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Muzaffarnagar Palika-71 साल में केवल एक ब्राह्मण चेयरमैन

गुलाम भारत से आज तक कुर्सी पर काबिज रहे वैश्य समाज के लोग, सात दशक में दस वैश्य चेयरमैन, पंजाबी समाज से दो बार मिला शहर को निकाय अध्यक्ष, मुस्लिमों का कभी नहीं आया नम्बर।

Muzaffarnagar Palika-71 साल में केवल एक ब्राह्मण चेयरमैन
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मुजफ्फरनगर। सिटी बोर्ड बनाम नगरपालिका परिषद् मुजफ्फरनगर की कुर्सी का इतिहास गुलाम भारत से आजाद भारत के वर्तमान तक आ पहुंचा है। इस कुर्सी पर पहला अध्यक्ष साल 1946 में बना था। जब इस कुर्सी पर काबिज होने वाले व्यक्ति की पहचान सिटी बोर्ड अध्यक्ष के रूप में होती थी। इस पहले चेयरमैन से आज तक के करीब सात दशक से ज्यादा बीत चुके समय में शहरी सियासत की बिसात पर वैश्य समाज ही सिरमौर नजर आया है। चेयरमैनी की इस चुनावी बिसात पर अजय रहने वाले वैश्य समाज ने इन सात दशक में शहर को दस चेयरमैन दिये हैं। जबकि दो बार पंजाबी और एक बार ब्राह्मण समाज के हिस्से में भी शहरी सरकार की कमान आई है। जबकि मुस्लिम शहरी चेयरमैनी की इस कुर्सी के करीब तक तो पहुंचे, लेकिन अध्यक्ष बनने का रूतबा हासिल नहीं कर पाये। अब एक बार फिर इस सीट पर वैश्य समाज से दावेदारी मजबूत मानी जा रही है, लेकिन इस बार ब्राह्मण समाज भी इस जोरआजमाइश में मजबूत पंजा लड़ाने को तैयार खड़ा दिखाई दे रहा है। हालांकि सीमा विस्तार के बाद इस सीट के लिए दलित, जाट और मुस्लिमों की दावेदारी भी नई ताकत के साथ मजबूत अंगडाई ले रही है, लेकिन सियासी बिसात पर जातिगत राजनीतिक समीकरण का ऊंट किस करवट बैठेगा इसका पता आज से पूरे तीस दिन बाद ही चल पायेगा।

शहरी सियासत में बेजोड़ साबित हुआ वैश्य समाज

यूपी में नगरीय निकाय चुनाव का बिगुल बज चुका है। पहले चरण में शामिल जनपद मुजफ्फरनगर की दो पालिकाओं और आठ नगर पंचायतों में अध्यक्ष और सदस्य पदों के लिए नामांकन का दौर शुरू है, तो वहीं राजनीतिक पार्टियां भी अपने अपने प्रत्याशियों की घोषणा के लिए अंतिम दौर की चिंतन और मंथन में दिन रात जुटी हैं। इसमें सबसे ज्यादा जोर राजनीतिक पैमाने पर जातिगत समीकरण के लिए दिया जा रहा है। भाजपा हो या सपा, रालोद, कांग्रेस या दूसरे दल, सभी निकायों के जातिगत आंकडों के साथ ही पूर्व चुनावों के इतिहास को भी टटोल रहे हैं। ऐसे में यदि मुजफ्फरनगर पालिका के चेयरमैन पदों के चुनाव व इतिहास की बात करें तो यहां पर गुलाम भारत से लेकर आजाद भारत के अब तक हर चुनाव में वैश्य समाज के प्रत्याशी ही बेजोड़ साबित हुए हैं।

गुलाम भारत से आजाद भारत तक वैश्य समाज से ये रहे चेयरमैन

गुलाम भारत में सिटी बोर्ड के रूप में पहचान रखने वाले टाउनहाल में अध्यक्ष पद की कुर्सी पर साल 1946 में पहला अध्यक्ष चुना गया था। यह सम्मान वैश्य समाज को ही मिला। इस साल 28 मार्च को वैश्य समाज के आनन्द प्रकाश सिटी बोर्ड के पहले अध्यक्ष निर्वाचित घोषित किये गये। उन्होंने शहरी सरकार को मजबूती से चलाया। इसके बाद से अंजू अग्रवाल तक शहरी सरकार के मुखिया की इस कुर्सी पर वैश्य समाज का ही पूरा दबदबा बना रहा। 1946 से 2017 तक 71 साल के इतिहास में टाउनहाल में अध्यक्ष पद की कुर्सी पर 10 बार वैश्य समाज से चेयरमैन काबिज हुए हैं। इनमें आनन्द प्रकाश के बाद कीर्ति भूषण प्रकाश, ज्योति प्रसाद, जेपी अग्रवाल, केशव गुप्ता, विद्या भूषण, लक्ष्मी चंद सिंघल, कपिल देव अग्रवाल, पंकज अग्रवाल और अंजू अग्रवाल के नाम शामिल हैं। इन चेयरमैनों में से ज्योति प्रसाद, विद्या भूषण और केशव गुप्ता आदि ने प्रदेश की राजनीति में उच्च स्तरीय प्रसि(ि और रूतबा हासिल किया है।

