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MUZAFFARNAGAR--अवैध कब्जे पर टिका देशी शराब का कारोबार

आबकारी विभाग ने आंखें मूंदकर अतिक्रमण पर छोड़ दिया ठेका, पालिका भी कार्यवाही को लेकर कर रही आनाकानी, ईओ ने शिकमी किरायेदार को नोटिस देने से किया इंकार, जांच कराने का कर रहे बहाना, भोपा पुल के नीचे सरकारी भूमि पर अतिक्रमण कर चलाया जा रहा है बरसों से अवैध ठेका।

MUZAFFARNAGAR--अवैध कब्जे पर टिका देशी शराब का कारोबार
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मुजफ्फरनगर। नियम कायदों पर ताक पर रखकर पुलिस की नाक के नीचे ही अवैध रूप से शराब के कारोबार को सरकारी मान्यता के साथ धड़ल्ले से चलाने की अनुमति विभाग ने जारी कर रखी है, जबकि जिसके नाम देशी शराब का ठेका चलाने का लाइसेंस जारी किया गया है, उसके पास न तो उस स्थान का मालिकाना हक है और न ही कोई किरायानामा है, बल्कि पालिका के अनुसार अवैध रूप से कब्जा कर देशी शराब का ठेका और कैंटीन बेखौफ होकर चलाई जा रही है। पालिका प्रशासन भी इस मामले में शिकायत के बावजूद हीला हवाली का रहा है और शिकमी किरायेदार के रूप में काबिज व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही करने के बजाये पल्ले झाड़ रहा है। खुद ईओ ने इस मामले में नोटिस देने से साफ इंकार कर दिया है।

शहर के बीच ही एसपी क्राइम के दफ्तर के पास ही भोपा पुल के नीचे बरसों से देशी शराब का ठेका चल रहा है। पूर्व में यह ठेका पुलिस कार्यालय के पास था, लेकिन वहां पर कार्यालय की बिल्डिंग बन जाने के बाद खोखा पुल के नीचे लगा लिया गया। वर्तमान में यहां पर काूल पुत्र मूसा निवासी गांव मिंडकाली के नाम आबकारी विभाग से देशी शराब का ठेका और कैंटनी चलाये जाने का लाइसेंस दिया गया है। जबकि जिस खोखे में देशी शराब का ठेका चलाया जा रहा है। वह पालिका की धरोहर के रूप में रहा है और पालिका इसके लिए साल 1976 से किराया वसूली करती आ रही थी, लेकिन साल 2013 से पालिका को किराया भी नहीं दिया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि पालिका प्रशासन इस बात से अंजान है, लेकिन कर विभाग के एक लिपिक और अन्य कर्मचारियों के साथ सीधे अधिकारियों की मिलीभगत से शहर के बीच और पुलिस अफसरों की नाक के नीचे ही सरकारी भूमि पर किये गये अतिक्रमण में एक तरह से शराब का अवैध कारोबार किया जा रहा है।

साल 1976 में पालिका ने दिया था खोखा रखने का लाइसेंस

पालिका सूत्रों के मुताबिक 25 अपै्रल 1976 को सिविल लाइन निवासी रामानंद को नगरपालिका परिषद् की ओर से भोपा पुल के पास एक लकड़ी का खोखा रखकर व्यापार करने के लिए नियमानुसार शुल्क जमा कराने के बाद लाइसेंस निर्गत किया था। पालिका ने रामानंद को प्रतिमाह निर्धारित किराया जमा कराये जाने के निर्देश भी दिये गये। इसके बाद रामानंद ने इस खोखे पर पालिका से तय किरायानामा जमा कराते हुए आबकारी विभाग से देशी शराब का लाइसेंस प्राप्त कर लिया था। पालिका प्रशासन के दावे के अनुसार इसके बाद से लगातार आबकारी विभाग इस खोखे में देशी शराब का ठेका चलाने के लिए अनुमति प्रदान करता चला आ रहा है, वहीं पालिका प्रशासन भी किराया जमा होने पर प्रतिवर्ष इस खोखे के लिए लाइसेंस नवीनीकरण करता रहा है।

साल 2013 के बाद न तो इस खोखे के लिए कोई किराया पालिका में जमा किया गया है और न ही पालिका ने इस खोखे में कारोबार के लिए किसी को लाइसेंस नवीनीकरण दिया है। यानि की करीब 10 साल से यह खोखा अवैध रूप से चल रहा है और इसमें देशी शराब का ठेका होने के कारण अवैध कब्जे पर कारोबार चलाया जा रहा है। इसको लेकर न तो आबकारी विभाग नींद से जागा और न ही पालिका प्रशासन ने आंखों खोलने का काम किया है। इस मामले में शिकायत हुई तो पालिका में कुछ हलचल पैदा होने लगी, लेकिन अवैध कारोबार को बचाने के लिए मिलीभगत इतनी गहरी रही कि खुद ईओ ने पालिका के खोखे में अवैध रूप से काबिज व्यक्ति को बेदखल करने या उसके खिलाफ कार्यवाही कराने से साफ इंकार कर दिया है।

