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जन्म जयंती-अपनी ही कैबिनेट को नहीं पहचानते थे पूर्व सीएम रामप्रकाश गुप्ता

यूपी के पूर्व सीएम और भाजपा नेता रामप्रकाश गुप्ता के राजनीतिक जीवन से कई रोचक और मनोरंजन किस्से जुड़े हुए थे। वह यूपी के सबसे बुजुर्ग सीएम रहे तो ऐसे पहले मुख्यमंत्री बने, जो कुर्सी गंवाने के बाद अपने घर की बिजली भी नहीं बचा पाये थे। उनको भाषण याद दिलाने उनके सचिव के लिए टेढी खीर जैसा था।

जन्म जयंती-अपनी ही कैबिनेट को नहीं पहचानते थे पूर्व सीएम रामप्रकाश गुप्ता
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मुजफ्फरनगर। राजनीति में भाग्य की भूमिका बड़ी रहती है। भाग्य साथ दे तो राजनीतिक फलक पर चमक बिखरेने वाला ध्रुव तारा बनने में देर नहीं लगती और राजनीतिक बिसात पर दांव उलटा पड़ जाये तो रोशन सितारा भी अपना नूर खो बैठता है। कुछ ऐसा ही जीवन रहा है, यूपी के मुख्मयंत्री रामप्रकाश गुप्ता का, वह न तो अच्छे वक्ता था, न कुशल राजनीतिज्ञ और न ही कोई विरासत ऐसी रही, जिससे उनकी पहचान बड़ी रही हो, वह भाजपा की भगवा ध्वज को थामकर सियासी पगडंडी पर आगे बढ़ते चले गये और भाग्य ने ऐसा साथ निभाया कि उनका यह सफर यूपी के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक उनको पहुंचाने वाला रहा और इस सफर का अंत राज्यपाला जैसे महामहिम पद को सुशोभित करते हुए हुआ।

ज्योतिष परिवार से सम्बंध रखने वाले राजनीतिकज्ञ राम प्रकाश गुप्ता उम्र के उस दौर में शीर्ष तक पहुंच जिस उम्र में आज भाजपा में लोग मार्गदर्शक मण्डल की शोभा बना दिये जाते हैं। रामप्रकाश जब अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव में थे, तो वह 76 साल की उम्र में 12 नवंबर 1999 को यूपी के सीएम बनाए गए। उनके राजनीतिक कौशल और वक्ता होने का सुबूत इसी बात से मिलता है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद उनको भाषण याद दिलाने उनके सचिव के लिए टेढी खीर से कम नहीं था। उनको भाषण याद दिलाने के बाद मंच पर भेजा जाता, लेकिन, मंच पर पहुंचते तो सब भूल जाते थे। वहां वही बोलते जो दिल और दिमाग की उपज से उनकी जुबां पर आ जाता था। वह ऐसे मुख्यमंत्री रहे कि उनको अपनी ही कैबिनेट में शामिल मंत्रियों को पहचाने में परेशानी होती थी और उनको याद दिलाना पड़ता था कि यह उनकी कैबिनेट का मंत्री है। पार्टी के नेताओं को खुश करने में वह ईमानदार थे, क्योंकि कोई भी नेता उनको जो भी सिफारिश कर देता उसको कभी निराशा होने नहीं देते थे। यहां तक की बड़े अफसरों का तबादला करने में भी वह सिफारिश को महत्व देते थे।

रामप्रकाश गुप्ता की बात आज इसलिए हो रही है क्योंकि यूपी में सबसे बुजुर्ग मुख्यमंत्री का रिकार्ड बनाने वाले इस राजनीतिज्ञ की आज जयंती है। उनके राजनीतिक जीवन से कई रोचक और मनोरंजक किस्से जुड़े हैं, इनमें यह भी शामिल है कि जेल में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को बड़ा नेता बनने की भविष्यवाणी उन्होंने ही की थी और रोचक यह हुआ कि राजनाथ सिंह उनको ही कुर्सी से हटाकर यूपी के मुख्यमंत्री बने थे। 25 जून 1975 को उस वक्त की पीएम इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी की घोषणा कर दी। जनसंघ के नेताओं ने सड़क पर विरोध प्रदर्शन शुरू किया। सारे बड़े नेताओं को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया। राम प्रकाश गुप्ता भी इसमें शामिल थे। वहां उनकी मुलाकात राजनाथ सिंह से हुई।

1976 में जेल के अंदर एक दिन राम प्रकाश गुप्ता तमाम युवा कैदियों के साथ बैठे थे। 25 साल के राजनाथ सिंह को अपने पास बुलाया। कहा, ष्दाहिना हाथ आगे बढ़ाओ।ष् राजनाथ ने बढ़ा दिया। ज्योतिष परिवार से आने वाले राम प्रकाश ने हाथों की लकीरों को ध्यान से देखा। फिर कहा कि एक दिन तुम यूपी के बहुत बड़े नेता बनोगे। बाकी साथियों ने पूछा कि कितना बड़ा नेता? राम प्रकाश गुप्ता ने जवाब दिया कि यूपी के सीएम से भी बड़ा। इस भविष्यवाणी के 24 साल बाद 28 अक्टूबर 2000 को राम प्रकाश गुप्ता की भविष्यवाणी सच हो गई। राजनाथ सिंह यूपी के मुख्यमंत्री बने। अजब ये कि वह राम प्रकाश को हटाकर ही इस पद पर पहुंचे।

