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मुजफ्फरनगर....पालिका में अब वेतन को तरसे कर्मचारी

हाईकोर्ट के आदेश से बहाल चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल के आने के बाद से पालिका में कामकाज हुआ ठप, बैंक का पालिका प्रशासन को भुगतान से इंकार, नवम्बर माह की सैलरी अटकने से परेशान हुए नियमित, संविदा और आउट सोर्सिंग कर्मचारी, करीब साढ़े चार करोड़ का भुगतान रूका, चेयरपर्सन ने बैंक में भेजे हैं अपने हस्ताक्षर, हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद अभी तक पालिका में नगर मजिस्ट्रेट के पास है पॉवर।

मुजफ्फरनगर....पालिका में अब वेतन को तरसे कर्मचारी
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मुजफ्फरनगर। नगरपालिका परिषद् की चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल के अधिकार और उनके कार्यकाल को लकर अभी तक भी तस्वीर साफ नहीं हुई, लेकिन अंजू अग्रवाल के अडिग रहने के कारण अब इसका प्रभारी पालिका पर पड़ रहा है। पालिका में कर्मचारियों का वेतन रुक जाने से कर्मचारी अपने घर का खर्च चलाने के लिए परेशानी हो रहे हैं। संकट के इस समय में ईओ लगातार छुट्टी पर हैं और पालिका प्रशासक भी खामोशी अख्तियार किये हुए हैं। जिला प्रशासन ने भी आंख मूंद ली हैं तो ऐसे में बैंक ने हाईकोर्ट का मामला होने के कारण पालिका को तकरार खत्म होने तक भुगतान से इंकार कर दिया है।

कांवड यात्रा के बीच ही पालिका में शीर्ष स्तरीय नेतृत्व को लेकर शुरू हुआ शह और मात का खेल आज भी जारी है। शीर्ष नेतृत्व को लेकर चली उठा-पटक हर लिहाज से शहर की जनता को विकास के मामले में पीछे धकेलने वाली तो साबित हुई ही है, अब यह अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए भी परेशानी का सबब बन रही है। पालिका प्रशासन के मुताबिक पालिका के निर्वाचित बोर्ड का कार्यकाल 11 दिसंबर की रात 12 बजे समाप्त हो चुका है। बोर्ड का अब अस्तित्व ही नहीं रहा है, लेकिन इसके बावजूद भी चेयरपर्सन का हुकुम पूरी तरह से बजाया जा रहा है। चेयरपर्सन के पक्ष में आये हाईकोर्ट इलाहाबाद के आदेश को लेकर कोई भी 'रिस्क' उठाने को तैयार नहीं है। पालिका अध्यक्ष के कार्यकाल के लिए टाउनहाल स्थित कार्यालय के बोर्ड से लेकर कुर्सी तक अंजू अग्रवाल अपना कब्जा दिखा चुकी है। यही नहीं पालिका के बैंक खातों का संचालन उनकी मर्जी के बिना नहीं करने के लिए बैंक को भी पत्र लिखा गया था। ऐसे में अब पालिका में इस शीर्ष स्तरीय तकरार के कारण कर्मचारी पिस रहे हैं। उनका नवम्बर माह का वेतन रुक चुका है। वेतन न मिलने के कारण काफी कर्मचारी परेशान हैं और संविदा तथा आउस सोर्सिंग के कर्मियों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है।

बता दें कि 19 जुलाई को चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल के वित्तीय अधिकारी सीज होने के साथ ही पालिका में विकास कार्य पटरी से उतर गया था। इसके बाद से कभी शह और कभी मात के बीच हिचकोले खाती पालिका की शीर्ष गद्दी विकास कार्यों को लेकर तो कोई निर्णय कर ही नहीं पाई, बल्कि अब कर्मचारी और अधिकारियों के आर्थिक हितों पर भी कुठाराघात होने के कारण पालिका में हलचल मची हुई हैं। पालिका से प्रत्येक माह नियमित कर्मचारियों एवं संविदा व आउट सोर्सिंग के कर्मचारियों का वेतन अमूमन 8 से 10 तारीख तक हो जाया करता है, लेकिन नवम्बर माह का वेतन अभी तक भी भुगतान नहीं हो पाया है। वेतन रुक जाने के कारण कर्मचारियों के समक्ष आर्थिक रूप से दिक्कत बन रही है। सूत्रों के अनुसार पालिका प्रशासन के द्वारा वेतन के रूप में कर्मचारियों को करीब साढ़े चार करोड़ रुपये प्रति माह भुगतान किया जा रहा है। इनमें नियमित कर्मचारियों के साथ ही संविदा और आउट सोर्सिंग के कर्मचारी व अधिकारी शामिल हैं। इन कर्मचारियों के लिए कभी भी कोई रुकावट नहीं आई, लेकिन इस बार नवम्बर माह का वेतन शीर्ष नेतृत्व को लेकर बने असमंजस ने ब्रेक लगा दिया है। सूत्रों का कहना है कि अभी तक भी वेतन नहीं मिलने के कारण संविदा और आउट सोर्स कर्मचारियों का हाल बेहाल है। वेतन रुक जाने और अभी मिलने की कोई संभावना नजर नहीं आने के कारण कर्मचारियों मे हताशा बनी हुई है। इसके साथ ही 19 जुलाई के बाद से ही पालिका प्रशासन में कामकाज को लेकर वो उत्साह नहीं बन पाया। कभी हार जीत और कभी आचार संहिता ने शहर का विकास कार्य ठप कराकर रख दिया है। चेयरपर्सन ने जिन 135 विकास कार्यों को स्वीकृत कराया, उनमें से भी करीब आधे कार्य शुरू ही नहीं हो पाये हैं।

