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राजपाल की किस्मत ने मारा जोर, खतौली में फिर चुनावी शोर

विक्रम सैनी की सदस्यता रद्द होने के बाद खतौली सीट पर उपचुनाव की सरगर्मी में सबसे बड़ी चर्चाओं में आया पूर्व सांसद का नाम 2022 के चुनाव में विक्रम सैनी के साथ हुआ था कड़ा संघर्ष, करतार के कारण विक्रम बचा ले गये थे सीट अब उपचुनाव में फिर से सपा-रालोद गठबंधन खेल सकता है राजपाल सैनी पर सियासी दांव, भाजपा के लिए सीट बचाने की चुनौती

राजपाल की किस्मत ने मारा जोर, खतौली में फिर चुनावी शोर
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मुजफ्फरनगर। किस्मत का बनना बिगड़ने ही हमें ईश्वर से जोड़ता है, कब कौन शिखर से धरातल पर आकर धूल में मिल जाये, कहा नहीं जा सकता। ऐसा ही कुछ नजारा आज जिले की सियासत में देखने को मिल रहा है। कवाल कांड में जिस हिन्दूवादी नेता की छवि और बड़बोलेपन ने एक पूर्व प्रधान को विधायक का रूतबा दिलाने का काम किया, उसी कवाल के बवाली रूप ने उनको सियासत के शिखर से जमीं की धूल में ला पटका। बात भाजपा के खतौली विधायक विक्रम सैनी को कवाल कांड से जुड़ी हिंसा की एक वारदात के मामले में विशेष अदालत से मिली दो साल की सजा और इसके बाद उनकी विधायकी चले जाने की हो रही है। इसको लेकर कभी विक्रम सैनी की किस्मत के जोर को लेकर उनसे रश्क रखने वाले लोग आज उनको बदकिस्मत भी बताने से नहीं चूक रहे हैं। ऐसे में एक व्यक्ति की किस्मत को लेकर जिले के सियासी गलियारों में एक शोर मचा नजर आ रहा है, वो हैं पूर्व सांसद राजपाल सैनी। खतौली सीट पर उपचुनाव अब पक्का हो रहा है, ऐसे में वहां पर निकाय चुनाव के साथ ही नई सियासी बिसात करवट ले रही है, 2022 के मिशन में भाजपा से जिले की चार सीट छीनकर बड़ा झटका देने वाले सपा-रालोद गठबंधन के लिए एक और विधायक बनाने का मौका है तो भाजपा के लिए अपनी सीट बचाने की चुनौती।


नगरीय निकाय चुनाव के लिए मुजफ्फरनगर पालिका के पांच वार्ड कम होने की हलचल के बीच एक बड़ी सनसनी खतौली विधानसभा के भाजपा विधायक विक्रम सैनी की सदस्यता चले जाने को लेकर मची हुई है। जनपद की सियासत में चल रही चर्चाओं में शामिल आम से खास तक के बीच अब विक्रम सैनी बड़े नाम से बेचारे नजर आने लगे हैं। उनकी किस्मत से जलन रखने वाले भी अब उनको बदकिस्मत बताकर नये नये विचार प्रस्तुत कर रहे हैं। विक्रम की बदकिस्मती की चर्चाओं के बीच ही एक राजनेता की किस्मत का सितारा बुलन्द होने की बात भी सियासी गलियारों में तेजी से दौड़ रही है, उस राजनेता का नाम राजपाल सैनी है। राजपाल सैनी को मुजफ्फरनगर ही नहीं बल्कि वेस्ट यूपी के पिछड़े वर्ग के बड़े नेताओं में शुमार किया जाता रहा है। उनका सियासी सफर उनकी जनता के बीच पकड़ और सियासी रसूख को बयान करने के लिए काफी है। खतौली विधानसभा सीट पर उपचुनाव की शक्ल साफ हो चुकी है। विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना और प्रदेश सरकार में संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना के बयानों ने साफ कर दिया है कि विक्रम सैनी विधायक नहीं रहे, ऐसे में साफ है कि खतौली में नया विधायक चुनने के लिए उपचुनाव कराया जायेगा। ऐसे में अब एक बार फिर से खतौली की जनता नया जनप्रतिनिधि चुनेंगी। इस स्थिति में सपा-रालोद गठबंधन में एक नया उत्साह नजर आ रहा है। सबसे बड़ी चर्चा एक बार फिर राजपाल सैनी को लेकर चल रही है। माना जा रहा है कि इस गठबंधन में 2022 का चुनाव सपा का चेहरा और रालोद का निशान के नये सियासी फार्मूल के तहत लड़कर भाजपा विधायक विक्रम सैनी को कड़ी चुनौती देने वाले पूर्व सांसद राजपाल सैनी ही यह उपचुनाव लड़ने जा रहे हैं, हालांकि अभी फैसला होना बाकी है। विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार पूर्व सांसद राजपाल सैनी को हाईकमान से इशारा हो चुका है और उन्होंने अपनी तैयारियां शुरू भी कर दी हैं, लेकिन जब तक अखिलेश और जयंत की मुलाकात न हो जाये तब तक सस्पेंस बाकी है। राजपाल सैनी का इस सम्बंध में कहना है कि समाजवादी पार्टी की विचारधारा से प्रभावित होकर उन्होंने सपा की सदस्यता ग्रहण की और फिर शीर्ष स्तर पर बनी सहमति से वह रालोद में शामिल होकर चुनाव लड़े। जनता ने उनको भरपूर प्यार दिया, लेकिन वह कड़े मुकाबले में पिछड़ गये। वह जनता के आज भी आभारी हैं। आज जयंत चौधरी के नेतृत्व में पार्टी और गठबंधन मिलकर किसान, मजदूर से लेकर हर तबके लोगों के हक की लड़ाई लड़ रही है। उन्होंने चुनाव लड़ने के बारे में कहा कि पार्टी हाईकमान जो आदेश करेगा, उसका वह पालन करेंगे। अभी कुछ भी तय नहीं किया गया है।

