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देशवासी मेड इन इंडिया को जनांदोलन बनायें : मोदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोविड के 100 करोड़ टीकों को लेकर भारत के स्वदेश निर्मित वैक्सीन कार्यक्रम की सफलता के साथ आर्थिक तरक्की के संकेतों का उल्लेख करते हुए आज देशवासियों का आह्वान किया कि वे मेड इन इंडिया को एक जनांदोलन बनायें और स्वदेश निर्मित वस्तुएं खरीदने काे अपना सहज व्यवहार बनायें।

देशवासी मेड इन इंडिया को जनांदोलन बनायें : मोदी
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नयी दिल्ली - प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोविड के 100 करोड़ टीकों को लेकर भारत के स्वदेश निर्मित वैक्सीन कार्यक्रम की सफलता के साथ आर्थिक तरक्की के संकेतों का उल्लेख करते हुए आज देशवासियों का आह्वान किया कि वे मेड इन इंडिया को एक जनांदोलन बनायें और स्वदेश निर्मित वस्तुएं खरीदने काे अपना सहज व्यवहार बनायें।

श्री मोदी ने शु्क्रवार सुबह राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा कि वैक्सीन के बढ़ते कवरेज के साथ हर क्षेत्र में सकारात्मक गतिविधियां तेज हो रही हैं। आज चारों ओर विश्वास, उत्साह एवं उमंग का वातावरण है। सौ करोड़ टीकों के साथ भारत को आज विश्व में एक अधिक सुरक्षित देश के रूप में देखा जा रहा है।

उन्होंने कहा कि विशेषज्ञ और देश-विदेश की अनेक एजेंसियां भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर बहुत सकारात्मक है। आज भारतीय कंपनियों में ना सिर्फ रिकॉर्ड निवेश आ रहा है बल्कि युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर भी बन रहे है। स्टार्ट अप्स में रिकॉर्ड निवेश के साथ ही रिकॉर्ड स्टार्ट अप्स, यूनीकॉर्न बन रहे है। सुधारों के साथ गतिशक्ति और ड्रोन नीति भी भारत की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने वाले हैं। कोरोना काल में कृषि क्षेत्र ने हमारी अर्थव्यवस्था को मजबूती से संभाले रखा। आज रिकॉर्ड लेवल पर अनाज की खरीद हो रही है। किसानों के बैंक खाते में सीधे पैसे जा रहे हैं।

श्री मोदी ने कहा, "पिछली दिवाली हर किसी के मन में एक तनाव था लेकिन इस दिवाली 100 करोड़ वैक्सीन डोज के कारण एक पैदा हुआ विश्वास है। अगर मेरे देश की वैक्सीन मुझे सुरक्षा दे सकती है, तो मेरे देश में बने सामान मेरी दिवाली को और भी भव्य बना सकते हैं।"

प्रधानमंत्री ने कहा, "मैं आपसे फिर ये कहूंगा कि हमें हर छोटी से छोटी चीज, जो मेड इन इंडिया हो, जिसे बनाने में किसी भारतवासी का पसीना बहा हो, उसे खरीदने पर जोर देना चाहिए। और ये सबके प्रयास से ही संभव होगा: जैसे स्वच्छ भारत अभियान, एक जनआंदोलन है, वैसे ही भारत में बनी चीज खरीदना, भारतीयों द्वारा बनाई चीज खरीदना, वोकल फॉर लोकल होना, ये हमें व्यवहार में लाना ही होगा।"

उन्होंने कहा कि भारत का पूरा टीकाकरण कार्यक्रम विज्ञान की कोख में जन्मा है, वैज्ञानिक आधारों पर पनपा है और वैज्ञानिक तरीकों से चारों दिशाओं में पहुंचा है। हम सभी के लिए गर्व करने की बात है कि भारत का पूरा वैक्सीनेशन प्रोग्राम, विज्ञान जनित, विज्ञान प्रेरित और विज्ञान आधारित रहा है। हमारे देश ने कोविन प्लेटफॉर्म की जो व्यवस्था बनाई है, वो भी विश्व में आकर्षण का केंद्र है। भारत में बने इस प्लेटफॉर्म ने न केवल आम लोगों को सहुलियत दी, बल्कि स्वास्थ्य कर्मियों के काम को भी आसान बनाया है।

