undefined

राजस्थान में पानी बचाने को नहर की रखवाली

371 किलोमीटर लंबे ऐरिया में नहर के पानी को चारी से बचाने के लिए 13 आईएएस और 10 आईपीएस अफसरों के साथ इंजीनियरों सहित 1200 कर्मचारियों को कतारब( कर नहर पर लगा दिया गया है। किसानों को पानी चोरी नहीं करने के लिए मुनादी कराई जा रही है। चोरी के मामले मिलने पर मुकदमा दर्ज हो रहा है।

राजस्थान में पानी बचाने को नहर की रखवाली
X

जैसलमेर। उत्तर प्रदेश में बिजली चोरी को रोकने के लिए नई सरकार के गठन के बाद बड़ा अभियान चलाया गया है। ऐसे में छोटे स्तर के अधिकारी ही फील्ड में रहकर यह अभियान थामे हुए है, लेकिन राजस्थान से आ रही खबर के अनुसार वहां पर जीवनोपयोगी पानी बचाने के लिए 371 किलोमीटर लंबी नहर की निगरानी के लिए अनोखी व्यवस्था की गयी है। नहर से पानी की चोरी को रोकने के लिए 13 आईएएस, 10 आईपीएस, दो चीफ इंजीनियर, तीन एडीशनल चीफ इंजीनियर, 14 थाने की पुलिस सहित करीब 1200 अधिकारियों-कर्मचारियों का पूरा लाव लश्कर 2000 क्यूसेक पानी की सुरक्षा में तैनात किया गया है।

गुरुवार को ही बीकानेर क्षेत्र के बज्जू के पास आरडी 961 पर पुलिस, आरएसी और नहर अभियंताओं ने गश्त लगाकर किसानों को चेतावनी दी कि पानी चोरी ना करें। वर्ना जेल जाना पड़ सकता है। उसके बाद नहर सूखने की स्थिति में पहुंच जाएगी। प्रशासन का कहना है कि नहरबंदी के दौरान सिर्फ 2000 क्यूसेक ही पानी होता है जो पीने के काम आता है। अगर इसमें चोरी हुई तो 10 जिलों की करीब दो करोड़ आबादी सीधी प्रभावित होती है। इसलिए सीएम कार्यालय से लेकर जल संसाधन, जलदाय, 10 जिलों के कलेक्टर-एसपी, तीन संभागीय आयुक्त, नहरी क्षेत्र के सभी मुख्य अभियंता समेत पूरे लाव लश्कर को पानी बचाने के लिए मैदान में उतार दिया गया है।

इस समय पश्चिमी राजस्थान के जिलों में कपास की फसल को बोने का समय है, खेत को पानी चाहिए होता है। ऐसे में मार्च से मई के बीच नहरबंदी होती है। नहर के करीब ढाई लाख हैक्टेयर क्षेत्र में कपास की फसल होती है। किसानों को इस वक्त पानी की सबसे ज्यादा जरूरत रहती है। इसलिए नहर से पानी की चोरी होती है। नहर विभाग नहरबंदी के बाद खरीफ की फसल के लिए जब तक सिंचाई का पानी देने के लिए अपनी मंजूरी प्रदान कर व्यवस्था करता है तो तब तक फसल बोने का समय बीत चुका होता है। ऐसे में किसान समय पर बिजाई करने के लिए पानी चोरी करते हैं। सबसे ज्यादा पानी चोरी अनूपगढ़ ब्रांच, खाजूवाला, पूगल, छत्तरगढ़ और बज्जू इलाके में होती है। लेकिन मुख्य नहर की रखवाली जैसलमेर तक करती पड़ती है। इसके लिए आरएसी के सैकडों जवानों को हथियारों के साथ तैनात किया गया है। 19 अप्रैल तक रखवाली इसलिए जरूरी है क्योंकि तब तक ही पीने का पानी नहर में चलेगा। उसके बाद पूरी तरह पानी बंद हो जाएगा। कपास की बुआई 15 अप्रैल से 15 मई तक की जा सकती है। यह पीक समय है। फसल 170 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इसकी औसत पैदावार लगभग 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है। प्रदेश में अलवर, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, जैसलमेर, बांसवाड़ा डूंगरपुर जिलों में इसकी पैदावार की जाती है। कृषि विभाग ने इस बार बीटी काटन की बुवाई के लिए एक लाख 40 हजार 500 हैक्टेयर क्षेत्रफल का लक्ष्य निर्धारित किया था। कपास ऐसी फसल है जिसके लिए नहर विभाग सिंचाई के लिए तो खरीफ में पानी देता है लेकिन जब उसकी बिजाई का समय होता है तब नहरबंदी होती है। ऐसे में सवाल है कि जिस फसल की बिजाई के लिए पानी नहीं तो सिंचाई के लिए देने का क्या मतलब। मजबूरी में इसीलिए किसान पानी चोरी का प्रयास करते हैं। एक सप्ताह में नहर विभाग ने तीन एफआईआर बज्जू इलाके में कराई है। किसान साइफन लगाकर पानी चोरी करते पकड़े गए हैं।

अधीक्षण अभियंता रेग्युलेशन हरीश छतवानी का इस मामले में कहना है कि पानी चोरी रोकने के लिए पुलिस-प्रशासन और आईजीएनपी अभियंता फील्ड में हैं। नहर पर गश्त हा़े रही है। नहरबंदी के दौरान ये पानी पीने के लिए है। किसानों को ये बात समझनी होगी कि अगर इस पानी को चोरी किया तो लोगों को पीने के लिए पानी कहां से मिलेगा। यही कारण है कि किसानों को पीने के पानी को बचाने के साथ ही जीवन की सुरक्षा के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए नहर की सुरक्षा के लिए यह कदम उठाये जा रहे हैं। किसान नहीं माने और पानी की चोरी की तो उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही करते हुए दंडित किया जायेगा। पूरा प्रशासन, पुलिस और विभागीय अफसरों की टीम दिन रात फील्ड में रहकर नहर की निगरानी करने में जुटी हुई है।

Next Story