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सियासी चोला बदलने को तैयार पंकज अग्रवाल!

पूर्व चेयरमैन और उद्योगपति पंकज का भी हो रहा कांग्रेस से मोहभंग, अखिलेश से हाथ मिलाने की चर्चा, एक शर्त पर अटकी है पंकज अग्रवाल की समाजवादी पार्टी में ज्वाइनिंग, राजनीतिक हलकों में हलचल तेज

सियासी चोला बदलने को तैयार पंकज अग्रवाल!
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मुजफ्फरनगर। यूपी में अगले साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव से पहले ही सियासी महत्वकांक्षा आये दिन सियासी दलों में नये सुरत ए हाल पैदा कर रही है। जनपद मुजफ्फरनगर इस बार कई बड़े नेताओं का नया सियासी सफरनामा तय करते हुए नई कहानी लिख रहा है। जिले के तीन पूर्व सांसदों के द्वारा दलबदल की चर्चाओं का दौर अभी कायम है और इसी को लेकर टिकट की स्थिति पर चौक-चौपालों पर सर्द रातों में सियासी शिगूफा गरमाहट पैदा कर रहा है। इन्हीं चर्चाओं के दौर में एक चर्चा ने बेहद जोर के साथ सियासी शोर मचाया है। इस शोर के अनुसार नगरपालिका परिषद् के चेयरमैन चुनाव में भाजपा के विजयी रथ को रोककर कांग्रेस को जीत का अहसाास कराने वाले उद्यमी पंकज अग्रवाल भी नई सियासी पारी खेलने का मन बना चुके हैं। पंकज अग्रवाल जल्द ही समाजवादी पार्टी में शामिल हो सकते हैं। अखिलेश यादव से बात तो हो चुकी है, लेकिन मामला एक शर्त पर अटक गया है।

जनपद में नगरपालिका परिषद् के चेयरमैन पद पर साल 2012 में हुए चुनाव में पेपर इंडस्ट्री से जुड़े प्रमुख उद्यमी पंकज अग्रवाल पुत्र लाल मूलचंद अग्रवाल को कांग्रेस ने टिकट देकर मैदान में उतारा था। इस सीट हुए चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी पंकज अग्रवाल ने भाजपा के संजय अग्रवाल को 5622 वोट से हराया। यह सीट लगातार तीन बार से भाजपा के पास थी। 8 जुलाई 2012 की रात 12 बजे आये नतीजों में कांग्रेस प्रत्याशी पंकज अग्रवाल ने 43,363 मत प्राप्त किए, जबकि उनके प्रतिद्वंदी भाजपा के संजय अग्रवाल को 37 हजार 741 मत मिले थे। तत्कालीन नगर मजिस्ट्रेट डा. इंद्रमणि त्रिपाठी ने पंकज अग्रवाल को सर्टिफिकेट प्रदान किया था। सपा समर्थन वाली प्रत्याशी कहकशां को 13,468 मत मिले और बसपा समर्थित जियाउर्रहमान को 11,221 वोट मिले थे। चेयरमैन बनने के बाद पंकज अग्रवाल ने शहर के विकास के लिए कई बड़े काम किये।

शहर को हरा भरा बनाने के लिए सुन्दर डिवाईडर उनकी ही देन रहे हैं। इसके बाद पंकज अग्रवाल ने साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर मुजफ्फरनगर सीट पर चुनाव लड़ा। मोदी लहर वाले इस चुनाव में भाजपा की आंधी चली और कांग्रेस के प्रत्याशी पंकज अग्रवाल चौथे स्थान पर रहकर मात्र 12 हजार 937 वोट ही पा सके थे। इसके बाद पंकज अग्रवाल राजनीतिक रूप से ज्यादा सक्रिय नहीं रहे, लेकिन वह कांग्रेस नेता के रूप में अपनी पहचान बनाये रखे हुए थे। 2017 में जब यूपी में निकाय चुनाव की घोषणा हुई तो फिर से कांग्रेस पार्टी का दबाव उन पर आया और वह सामान्य महिला के लिए सुरक्षित हुई चेयरमैन पद की सीट पर अपनी पत्नी आरती अग्रवाल को चुनाव लड़ाने का विचार बना चुके थे, लेकिन आरती ने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया तो उन्होंने अपनी चाची अंजू अग्रवाल के लिए कांग्रेस से टिकट लाने के साथ ही मोदी लहर के बावजूद भी उनको चुनाव जिताने में सफलता अर्जित की। अंजू अग्रवाल की जीत में पंकज अग्रवाल की रणनीति और परिवार की पहचान ने बड़ा काम किया। बिना किसी भी स्टार प्रचारक के अंजू अग्रवाल यह चुनाव जीती थी।

पंकज अग्रवाल इस चुनाव के बाद फिर से राजनीतिक रूप से अज्ञातवास में चले गये, लेकिन अब कई दिनों से उनके सियासी रूप से चोला बदलने की चर्चाओं ने नई राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है। मुजफ्फरनगर में चल रही इस हलचल का शोर उत्तराखण्ड के मसूरी में हाल ही में सम्पन्न हुए एक शादी समारोह में भी पूरे जोर से सुनाई दिया। सूत्रों के अनुसार पंकज अग्रवाल जल्द ही समाजवादी पार्टी में शामिल हो सकते है। इसके लिए अखिलेश यादव से पंकज अग्रवाल की बात हो चुकी है। इस मामले में सपा के ही एक बड़े नेता का दावा है कि पंकज अग्रवाल की सपा में ज्वाइनिंग के लिए हाईकमान ने 23 नवंबर की तारीख भी तय कर दी है, लेकिन इसी बीच पंकज अग्रवाल द्वारा रखी गयी एक शर्त के कारण यह मामला अभी लटक गया है। पंकज अग्रवाल सपा में सशर्त जाना चाहते हैं, लेकिन अखिलेश यादव ने उनको बिना शर्त आने का न्यौता दिया है। पार्टी के ही कुछ नेता इस मामले में अटकी बात को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं।

राजनीतिक दलबदल के लिए चल रही चर्चाओं को लेकर पूर्व चेयरमैन पंकज अग्रवाल से 'दैनिक नयन जागृति' संवाददाता द्वारा बात की गई तो उन्होंने इसको मात्र अफवाह बताते हुए कहा कि उनके पास लगातार लोगों के फोन आ रहे हैं, और वह जवाब देते हुए थक चुके हैं। उन्होंने अभी राजनीतिक रूप से कोई भी निर्णय नहीं लिया है, वह अपने कारोबार पर ध्यान लगाये हुए हैं। समाजवादी पार्टी को ज्वाइन करने की बात कहां से चली, उनकी समझ से परे हैं। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि उनके ही कुछ साथी व दोस्त यह शर्तिया दावा करते हुए कह रहे हैं कि मैं सपा में जा रहा हूं, जबकि अभी ऐसा कोई भी विचार किसी भी स्तर पर मेरे द्वारा नहीं किया गया है।

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