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KAIRANA LOKSABHA-दादा की सियासी विरासत की नई पैरोकार इकरा

इकरा हसन को सपा का टिकट मिलने के बाद स्व. मुनव्वर हसन के परिवार में नई सियासी करवट का आगाज, कैराना सीट से मां तबस्सुम हसन भी दो बार रह चुकी हैं सांसद, भाई ने बनाया है विधानसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक का रिकाॅर्ड

KAIRANA LOKSABHA-दादा की सियासी विरासत की नई पैरोकार इकरा
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मुजफ्फरनगर। सियासत की बिसात पर जाट और मुस्लिम समीकरण का बेजोड़ इतिहास बनाने वाली कैराना लोकसभा सीट पर इस बार भी साल 2024 की सियासी जंग रोचक होने जा रही है। इस सीट पर रालोद के बाद कांग्रेस से भी गठबंधन टूटने के बाद समाजवादी पार्टी ने सबसे अपने सियासी पत्ते खोलने का काम किया है। मुजफ्फरनगर लोकसभा के बाद कैराना सीट पर सपा ने प्रत्याशी के नाम का ऐलान कर दिया है। जैसा की इन दोनों सीटों पर सपा की पसंद को लेकर सियासी गलियारों में चुगली थी, वैसा ही नजर भी आया है। इन दोनों ही सीटों पर दिग्गज सियासी परिवारों से सपा ने प्रत्याशी जनता को दिये हैं। मुजफ्फरनगर से पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पूर्व सांसद हरेन्द्र मलिक के बाद कैराना से सियासी बिसात के दिग्गज हसन परिवार की तीसरी पीढ़ी के रूप में लंदन रिटर्न इकरा हसन को टिकट दिया गया है। इकरा के नाम का ऐलान होते ही कैराना सीट के सियासी समीकरण भी नई करवट लेने लगे हैं और स्व. मुनव्वर हसन के परिवार में भी सियासत की नई रोशनी का आगाज हुआ है।


समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने हसन परिवार पर बना विश्वास कायम रखा है। कैराना की सियासत की बात करें तो इस सीट पर दो विपरीत ध्रुव रहे पूर्व सांसद हुकुम सिंह और पूर्व सांसद अख्तर हसन के परिवार का कोई भी सानी नहीं रहा है। दोनों ही दिग्गज नेताओं ने अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत इंडियन नेशनल कांग्रेस से की। अख्तर हसन कैराना लोकसभा सीट से 1984 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में सांसद निर्वाचित हुए। जबकि हुकुम सिंह को 2014 में मोदी लहर के चुनाव में इस सीट सी सांसदी मिली। हालांकि हुकुम सिंह ने साल 1974 में कैराना विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और विधायक बन गये थे और वो इस सीट पर सात बार विधायक चुने गये। वक्त बदला और एक ही पार्टी में रहने वाले अख्तर हसन व हुकुम सिंह का सियासी चोला बदल गया।


कैराना सीट पर अख्तर हसन की राजनीतिक विरासत को उनके बेटे स्व. मुनव्वर हसन ने बखूबी संभाला। वो 1992 और 1995 में लगातार दो बार जनता पार्टी के टिकट पर कैराना से विधायक निर्वाचित हुए। इसके बाद 1996 के आम चुनाव में उन्होंने सपा के टिकट पर कैराना लोकसभा से भाग्य आजमाया और विजयी रहे। साल 2004 में मुनव्वर को सपा ने मुजफ्फरनगर से मैदान में उतारा और यहां भी उनका भरपूर जादू चला और वो सांसद बने। उनकी पत्नी तबस्सुम हसन भी सियासत में परिवार की परम्परा को निभाने के लिए उतरीं और 2009 में बसपा प्रत्याशी के रूप में कैराना से सांसद निर्वाचित हुई। 2018 में उपचुनाव में रालोद के टिकट और सपा के गठबंधन में तबस्सुम फिर से सांसद बनीं।


