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मुजफ्फरनगर-सत्ता से रुष्ट पिछड़ा वर्ग, घरों पर लगे पोस्टर

लहरविहीन चुनाव में सामाजिक आक्रोश से सता रहा है हार का डर, धनगर समाज ने एससी श्रेणी दर्जा नहीं मिलने पर ‘प्रमाण पत्र नहीं तो वोट नही’ का फैसला। कई महीनों से चल रहे संघर्ष में संवैधानिक अधिकार नहीं मिलने से समाज में पनपा है रोष। धनगर समाज के लोगों ने घरों पर चस्पा किये पोस्टर, अपने प्रत्याशी पर भी कर रहे मंथन

मुजफ्फरनगर-सत्ता से रुष्ट पिछड़ा वर्ग, घरों पर लगे पोस्टर
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मुजफ्फरनगर। इस बार का चुनाव राजनीतिक लहर से अछूता नजर आ रहा है। विकास की बात घूम फिर से दंगों की डरावनी याद तक पहुंचाई जा रही है। राजनीतिक नफे नुकसान में हर वर्ग अपने वोट की ताकत को सियासी मंच पर तौलने के लिए चिंतन कर रहा है और मतदाताओं में चल रहा यही मंथन सियासी गरमाहट को हवा दे रहा है। इस बार चुनाव में विरोध के स्वर राजनीतिक नारों, मुद्दों और दावों से ज्यादा ताकतवर नजर आ रहे हैं। वेस्ट यूपी में कमोबेश हर जगह विरोध और आक्रोश की कहानी सुनाई दे रही है। मुजफ्फरनगर जनपद में भी 2022 का यह चुनाव लहर को पीछे छोड़कर रोमांचक मुकाबले की पिक्चर को तैयार करता दिखाई पड़ रहा है। यहां पर कई वर्गों में आक्रोश है, यह आक्रोश राजनीतक नहीं, बल्कि सामाजिक कारणों से बना हुआ है। जो समाज विरोध के स्वर बुलंद किये हुए हैं, उनको अपने अधिकार से वंचित होने का मलाल है। ऐसे ही समाज में धनगर भी शामिल हैं, जो वर्षों की लड़ाई के बाद भी एससी दर्जे से वंचित ही रखे गये। आज इस समाज के मतदातओं के घरों पर प्रमाण पत्र नहीं तो वोट नहीं के पोस्टर चस्पा नजर आ रहे हैं। अब यह समाज वोट की ताकत का प्रयोग संवैधानिक अधिकार पाने के लिए कर सकता है।

धनगर समाज को यूपी में अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल किया गया। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी गई और समाज ने जीत हासिल की। अदालत के आदेश के बाद शासन ने भी जिलों में धनगर समाज को एससी श्रेणी में जाति प्रमाण पत्र जारी किये जाने की व्यवस्था को लागू कराया, लेकिन यह व्यवस्था कागजी ही साबित हुई। अखिल भारतीय धनगर समाज महासंघ ने समाज को एससी श्रेणी में संवैधानिक अधिकार दिलाने की लड़ाई की आवाज को बुलन्द करने का काम किया है। महासंघ के राष्ट्रीय संगठन मंत्री सभासद अरविन्द धनगर का कहना है कि धनगर समाज को अनुसूचित जाति का दर्जा मिला हुआ है, लेकिन यूपी में कई जिलों में तो समाज के लोगों को तहसीलों से इसके लिए प्रमाण पत्र जारी किये जा रहे हैं, जबकि मुजफ्फरनगर सहित अधिकांश जिलों में समाज को इस संवैधानिक अधिकार से वंचित किया जा रहा है। महासंघ ने इस मामले को राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उठाया। समाज के भाजपा सरकार में शामिल प्रतिनिधियों के साथ ही सांसदों और विधायकों तक अपनी बात पहुंचाई गई, जिला स्तर पर मुख्यालयों में प्रदर्शन कर प्रशासन को भी जगाने का काम किया गया, लेकिन इसमें कोरा आश्वासन ही हासिल हो सका।


सभासद अरविन्द का कहना है कि समाज के साथ अन्याय किया जा रहा है। हम किसी भी एक दल के खिलाफ नहीं है, लेकिन समाज को हक मिलना चाहिए, इसके लिए सभी एकजुट हैं। इस समय यूपी में चुनाव चल रहा है। चुनाव में समाज ने एक तरफा भाजपा को चुना और सरकार बनाने में भूमिका निभाई, लेकिन समाज को बीते पांच साल में कुछ भी हासिल नहीं हुआ। समाज ने अपने वोट की ताकत का प्रयोग अब अधिकार पाने के लिए करने का निर्णय लिया है। धनगर समाज ने शहरी सीट पर अपने वोट की ताकत का अहसास कराने के लिए राष्ट्रीय समाज पार्टी से अपना प्रत्याशी उतारा है। रजनीश धनगर समाज के हक के लिए चुनाव मैदान में हैं। रजनीश कहते हैं कि समाज को छला गया है, जब भी समाज ने अधिकार की बात की तो उसको हाशिये पर धकेल दिया गया। जिला प्रशासन ने एससी प्रमाण पत्र बनवाने का वादा किया, लेकिन अमल नहीं हुआ।

ऐसे में समाज में रोष है। समाज को न्याय दिलाने के लिए वह चुनाव मैदान में उतरे हैं और उनका 'कप प्लेट' चुनाव में समाज की ताकत को बताने का काम करेगा। सभासद अरविन्द धनगर कहते हैं कि समाज ने बड़े दलों का बहिष्कार कर दिया है। समाज के लोगों द्वारा घरों पर पोस्टर चस्पा करने पर वह कहते हैं कि जब एससी वर्ग में समाज को प्रमाण पत्र जारी नहीं कराये गये तो अब वोट किस बात पर मांग रहे है। यही कारण है कि समाज ने प्रमाण पत्र नहीं तो वोट नहीं का निर्णय लिया है और वोट अपने प्रत्याशी को दी जायेगी। उन्होंने कहा कि आरएसपी पार्टी भी समाज की अपनी पार्टी है। महाराष्ट्र में पार्टी अचछी स्थिति में है। अब यूपी में इसकी जड़े जमाने का निर्णय समाज ने किया है, समाज ने इसलिए ही यह निर्णय लिया है कि समाज के जाति प्रमाण पत्र नहीं बने तो क्यों ना हम अपने समाज को वोट दे। यही वजह है कि आज धनगर समाज के लोग घरों पर पोस्टर लगाकर संदेश देने का काम कर रहे हैं। सभासद अरविन्द ने कहा कि वह किसी भी पार्टी का विरोध नहीं कर रहे, समाज के हक की बात कर रहे हैं। चूंकि यूपी में पांच साल भाजपा की सरकार रही है, इसलिए भाजपा के प्रति समाज में आक्रोश है।

शहरी सीट पर धनगर समाज को भाजपा का ही बैस वोट माना जाता रहा है। 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में यह वोटर भाजपा के पक्ष में लामब( रहा है, लेकिन इस बार सूरते हाल बदला हुआ है। भाजपा का वोट बैंक ही छिटकने लगा है। विरोध के सुर गांव गांव सुनाई दे रहा है। इससे पहले राजनीतिक वजूद बचाने के लिए ब्राह्मण समाज भी भाजपा और गठबंधन के मोहपाश से निकलकर अपने प्रत्याशी सुबोध शर्मा को समर्थन का ऐलान कर इस सीट पर होने जा रही सियासी जंग को रोमांचक बनाने का काम किया है।

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