटेल का आज सवेरे उपचार के दौरान निधन हो गया। कोरोना पॉजिटिव होने के बाद लगातार उनका स्वास्थ्य गिर रहा था। कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने सादगी पूर्ण राजनीतिक जीवन जिया।

कांग्रेस के चाणक्य अहमद पटेल का निधन
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नई दिल्ली। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल का बुधवार तड़के निधन हो गया। इस बात की जानकारी उनके बेटे फैजल पटेल ने ट्वीट के जरिए दी। इसके साथ ही फैजल ने सभी से कोरोना गाइडलाइंस का पालन करने की अपील भी की। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल को तकरीबन एक महीने पहले कोरोना हुआ था। इसके बाद उनका स्वास्थ्य काफी बिगड़ गया था। इस दौरान अहमद पटेल के कई अंगों ने भी काम करना बंद कर दिया था। इसके बाद उन्हें गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती करवाया गया। जहां बुधवार सुबह 3 बजकर 30 मिनट पर अहमद पटेल का निधन हो गया।

अहमद पटेल के निधन के बाद राहुल गांधी ने ट्वीट कर अपनी शोक संवेदना उनके परिवार के प्रति जाहिर की है। इसमें उन्होंने कहा कि अहमद पटेल कांग्रेस के एक मजबूत किलर रहे हैं। वह कांग्रेस के लिए जिए और कांग्रेस के लिए ही उनकी हर एक सांस समर्पित रही है। राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में यह भी कहा कि कांग्रेस को संकट के समय अहमद पटेल ने काफी सहारा दिया है।

26 साल की उम्र में बने थे देश के सबसे युवा सांसद, कभी मंत्री पद नहीं लिया, संगठन में किया काम

आपतकाल के चलते 1977 के लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस औंधे मुंह गिरी थी और गुजरात ने उसकी कुछ साख बचाई थी, तो अहमद पटेल उन मुट्ठीभर लोगों में एक थे, जो संसद पहुंचे थे। अहमद पटेल 1977 में 26 साल की उम्र में भरुच से लोकसभा चुनाव जीतकर तब के सबसे युवा सांसद बने थे। उनकी जीत ने इंदिरा गांधी समेत सभी राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया था। इसके बाद 1980 और 1984 में इसी भरुच सीट से जीतकर सांसद पहुंचे थे। 1980 में कांग्रेस की वापसी के बाद जब इंदिरा गांधी ने अहमद को कैबिनेट में शामिल करना चाहा, तो उन्होंने संगठन में काम करने को प्राथमिकता दी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी ने विरासत संभाली। राजीव ने 1984 चुनाव के बाद अहमद को मंत्रीपद देना चाहा, लेकिन अहमद ने फिर पार्टी को चुना।

राजीव के रहते उन्होंने यूथ कांग्रेस का नेशनल नेटवर्क तैयार किया। इसके अलावा 1977 से 1982 तक पटेल गुजरात की यूथ कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। सितंबर 1983 से दिसंबर 1984 तक वो कांग्रेस कमेटी के जॉइंट सेक्रेटरी रहे। 1985 में जनवरी से सितंबर तक वो प्रधानमंत्री राजीव गांधी के संसदीय सचिव रहे। उनके अलावा अरुण सिंह और ऑस्कर फर्नांडिस भी राजीव के संसदीय सचिव थे। साल 1985 से जनवरी 1986 तक पटेल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रहे। कांग्रेस के तालुका पंचायत अध्यक्ष के पद से करियर शुरू करने वाले अहमद पटेल जनवरी 1986 में गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष बने, जो वो अक्टूबर 1988 तक रहे।

1991 में जब नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने, तो अहमद पटेल को कांग्रेस वर्किंग कमेटी का सदस्य बनाया गया, जो वो अब तक बने रहे। 1996 में कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष बने, उस समय सीताराम केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष थे। हालांकि, साल 2000 में सोनिया गांधी के निजी सचिव वी जॉर्ज से उनके रिश्ते बिगड़ गए, जिसके बाद उन्होंने ये पद छोड़ दिया था। इसके बाद वो अगले ही साल सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार बन गए।

हमेशा लो प्रोफाइल रहा कांग्रेस का यह चाणक्य

10 जनपथ का चाणक्य कहा जाता था। गांधी परिवार के सबसे करीब और कांग्रेस के बेहद ताकतवर असर वाले अहमद लो-प्रोफाइल रहते थे और खुद को साइलेंट मोड पर रखते थे। गांधी परिवार के अलावा किसी को नहीं पता कि उनके दिमाग में क्या रहता था। 2004 से 2014 तक केंद्र की सत्ता में कांग्रेस के रहते हुए अहमद पटेल की राजनीतिक ताकत सभी ने देखी है। कांग्रेस संगठन ही नहीं बल्कि सूबे से लेकर केंद्र तक में बनने वाली सरकार में कांग्रेस नेताओं का भविष्य भी अहमट पटेल तय करते थे। यूपीए सरकार में पार्टी की बैठकों में सोनिया जब भी ये कहतीं कि वो सोचकर बताएंगी, तो मान लिया जाता कि वो अहमद पटेल से सलाह लेकर फैसला करेंगी। यहां तक कि यूपीए 1 और 2 के ढेर सारे फैसले पटेल की सहमति के बाद लिए गए। यही नहीं कांग्रेस की कमान भले ही गांधी परिवार के हाथों में रही हो, लेकिन अहमद पटेल के बिना पत्ता भी पार्टी में नहीं हिलता था।

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