अख्तर हसन की तीसरी पीढ़ी के रूप में नाहिद हसन ने अपने दादा और बाप की विरासत भी बखूबी संभाली है। उनका पहला चुनाव साल 2014 का लोकसभा चुनाव रहा। इसमें हुकुम सिंह के सामने वो पराजित हुए, हालांकि अक्टूबर 2014 में कैराना विधानसभा में हुए उपचुनाव में सपा प्रत्याशी के रूप में नाहिद ने हुकुम सिंह के भतीजे अनिल चैहान को पराजित कर पारिवारिक विरासत को जीवित किया। इसके बाद नाहिद ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और 2017 व 2022 के चुनाव में भी वो विधायक बने तथा जीत की हैट्रिक का रिकार्ड बनाया। मां को सांसद और भाई को विधायक बनाने के लिए इकरा हसन की भूमिका को कोई भुला नहीं सकता। 2018 का लोकसभा उपचुनाव और 2022 का विधानसभा चुनाव इकरा हसन के लिए एक बड़ी चुनौती बना था। मां के चुनाव में तो उनको विधायक भाई नाहिद का साथ भी मिला, लेकिन 2022 में नाहिद के जेल चले जाने के बाद इकरा इस सियासी बिसात में भाजपा के सामने अकेली खड़ी रह गई, लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने चुनाव में जिस सूझबूझ और राजनीतिक समझ को पेश किया, वो बेजोड़ रही तथा नाहिद जेल में रहते हुए ही तीसरी बार विधायक निर्वाचित हो गये। इस चुनाव ने इकरा हसन को पूरी तरह से सक्रिय राजनीति में स्थापित कर दिया। नाहिद की जीत के बाद समाजवादी पार्टी में भी इकरा हसन का वजूद बढ़ा और वो डिम्पल यादव के चुनाव में भी प्रचार करने के लिए बुलाई गई थीं। अब इकरा हसन अपने दादा की राजनीतिक विरासत को नई करवट देने के लिए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की ‘साइकिल’ पर सवार होकर जनसमर्थन से देश की संसद तक पहुंचने की तैयारी कर चुकी हैं। टिकट फाइनल होने के बाद वो अपने जनसम्पर्क को चुनाव प्रचार में बदलने की तैयारी में हैं।

लंदन में पढ़ी इकरा हसन दूसरे चुनाव को लेकर तैयार

पूर्व सांसद अख्तर हसन परिवार की बेटी इकरा हसन की लोकप्रियता किसी भी नामचीन नेता या व्यक्ति से कम नहीं है। उनके सोशल अकाउंट इसका प्रमाण हैं। इंटरनेट मीडिया पर इकरा हसन अपने समर्थकों में खास लोकप्रियता मौजूद है। इसके साथ ही सोशल साइटों पर उनके काफी संख्या में फालोअर्स भी हैं। इकरा हसन को समाजवादी पार्टी की ओर से प्रत्याशी घोषित करने पर भरपूर उत्साह है।


समाजवादी पार्टी के कैराना से लगातार तीसरी बार मौजूदा विधायक चैधरी नाहिद हसन की छोटी बहन इकरा हसन ने अपने भाई को बड़ी जीत दिलाने का काम किया था। इकरा हसन अपना यह दूसरा चुनाव लड़ने जा रही हैं। इससे पूर्व में जिला पंचायत सदस्य पद पर अपनी किस्मत आजमा चुकी हैं। इसमें उन्हें भाजपा के एमएलसी वीरेंद्र सिंह के पुत्र मनीष चैहान के सामने हार का सामना करना पड़ा था। कैराना लोकसभा सीट की यदि बात की जाए तो यहां 18 लाख के करीब मतदाता हैं, जिनमें करीब साढ़े पांच लाख मतदाता मुस्लिम, जबकि बाकी अन्य हिंदू मतदाता हैं। इकरा को प्रत्याशी घोषित कने के बाद राजनीतिक पंडित गणित निकालने में जुट गए हैं। अगर इकरा हसन की शिक्षा दीक्षा की बात की जाए तो वह एक हाई क्वालिफाइड नेत्री है। जिन्होंने लंदन की यूनिवर्सिटी से एलएलएम की शिक्षा प्राप्त की है। इसके अलावा वें पिछले करीब 9 वर्षों से क्षेत्र में रहकर सक्रिय राजनीति में सक्रिय है।जिसके चलते वर्तमान समय में क्षेत्र में इकरा हसन की लोकप्रियता चरम पर है। जिसे देखते हुए समाजवादी पार्टी ने इकरा हसन पर दाव खेला है।उनका सामना इस बार भाजपा के सांसद प्रदीप चौधरी से हो सकता है। वहीं बसपा भी यहां अपना मजबूत प्रत्याशी उतारेगी।

50 साल से राजनीति में स्थापित है हसन परिवार


पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में हसन परिवार के दबदबे से किसी को इंकार नहीं है। ये परिवार सक्रिय राजनीति के करीब पांच दशक पूरे कर चुका है। हसन परिवार के मुखिया अख्तर हसन ने नगरपालिका परिषद चुनाव में सभासद पद पर चुनाव लड़कर इस राजनीतिक विरासत की नींव रखी थी। वो जीतकर सभासद बने और फिर चेयरमैन की कुर्सी संभाली। करीब 40 साल पहले वह 1984 में कैराना लोकसभा सीट से लोकसभा सांसद रहे। अख्तर हसन ने अपने पुत्र मुनव्वर हसन को सियासी मैदान में उतारा, जिसने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता के दिलों में ऐसी अमिट छाप छोड़ी कि वह सबसे कम उम्र में चारों सदनों के सदस्य निर्वाचित होने का रिकाॅर्ड कायम कर गये। इस परिवार से इकरा हसन के दादा, बाप और मां सांसद रहे। मुनव्वर हसन और उनकी पत्नी तबस्सुम दो-दो बार सांसद बने, तो इकरा के भाई नाहिद हसन तीन बार से विधायक हैं। उनके चाचा अनवर हसन, अरशद हसन और कंवर हसन भी लोकसभा तथा विधानसभा के चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन तीनों को ही जीत नहीं मिली।

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