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Muzaffarnagar...अलनूर मीट प्लांट केस-सभी आरोपी बरी

साल 2006 में मीट फैक्ट्री पर हिन्दूवादी नेताओं ने किया था उग्र प्रदर्शन, आगजनी और तोड़फोड़ के आरोप में दर्ज हुआ था मुकदमा। एमपी एमएलए कोर्ट ने सुनाया अपना फैसला, सुबूत के अभाव में उमेश मलिक, ललित मोहन शर्मा, संजय अग्रवाल सहित 16 हिन्दूवादी नेता आरोपमुक्त।

Muzaffarnagar...अलनूर मीट प्लांट केस-सभी आरोपी बरी
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मुजफ्फरनगर। करीब 17 साल पूर्व जिले के साथ ही प्रदेश की राजनीति को हिला देने वाले अलनूर मीट प्लांट प्रकरण में भाजपा और हिन्दूवादी नेताओं के खिलाफ दर्ज हुए केस में मंगलवार को लंबे इंतजार के बाद विशेष अदालत का फैसला आया। इस केस में भाजपा के पूर्व विधायक उमेश मलिक सहित सभी 16 आरोपियों को अदालत ने पर्याप्त साक्ष्य नहीं होने पर संदेह का लाभ देते हुए आरोपमुक्त कर दिया। अदालत का फैसला आने के बाद उमेश मलिक सहित सभी लोगों ने इसे न्याय की जीत बताते हुए सत्यमेव जयते का उद्घोष कर खुशी का इजहार भी किया।

प्राप्त समाचार के अनुसार थाना सिखेड़ा क्षेत्र के गांव निराना में अलनूर मीट प्लांट को लेकर 2006 में काफी हंगामा हुआ था। उन्होंने बताया कि इस मामले में 14 अगस्त 2006 को सब इंस्पेक्टर इंदल सिंह ने पूर्व विधायक उमेश मलिक सहित 16 लोगों के विरु( संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया था। थाना सिखेड़ा के दारोगा इंदल सिंह ने मुकदमा दर्ज कराते हुए आरोप लगाया था कि 21 अगस्त 2006 को अलनूर मीट बंद कराने की मांग की जा रही थी, जिसको लेकर यज्ञमुनि की अध्यक्षता में 10 सदस्य समिति का गठन किया गया था। समिति सदस्यों ने अलनूर मीट प्लांट गेट के बाहर हवन-यज्ञ प्रारंभ कर दिया था। इसी के तहत 14 अगस्त को यज्ञमुनी ने अपने समर्थकों सहित फैक्ट्री गेट पर आने जाने वाले वाहनों को रोक दिया था। आरोप था कि इस मामले में जब पुलिसकर्मियों ने लोगों को समझाया तो उन्होंने अपने समर्थकों सहित पुलिस पर हमला बोल दिया था। मारपीट में कई पुलिसकर्मी घायल हुए थे। तोड़फोड़ और आगजनी की गई थी। मुकदमे में पूर्व विधायक उमेश मलिक, तत्कालीन शिवसेना नेता ललित मोहन शर्मा, हिंदूवादी नेता नरेंद्र पवार, रामानुज दुबे आरएसएस के संजय अग्रवाल, राजेश गोयल, राजीव मित्तल, ओमकार तोमर, वेदवीर, मामचंद, पप्पू, ब्रज कुमार चंद्रपाल और राजेश्वर समेत 16 लोगों के नाम शामिल हैं।


बचाव पक्ष के अधिवक्ता श्यामवीर सिंह ने बताया कि मामले की सुनवाई विशेष एमपी एमएलए कोर्ट अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश कोर्ट संख्या 3 गोपाल उपाध्याय की कोर्ट में हुई। इस प्रकरण में बहस और गवाही पूर्ण होने के बाद फैसले का इंतजार किया जा रहा था, पहले अदालत ने सोमवार को फैसले का दिन मुकर्रर किया था, लेकिन अधिवक्ताओं का नो वर्क होने के कारण फैसला नहीं दिया जा सकता था। इसके लिए मंगलवार का दिन तय हुआ और आज दोपहर सभी 16 आरोपी कोर्ट में पेश हो गये थे। दोपहर बाद विशेष अदालत के न्यायाधीश ने अपना फैसला सुनाते हुए सुबूत के अभाव में सभी 16 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए उनको मुकदमे से बरी कर दिया। अदालत का फैसला आने के बाद सभी ने करीब 17 साल चली इस मुकदमे की लड़ाई में अपनी जीत का सच और न्याय की जीत बताते हुए खुशी का इजहार किया और सभी हिन्दूवादी नेताओं ने एक दूसरे से मिलकर अपनी खुशी को साझा भी किया।

20 पर हुआ केस, एक की मौत, 16 का ट्रायल

अलनूर मीट प्लांट पर हिंसक प्रदर्शन में मुकदमा 20 लोगों पर दर्ज किया गया था। इसमें से एक आरोपी की मौत हो चुकी है और 16 लोगों पर मुकदमे का ट्रायल हुआ। बचाव पक्ष के अधिवक्ता श्यामवी सिंह एडवोकेट ने जानकारी देते हुए बताया कि 21 अगस्त 2006 के इस मामले में आज अदालत ने 16 आरोपियों को बरी किया है। उन्होंने जानकारी दी कि इस प्रकरण में 20 लोगों के खिलाफ थाना सिखेडा में मुकदमा दर्ज कराया गया था। इनमें से एक आरोपी की मौत हो चुकी है, जबकि तीन आरोपियों की पत्रावलियों को अलग कर दिया गया था। शेष 16 आरोपियों पर मुकदमा ट्रायल हुआ। सुनवाई के दौरान 13 गवाह पेश किये गये। पुलिस रिपोर्ट के अनुसार तत्कालीन थाना सिखेडा प्रभारी आरके यादव सहित छह लोग घायल हुए थे। श्यामवीर सिंह एडवोकेट के साथ ही बचाव पक्ष के अधिवक्ता के रूप में बिजेन्द्र सिंह मलिक और विक्रांत मलिक ने भी केस लड़ा।

अपनी पिटाई के सुबूत न दे सकी पुलिस

अलनूर मीट प्लांट पर अगस्त 2006 में हिन्दूवादी नेताओं के द्वारा घेराव प्रदर्शन के दौरान जब फैक्ट्री के गेट पर कब्जा करते हुए फैक्ट्री की लेबर, वाहनों और अन्य कर्मचारियों को घेराव करते हुए रोक लिया गया तो यहां पर तैनात फोर्स की हिन्दूवादी नेताओं के साथ तीखी झड़प हुई थी। थाने में दर्ज मुकदमे के अनुसार जब प्रदर्शनकारियों को समझाया गया तो उनके द्वारा उग्र प्रदर्शन करते हुए पुलिस फोर्स के लोगों पर भी हमला कर दिया गया। कई पुलिसकर्मियों की पिटाई की गई, जिसमें वो घायल हुए। इस प्रकरण में 16 साल 05 माह बाद मंगलवार को अदालत ने अपना फैसला दिया है। इतने लंबे समय में पुलिस अपनी ही पिटाई के सुबूत पेश करने में विफल रही है, जो पुलिस की जांच पड़ताल पर बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है। सूत्रों का कहना है कि अदालत में गवाही के दौरान भी पुलिस हॉस्टाइल हो गई थी। साक्ष्य नहीं होने का पूरा लाभ आरोपी बनाये गये लोगों को मिला।

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