पालिका की लेखाकार प्रीति रानी ने बताया कि नवम्बर माह का वेतन अभी बैंक को नहीं भिजवाया जा सका है। उनका कहना है कि हाईकोर्ट इलाहाबाद के 24 नवम्बर के आदेश को लेकर चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल के द्वारा पालिका में 30 नवम्बर को पहुंचकर कार्यभार ग्रहण किया गया है, जबकि जिला प्रशासन या शासन की ओर से अधिकार हस्तांतरण का कोई आदेश नहीं मिला है। इस बारे में ईओ हेमराज सिंह की ओर से भी कोई आदेश विभागीय स्तर पर जारी नहीं किया गया है। उनका कहना है कि चेयरपर्सन के द्वारा पालिका के बैंक खातों का संचालन करने के लिए अपने हस्ताक्षर कोर्ट के आदेश की कॉपी के साथ बैंकों में भेजे जाने के बाद स्थिति विकट हो गयी है। उनका कहना है कि 30 नवम्बर के बाद से पालिका में सारा कामकाज प्रभावित हो गया है। शीर्ष स्तर पर कोई भी नेतृत्व स्पष्ट नहीं होने के कारण वेतन भी रूका हुआ है। अभी तक नवम्बर का वेतन मंजूर नहीं हुआ है, बैंक ने भी वेतन भुगतान के लिए तकरार के कारण अभी इंकार कर दिया है। इसके लिए मार्ग निर्देशन मांगा गया है। पालिका प्रशासन से भी सम्पर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन उनका फोन रिसीव नहीं हो पाया। कर्मचारियों में इसको लेकर रोष भी बना हुआ है। स्वायत्त शासन कर्मचारी महासंघ के महामंत्री तनवीर आलम का कहना है कि वेतन जारी कराने के लिए जिलाधिकारी से मिलकर अपनी बात रखी जायेगी। उनका कहना है कि कई संविदा कर्मचारी तो ऐसे भी हैं, जिनको दो महीने से वेतन नहीं दिया गया है। ऐसे कर्मचारी आर्थिक रूप से प्रताड़ित महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसके लिए जिलाधिकारी को कर्मचारियों और उनके परिवारों की समस्या को समझते हुए वेतन जारी कराये जाने के लिए कदम उठाने चाहिए।

बोले नगर मजिस्ट्रेट-मैं अब पालिका का प्रशासक नहीं

मुजफ्फरनगर नगरपालिका परिषद् में कर्मचारी और अधिकारियों को नवम्बर माह का वेतन नहीं मिलने के साथ ही ठेका कर्मियों को कई माह का वेतन नहीं मिल पाया है। इसको लेकर शीर्ष नेतृत्व को लेकर रार जिम्मेदार है। पालिका में प्रशासक माने जाने वाले नगर मजिस्ट्रेट अनूप कुमार से जब इस बारे में बात की गयी तो उनका दो टूक जवाब था कि मैं अब पालिका में प्रशासक नहीं हूं। वेतन नहीं मिल रहा है तो ईओ जवाब देंगे। ईओ की ही यह जवाबदेही है। चार्ज छोड़ने के सवाल पर वो कोई जवाब नहीं दे पाये और खामोश ही रहे। वहीं सूत्रों ने बताया कि उनके आदेश के बाद चेयरमैन कक्ष के बाहर बतौर प्रशासक लिखा गया उनका नाम भी मिटवा दिया गया है। अब वहां पर चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल की ही नेम प्लेट लगी है।

चेयरपर्सन ने कहा-अभी बाहर हूं, आकर होगा वेतन का इंतजाम

कानूनी लड़ाई लड़कर अपनी कुर्सी बचाने वाली नगरपालिका परिषद् मुजफ्फरनगर की चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल से फोन पर बात की गयी तो उन्होंने कहा कि अभी वो बाहर हैं और हाईकोर्ट का निर्णय आने के बाद मुझे चार्ज हो चुका है, लेकिन इन लोगों की धींगामुश्ती चल रही है। अब मुझे अपना अधिकार का प्रयोग करना होगा। ईओ लगातार छुट्टी पर चल रहे हैं, कामकाज नहीं हो रहा है। वेतन न मिलने से कर्मचारी परेशान हैं। कई माह का वेतन रुका हुआ है। वो बाहर से आकर इस मामले को देखंेगी और कर्मचारियों को वेतन दिलाने का काम किया जायेगा। इस लड़ाई में कर्मचारियों की कोई गलती नहीं है, उनका वेतन रोकना गलत परम्परा है। वहीं कर्मचारियों ने भी चेयरपर्सन से वेतन की समस्या को लेकर अपनी पीड़ा बताई है।

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