पालिका के अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत

पालिका सूत्रों का कहना है कि इस मामले में जिला आबकारी अधिकारी के लिए पत्र देने की बात चली तो इस नोटिस पर भी ईओ ने हस्ताक्षर करने से साफ इंकार कर दिया है। इसको लेकर पालिका में अंदरूनी उठापटक भी चलने लगी है। मामला कर विभाग के एक लिपिक और अन्य कर्मचारियों के साथ ही पालिका के अफसरों के साथ शराब ठेके के लाइसेंसधारी कालू पुत्र मूसा निवासी गांव मिन्डकाली से साठगांठ का है। ईओ हेमराज सिंह का इस मामले में कहना है कि उन्होंने नोटिस देने से इंकार नहीं किया है, बल्कि पहले मामले की जांच कर रिपोर्ट मांगी गयी है। यदि कोई अवैध कब्जा पाया जायेगा तो कार्यवाही होगी। मामले की जांच सम्बंधित राजस्व निरीक्षक विजय कुमार को सौंपी गयी है। वहीं आबकारी विभाग के निरीक्षक शहर अनिल कुमार का कहना है कि विभागीय स्तर पर जहां दुकान के लिए विज्ञप्ति निकाली है, उसके लिए ठेकेदार को सौ मीटर के दायरे की चैहददी विभाग को दी जाती है, वहां जिस स्थान पर वो दुकान दर्शाता है, उसका किरायानामा या मालिकाना हक के लिए रजिस्ट्री भी दिये जाने का प्रावधान है। इस मामले में उनको जानकारी नहीं है कि पालिका से खोखे का किराया जमा नहीं किया जा रहा है। यह सीधे तौर पर ठेकेदार की जिम्मेदारी है और इसके लिए पालिका को कार्यवाही करनी चाहिए।

पालिका का 3.72 लाख किराया बकाया

मुजफ्फरनगर में भोपा पुल के नीचे जिस खोखे में देशी शराब का ठेका वर्तमान में ठेकेदार कालू के द्वारा चलाया जा रहा है, उस पर पालिका का करीब दस साल का किराया बकाया चला आ रहा है, ऐसे में पालिका का करीब 3.72 लाख रुपया ठेकेदार पर बाकी है, जिसकी वसूली के लिए कभी कोई भी कार्यवाही ही नहीं की गयी। यहां तक 2013 से इस खोखे के लिए 3100 रुपये प्रतिमाह के किराये में भी पालिका प्रशासन के द्वारा नियमानुसार किराया बढोतरी भी नहीं की है। जबकि शिकमी किरायेदारी के लिए पालिका की मार्किट में व्यापार कर रहे व्यापारियों के खिलाफ पालिका प्रशासन लगातार नोटिस देने की कार्यवाही करता रहा है। पालिका की यह हीला हवाली आपसी मिलीभगत की ओर खूब इशारा करती है।

राजस्व के कारण अवैध कारोबार से मूंदी अफसरों ने आंख

देशी शराब की बिक्री से आम तौर पर मध्यम और निम्न वर्गीय लोगों के ही जुड़े रहने का दावा किया जाता है। भोपा पुल के नीचे अवैध रूप से कब्जा करते हुए पालिका के जिस खोखे पर कालू ठेकेदार के द्वारा देशी शराब और कैंटीन का कारोबार किया जा रहा है, उसमें विभागीय नियमों की धज्जियां तो उड़ ही रहीं है, इस ठेके से हो रही विभागीय राजस्व की प्राप्ति के कारण अफसर भी अवैध कारोबार से आंख मूंदकर बैठे हुए हैं। सूत्रों का दावा है कि इस ठेके से सीधे तौर पर निम्न वर्गीय लोगों से जुड़ी अनेक बस्तियां लगती हैं। इनमें धानकों की बस्ती, सांई धाम तक का एरिया, मिस्त्रयों की दुकानें और रेलवे लाइन पर आने वाले मजदूरों की संख्या के साथ ही रेलवे स्टेशन होने के कारण यात्रियों और अन्य लोगों के आवागमन ठेके की कमाई के प्रमुख माध्यम बने हुए हैं। यहां पर दिन रात देशी शराब के शौकीनों का जमावडा लगा रहता है। ठेके के बराबर में ही कैंटीन भी नियमों की अनदेखी कर चलाई जा रही है और ज्यादातर लोग यहीं पर शराब पीते देखे जा सकते हैं। इस ठेके के कारण करीब 70 से 80 लाख रुपये की आय प्रतिमाह होने का दावा किया जाता है। इतनी मोटी राजस्व प्राप्ति के कारण ही इस ठेके के अवैध कब्जे को लेकर कोई कार्यवाही नहीइं की जा रही है।

जिला आबकारी अधिकारी बोले-लाइसेंस निरस्त नहीं हो सकता

जिला आबकारी अधिकारी राकेश बहादुर सिंह का कहना है कि नगरपालिका से कोई पत्र या नोटिस देशी शराब ठेके के लिए उनको नहीं मिला है न ही इसके लिए पालिका से किसी ने सम्पर्क कर कोई जानकारी मांगी है। उनका कहना है कि लाइसेंसी जो कोई भी है, उसके द्वारा चैहद्दी पर ही लाइसेंस निर्गत किया जाता है, जोकि नियमानुसार होनी चाहिए। हमारे नियम में किरायानामा या रजिस्ट्री होने की पाबंदी नहीं है। यदि अवैध कब्जा है तो इसको जिला प्रशासन या पालिका प्रशासन देखे, उनकी जिम्मेदारी है। इसमें राजस्व निहित है तो विभागीय स्तर पर अचानक ही अवैध कब्जा होने की शिकायत पर लाइसेस निरस्त नहीं किया जा सकता है।

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