1997 में बसपा और बीजेपी ने मिलकर सरकार बनाई। 6-6 महीने सीएम पद का फॉर्मूला अपनाया गया। 21 मार्च 1997 से 21 सितंबर 1997 तक सीएम रहीं। इसके बाद कल्याण सिंह सीएम बने तो अपने पद से 2 साल 52 दिन तक हटे ही नहीं। सरकार न गिरे इसके लिए 93 विधायकों को मंत्री बना दिया। मतलब प्रदेश का हर चौथा विधायक मंत्री। 1998 में कल्याण सरकार के सहयोगी दल लोकतांत्रिक कांग्रेस के नेता जगदम्बिका पाल उस वक्त के राज्यपाल रोमेश भंडारी के पास पहुंचे और कहा, ष्मेरे पास बहुमत है।ष् रोमेश भंडारी को पता नहीं क्या सूझा उन्होंने कल्याण सिंह से बिना बात किए सरकार बर्खास्त कर दी। कल्याण सिंह हाईकोर्ट पहुंचे और स्टे ले लिया। अगले दिन दफ्तर पहुंचे तो जगदम्बिका पाल उनकी कुर्सी पर बतौर सीएम बैठे मिले। कोर्ट का आदेश दिखाया तो जगदम्बिका पाल कुर्सी छोड़कर चले गए।

1998 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यूपी से 57 सीटें मिली। 1999 में मात्र 29 सीट। ऐसा इसलिए क्योंकि सीएम कल्याण सिंह ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ बगावत के बिगुल फूंक दिए। इसके बावजूद 10 अक्टूबर 1999 को अटल बिहारी वाजपेयी पीएम बने। एक महीने बाद 12 नवंबर को कल्याण सिंह की छुट्टी कर दी गई। सीएम पद के लिए नए नाम को लेकर बैठक शुरू हो गई। वाजपेयी चाहते थे राजनाथ सिंह बनें। मुरली मनोहर जोशी किसी ब्राह्मण को सीएम बनाना चाहते थे। कल्याण सिंह के लिए झंडा बुलंद करने वाले लालजी टंडन और कलराज मिश्रा भी दावेदार थे। लेकिन, सबका नाम खारिज कर दिया गया और मुहर लगी राजनीति से रिटायर हो चुके 76 साल के राम प्रकाश गुप्ता के नाम पर। गुप्ता को दिल्ली बुलाने का फरमान जारी हुआ। लेकिन, किसी को पता ही नहीं कि वह लखनऊ में रहते कहां हैं।

लखनऊ पुलिस 2 घंटे तक लखनऊ में उनका घर खोजती रही। तब जाकर उनका दो कमरों का घर मिला। अगले दिन दिल्ली पहुंचे तो किसी पत्रकार ने पहचाना ही नहीं। बीजेपी अध्यक्ष कुशाभाऊ ठाकरे देखा तो उनके पास पहुंचे और ऐलान किया कि ये राम प्रकाश गुप्ता हैं, यूपी के नए मुख्यमंत्री। इस तरह करीब 10 साल से सक्रिय राजनीति से दूर रहे राम प्रकाश 12 नवबंर को मुख्यमंत्री बना दिए गए। राम प्रकाश गुप्ता पार्टी के किसी नेता को नाराज नहीं करना चाहते थे। इसलिए जब भी किसी अधिकारी के ट्रांसफर की मांग होती वह हामी भर देते थे। नवंबर 1999 से फरवरी 2000 के बीच 350 से अधिक अफसरों का ट्रांसफर कर दिया। उन्नाव जिले में 40 दिन के अंदर 5 कलेक्टरों का ट्रांसफर किया गया। श्रावस्ती के डीएम बिहारी लाल को 30 दिन के अंदर 6 ट्रांसफर लेटर थमाया गया।

राम प्रकाश गुप्ता को उनके सेक्रेटरी स्पीच लिखकर देते थे। याद भी करवाते थे, लेकिन सीएम जैसे ही मंच पर जाते वह वही बोलते जो उनकी जुबान पर आता था। धीरे-धीरे उनकी छवि भुलक्कड़ सीएम के रूप में स्थापित हो गई। मायावती ने तो एक बार कह दिया, ष्बेचारे गुप्ता जी, वो हमेशा भूल जाते हैं कि उन्हें कहना क्या है, पार्टी ने अयोध्या पर नहीं बोलने को कहा है लेकिन वह साफ-साफ बोल जाते हैं। राम प्रकाश गुप्ता जैसे तैसे 351 दिन तक सीएम बने रहे। 28 अक्टूबर 2000 को उन्हें सीएम पद से हटा दिया गया। राम प्रकाश गुप्ता को हटाए जाने के बाद राजनाथ मुख्यमंत्री बनाए गए। कल्याण सिंह को पार्टी ने हमेशा के लिए साइड कर दिया। 2002 में राम प्रकाश के साथ एक अजीब घटना घटी। लखनऊ के इनके पार्क रोड घर की बिजली काट दी गई। वजह बताई गई कि बिजली का बिल नहीं जमा किया गया था। यूपी के इतिहास में यह पहला मौका था, जब किसी मुख्यमंत्री के घर की बिजली बिल नहीं जमा कर पाने की वजह से काटी गई थी।

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