पंजाबी समाज से दो बार चेयरमैन, डाॅ. सुभाष अकेले ब्राह्मण

शहरी निकाय की सिटी बोर्ड से पालिका बनने तक की इस सफर में पंजाबी समाज और ब्राह्मण समाज को भी शहरी विकास को आगे बढ़ाने का अवसर मिला। पंजाबी समाज से दो बार 1968 और 2000 में चेयरमैनी का मौका मिला। 1968 में पंजाबी समाज से चुन्नी लाल अनेजा और साल 2000 में भाजपा के टिकट पर जगदीश भाटिया निर्वाचित हुए। चुन्नीलाल जहां अप्रत्यक्ष चुनाव में बोर्ड सदस्यों द्वारा चेयरमैन चुने गये तो वहीं जगदीश भाटिया बदली व्यवस्था में जनता के बीच बैलेट पर पड़े वोट से निर्वाचित होकर इस कुर्सी पर पहुंचे थे। इसके साथ ही सिटी बोर्ड में चेयरमैनी के प्रत्यक्ष चुनाव का पहला प्रयोग भाजपा प्रत्याशी डाॅ. सुभाष चन्द्र शर्मा के लिए भी किस्मत का सितारा खोलने वाला साबित हुआ। साल 1995 में लक्ष्मी चंद सिंघल का कार्यकाल समाप्त होने के बाद दिसम्बर की सर्दी में निकाय चुनाव हुए तो चेयरमैन को चुनने के लिए पहली बार शहर की जनता ने वोटिंग की थी। इसमें भाजपा के डाॅ. सुभाष चंद शर्मा चेयरमैन निर्वाचित हुए थे, वो बोर्ड के पहले ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष भी रहे। उनके बाद इस समाज से कोई जीत नहीं पाया। भाजपा की बात करें तो 1995 से 2017 तक भाजपा ने इस कुर्सी के लिए दो बार ब्राह्मण, दो बार वैश्य और एक बार पंजाबी समाज को टिकट दिया। इनमें से तीनों ही समाज से भाजपा के चेयरमैन लगातार तीन चुनाव जीते।

पंकज के आने से वापस लौटा कांग्रेस का दौर

2012 में पंकज अग्रवाल ने 43 हजार से ज्यादा वोट लेकर कांग्रेस के टिकट पर भाजपा के संजय अग्रवाल और 2017 में उनकी चाची अंजू अग्रवाल ने कांग्रेस के ही टिकट पर 62 हजार से वोट लेकर भाजपा की सुधाराज शर्मा को पराजित किया। शहरी सीट पर अध्यक्ष पद के लिए मुस्लिमों की दावेदारी तो खूब रही, लेकिन कोई इस कुर्सी पर काबिज नहीं रह पाया। इतिहास को देखें तो 1947 में रफीक अहमद वरिष्ठ उपाध्यक्ष बने और इसके बाद 1960 में फिर से उनको यह मौका मिला, उनके बाद 1973 में मौहम्मद मजहर भी बोर्ड में वरिष्ठ उपाध्यक्ष के रूप में चुने गये और बोर्ड का नेतृत्व किया, लेकिन मुस्लिम अपना चेयरमैन बनाने के लिए आज तक कामयाबी तलाश रहे हैं। जबकि मुस्लिम समाज से कई बार मजबूत प्रत्याशी भी बड़ी पार्टियों से चुनाव मैदान में आये, इनमें सपा से राशिद सिद्दीकी और बसपा से जियाउर्रहमान आदि शामिल रहे। राशिद का चुनाव एक खूनी वारदात की कहानी बनकर रह गया और जियाउर्रहमान पिछले चुनाव में अपनी पत्नी को उतारने के बाद जमानत भी गवां बैठे। मुस्लिम सजा ने कांग्रेस प्रत्याशी अंजू अग्रवाल को भाजपा के खिलाफ भरपूर वोट देकर बसपा को नकार दिया था।

49 साल बाद चेयरमैनी में खिला था कमल

मुजफ्फरनगर सिटी बोर्ड में 49 साल के बाद कमल खिलाने में भाजपा सफल रही थी। साल 1995 में लक्ष्मी चंद सिंघल का कार्यकाल समाप्त होने के बाद निकाय चुनाव हुए तो इसमें चेयरमैन का चुनाव जनता के सुपुर्द कर दिया गया। भाजपा ने यहां डाॅ. सुभाष चन्द शर्मा को मैदान में उतारा। यह पहला भाजपा का टिकट था। यहां भाजपा ने 49 साल बाद डाॅ. सुभाष के रूप में अपना चेयरमैन जिताया। इसके बाद भाजपा के खिलाफ कोई नहीं टिक पाया। अगले चुनाव में भाजपा का टिकट पंजाबी समाज को मिला और जगदीश भाटिया के रूप में लगातार दूसरी जीत भाजपा को मिली। अगले चुनाव में भी भाजपा ने टिकट में नयापन लागू किया और इस बार वैश्य समाज से कपिल देव अग्रवाल को चुना गया। कपिल भी खरे उतरे और भाजपा ने शहरी सीट पर जीत की हैट्रिक लगाई। इसके बाद दो चुनाव से भाजपा वैश्य और ब्राह्मण को ही आजमाने में जुटी रही, लेकिन इन दोनों चुनाव में भाजपा को पराजय झेलनी पड़ी। इस बार भी भाजपा से वैश्य समाज को टिकट में तरजीह मिलने की भारी संभावना बताई जा रही हैं, तो भाजपा के सामने फिर से ब्राह्मण समाज से चुनौती पैदा हो सकती है, ऐसा रहा तो चुनाव 2017 की तर्ज पर भी वैश्य बनाम ब्राह्मण हो सकता है।

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