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MUZAFFARNAGAR--अब लवली-मीनाक्षी नहीं हरेन्द्र-संजीव का इम्तिहान

13 मई के नतीजे तय करेंगे ‘मिशन-2024’ में होने वाली सियासी जंग की तस्वीर, मुजफ्फरनगर लोकसभा पर 2014 से लगातार भाजपा का कब्जा, खतौली में हैट्रिक रोकने वाला गठबंधन क्या दोहरायेगा परिणाम?

MUZAFFARNAGAR--अब लवली-मीनाक्षी नहीं हरेन्द्र-संजीव का इम्तिहान
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मुजफ्फरनगर। जनपद में नगर निकाय चुनाव को लेकर गांव देहात में भी शहरों की इस सरकार के गठन को लेकर हुए मतदान की चर्चा खूब जोरों पर हैं। इस बार भाजपा के सामने निकायों में मजबूत टक्कर मिलने की बात हवा में खूब जोर शोर से चल रही है। इतना ही नहीं सबसे ज्यादा निगाह नगर पालिका परिषद् मुजफ्फरनगर की चेयरमैन सीट के आने वाले परिणाम पर लगी है। कहने को तो यह चुनाव सपा-रालोद गठबंधन की संयुक्त प्रत्याशी लवली शर्मा और भाजपा प्रत्याशी मीनाक्षी स्वरूप के बीच सीधी टक्कर के रूप में हुआ है, लेकिन इनके साथ ही कुर्सी के लिए खड़े अन्य दलों के प्रत्याशियों की सेंधमारी को लेकर भी बातें खूब हो रही हैं। लवली और मीनाक्षी के इस चुनाव में दोनों के ही परिवारों की प्रतिष्ठा और राजनीतिक दलों के अस्तित्व भी दांव पर हैं। इसके साथ ही यह चुनाव केवल लवली या मीनाक्षी और उनके परिवार के लोगों तक सीमित नहीं है, बल्कि इस चुनाव के लिए हुए मतदान के अब असली परीक्षा केन्द्रीय राज्यमंत्री डाॅ. संजीव बालियान और सपा के राष्ट्रीय महासचिव पूर्व सांसद हरेन्द्र मलिक की भी शुरू होने जा रही है। 13 मई को मतपेटियों से साइकिल और फूल की मुहर के साथ निकलने वाला एक एक बैलेट जहां लवली और मीनाक्षी को कुर्सी के नजदीक करता दिखाई देगा, वहीं हरेन्द्र मलिक और संजीव बालियान के राजनीतिक करियर की तस्वीर में भी यह रंग भरने वाला साबित होगा।


मुजफ्फरनगर पालिका अध्यक्ष के चुनाव की बात करें तो यहां इस बार भी मुकाबला वैश्य बनाम ब्राह्मण है। पिछले दो चुनावों में भाजपा कांग्रेस के वैश्य प्रत्याशियों के सामने पराजित हो रही है। जबकि इससे पूर्व तीन चुनावों से भाजपा इस कुर्सी पर काबिज होती रही है। कभी यहां पर सपा मुख्य मुकाबले में नहीं बन पायी। इस बार राकेश शर्मा की पत्नी लवली शर्मा के सहारे सपा मुख्य लड़ाई में सामने आई है तो भाजपा को वैश्य समाज की प्रत्याशी मीनाक्षी स्वरूप पत्नी गौरव स्वरूप के सहारे पालिका में सत्ता वापसी की उम्मीद बंधी हैं। इस दोनों महिलाओं की जीत और हार से उनके पति राकेश शर्मा और गौरव स्वरूप का राजनीतिक भाग्य तो जुड़ा ही है, दोनों पार्टियों के बड़े नेताओं की तकदीर भी इस चुनाव परिणाम से लिखी जायेगी। राकेश शर्मा ने 2017 में सदर विधानसभा सीट से बसपा प्रत्याशी के रूप में भाग्य आजमाया, लेकिन वो मुख्य मुकाबले में भी खुद को शामिल नहीं रख पाये थे। इसी तरह से गौरव स्वरूप ने अपने पिता स्व. चितरंजन स्वरूप की राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए सदर विधानसभा से दो चुनाव 2016 उपचुनाव और 2017 लड़ा, लेकिन दोनों बार ही वो भाजपा के सामने पराजित हुए। 2022 में वो सपा से टिकट के मुख्य दावेदार थे, लेकिन उनके छोटे भाई सौरभ स्वरूप बंटी ने दावेदारी की तो टिकट उनका कट गया और वो भाजपा में शामिल हो गये। इस चुनाव में भी स्वरूप परिवार को भाजपा प्रत्याशी कपिल देव ने पराजित किया। अब संयोग से गौरव स्वरूप और राकेश शर्मा की राजनीति मुजफ्फरनगर पालिका अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर आने वाले परिणाम के सहारे ही परवान चढ़ेगी। जो हारा उसको राजनीतिक जीवन के लिए नये सिरे से फैसला करने को विवश होना पड़ेगा।