उन्होंने कहा कि इस कठिन और असाधारण उपलब्धि से दिखा दिया है कि देश बड़े लक्ष्य तय करना और उन्हें हासिल करना जानता है। लेकिन इसके लिए हमें सतत सावधान रहने की जरूरत है। हमें लापरवाह नहीं होना है। उन्होंने लोगों को कोविड को लेकर सावधानी बरतते रहने की सलाह देते हुए कहा, "कवच कितना ही उत्तम हो, कवच कितना ही आधुनिक हो, कवच से सुरक्षा की पूरी गारंटी हो, तो भी, जब तक युद्ध चल रहा है, हथियार नहीं डाले जाते। मेरा आग्रह है, कि हमें अपने त्योहारों को पूरी सतर्कता के साथ ही मनाना है।"

उन्होंने कहा कि जिस प्रकार घर से बाहर जाते समय हम जूते पहनते हैं, उसी प्रकार से मास्क को भी एक सहज व्यवहार बनाना होगा। जिनको टीका नहीं लगा है उन्हें तो मास्क को अनिवार्य रूप से लगाना होगा।

श्री मोदी ने संबोधन की शुरूआत करते हुए कहा कि गुरुवार 21 अक्टूबर को भारत ने 1 बिलियन, 100 करोड़ वैक्सीन डोज़ का कठिन लेकिन असाधारण लक्ष्य प्राप्त किया है। इस उपलब्धि के पीछे 130 करोड़ देशवासियों की कर्तव्यशक्ति लगी है, इसलिए ये सफलता भारत की सफलता है, हर देशवासी की सफलता है।

उन्होंने कहा कि हमने महामारी के खिलाफ देश की लड़ाई जन भागीदारी को अपनी पहली ताकत बनाया। देश ने अपनी एकजुटता को ऊर्जा देने के लिए ताली, थाली बजाई, दीए जलाए तब कुछ लोगों ने कहा था कि क्या इससे बीमारी भाग जाएगी। लेकिन हम सभी को उसमें देश की एकता दिखी, सामूहिक शक्ति का जागरण दिखा।

उन्होंने कहा कि आज कई लोग भारत के वैक्सीनेशन प्रोग्राम की तुलना दुनिया के दूसरे देशों से कर रहे हैं। भारत ने जिस तेजी से 100 करोड़ का, 1 अरब का आंकड़ा पार किया, उसकी सराहना भी हो रही है। लेकिन, इस विश्लेषण में एक बात अक्सर छूट जाती है कि हमने ये शुरुआत कहाँ से की है। दुनिया के दूसरे बड़े देशों के लिए वैक्सीन पर शोध करना, वैक्सीन खोजना, इसमें दशकों से उनकी विशेषज्ञता थी। भारत अधिकतर इन देशों की बनाई वैक्सीन्स पर ही निर्भर रहता था।

प्रधानमंत्री ने कहा, "जब 100 साल की सबसे बड़ी महामारी आई, तो भारत पर सवाल उठने लगे। क्या भारत इस वैश्विक महामारी से लड़ पाएगा? भारत दूसरे देशों से इतनी वैक्सीन खरीदने का पैसा कहां से लाएगा? भारत को वैक्सीन कब मिलेगी? भारत के लोगों को वैक्सीन मिलेगी भी या नहीं? क्या भारत इतने लोगों को टीका लगा पाएगा कि महामारी को फैलने से रोक सके? भांति-भांति के सवाल थे, लेकिन आज ये 100 करोड़ वैक्सीन डोज, हर सवाल का जवाब दे रही है।"

उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी की शुरुआत में ये भी आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं कि भारत जैसे लोकतंत्र में इस महामारी से लड़ना बहुत मुश्किल होगा। भारत के लिए, भारत के लोगों के लिए ये भी कहा जा रहा था कि इतना संयम, इतना अनुशासन यहाँ कैसे चलेगा? लेकिन हमारे लिए लोकतन्त्र का मतलब है-'सबका साथ'। सबको साथ लेकर देश ने 'सबको वैक्सीन-मुफ़्त वैक्सीन' का अभियान शुरू किया। गरीब-अमीर, गाँव-शहर, दूर-सुदूर, देश का एक ही मंत्र रहा कि अगर बीमारी भेदभाव नहीं नहीं करती, तो वैक्सीन में भी भेदभाव नहीं हो सकता! इसलिए ये सुनिश्चित किया गया कि वैक्सीनेशन अभियान पर वीआईपी कल्चर हावी न हो।

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