इसके साथ ही भाजपा में भी इस सीट को बचाने की हलचल है, लेकिन जाहिर तौर पर एक सन्नाटा नजर आता है। भाजपा को अपनी यह सीट बचाने की चुनौती है। पहले ही जिले में भाजपा चार सीट गंवा चुकी है। यह गई तो लोकसभा चुनाव के लिए संदेश सही नहीं जायेगा। खतौली सीट ही भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित मानी जाती है, क्योंकि इस सीट पर सर्वाधिक वोट पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग से आती हैं। 2014 के बाद से ही सियासी बिसात पर यह वर्ग पूरी तरह से भाजपा के लिए लामबंद नजर आया है और यही कारण है कि भाजपा लोकसभा हो या विधानसभा सभी चुनावों में वियजरथ पर सवार है।

तीन दशक की राजनीति का अनुभव, पश्चिम के पिछड़ों में प्रभाव, ऐसे हैं राजपाल सैनी

मुजफ्फरनगर। जनता दल से राजनीतिक करियर शुरू करने वाले राजपाल सैनी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग में एक मजबूत सियासी पकड़ रखने वाले प्रमुख नेता माने जाते हैं। वो पिछडे़ वर्ग में अपना अच्छा प्रभाव रखते हैं। इसलिए ही सपा रालोद गठबंधन में उनको पिछड़े वर्ग का बड़ा वोट बैंक रखने वाली खतौली सीट से चुनाव लड़वाया गया।


शहर के मौहल्ला देवपुरम निवासी पूर्व सांसद राजपाल सैनी ने 1990 के दशक में जनता दल के प्रदेश महासचिव के रूप में अपनी राजनीतिक पारी शुरू की थी। वो जनता दल के टिकट से शहरी सीट पर विधानसभा चुनाव लड़े। 1994 में पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के कहने पर सपा में शामिल हुए। इसी साल 1994 में सपा जिलाध्यक्ष बने, और फिर लगातार चार साल तक इस पद पर रहे। 1998 में बसपा में शामिल होकर बसपा जिलाध्यक्ष बने। 1999 में मुजफ्फरनगर लोकसभा से बसपा के टिकट पर सांसद का चुनाव लड़ा। वर्ष 2002 में मोरना विधानसभा सीट से बसपा के विधायक चुने जाने बनने के बाद बसपा सरकार में युवा कल्याण व खेल मंत्री बने। 2007 में बसपा सरकार में खाद बीज निगम के चेयरमैन बनाये गये। जुलाई 2010 में बसपा से राज्यसभा सदस्य बने। वर्ष 2017 में खतौली विधानसभा सीट से अपने बेटे शिवान सैनी को राजनीतिक विरासत सौंपते हुए बसपा से चुनाव लड़ाया। साल 2021 में 7 अगस्त को पूर्व सांसद राजपाल सैनी ने 23 साल के बाद सपा में वापसी की। लखनऊ में अखिलेश यादव ने पार्टी में सदस्यता ग्रहण कराई। लगभग पांच महीने ही सपा में रहे और गठबंधन में बनी नीति के तहत रालोद में शामिल होकर 2022 में सपा-रालोद गठबंधन से चुनाव लड़ा। इस चुनाव में उन्होंने विक्रम सैनी को कड़ी टक्कर दी। जयंत चौधरी ने 16 जून 2022 को राष्ट्रीय लोकदल सामाजिक न्याय मंच का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर बड़ी जिम्मेदारी दी।


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