यह तो इन परिवारों की बात हुई, लेकिन शहर की सरकार के गठन के लिए शहरी चैक चैराहों से गांवों की चैपालों तक हो रही सियासी चर्चाओं में इस चुनाव को सीधे सपा के राष्ट्रीय महासचिव पूर्व सांसद हरेन्द्र मलिक और केन्द्रीय राज्यमंत्री डाॅ. संजीव बालियान के राजनीतिक भविष्य से भी जोड़कर देखा जा रहा है। दोनों ही नेताओं के सामने अपना अपना मिशन-2024 खड़ा है। ऐसे में लवली शर्मा और मीनाक्षी स्वरूप की जीत भले ही गौरव और राकेश के लिए चुनौतीपूर्ण हो, लेकिन इन दोनों महिलाओं की जीत और हार के लिए असली इम्तिहान हरेन्द्र मलिक और संजीव बालियान को ही देना पड़ सकता है। अब देखना यह होगा कि 13 मई को खुलने वाली मतपेटियों से सियासत के फलक पर कौन मजबूत होता है और किससे खिलाफ जनादेश आता है।

अपनी लोकसभा में चार विधानसभा हार चुके संजीव बालियान

मुजफ्फरनगर। साल 2024 में आम चुनाव हैं, तो ऐसे में मुजफ्फरनगर लोकसभा का चुनाव भी आ रहा है। 2014 से लगातार हुए दो आम चुनाव में इस सीट पर भाजपा अजेय रही है, जबकि 2019 में भाजपा के खिलाफ यहां पर रालोद के मुखिया और पूर्व मंत्री चै. अजित सिंह खुद चुनाव लड़े थे, लेकिन जनता का समर्थन उनके खिलाफ भाजपा को मिला और संजीव बालियान लगातार दूसरी बार जीतकर केन्द्र सरकार में मंत्री बने।


साल 2014 में मुजफ्फरनगर दंगे बाद हुए चुनाव में भाजपा की आंधी चली थी और संजीव बालियान ने मुजफ्फरनगर लोकसभा क्षेत्र में शामिल मेरठ और मुजफ्फरनगर की पांच विधानसभा सीटों पर एक तरफा जीत हासिल की थी। उन्होंने चार लाख से ज्यादा मतों के अंतर से जीत का रिकार्ड बनाया था। 2019 में चै. अजित सिंह की चुनौती के सामने संजीव बालियान चुनाव तो जीते लेकिन कमजोर पड़ गये थे। इस चुनाव में वो चरथावल और बुढ़ाना विधानसभाओं में पराजित रहे। इसके बाद 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी संजीव बालियान अपनी लोकसभा की चरथावल और बुढ़ाना विधानसभा सीटों के साथ ही मेरठ की सरधाना सीट भाजपा को नहीं दिला पाये। इस हार ने बड़े सवाल खड़े किये। खतौली में उपचुनाव हुआ तो यहां भी भाजपा को सपा-रालोद और आसपा गठबंधन के सामने पराजय मिली। अब पांच में से केवल एक मुजफ्फरनगर सदर सीट ऐसी बची, जहां भाजपा काबिज है। इसमें मुजफ्फरनगर पालिका का चुनाव अहम माना जा रहा है। यदि यहां भाजपा सत्ता में नहीं लौटती है तो संजीव बालियान को साल 2024 के चुनाव के लिए मुश्किल पैदा हो सकती है।

मलिक परिवार में सात बार विधायक, एक बार मिला सांसद

इस बार मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से सपा-रालोद गठबंधन में चुनाव मैदान में आने के लिए जो नाम सबसे ज्यादा लोगों के बीच चर्चा बटोर रहा है, वह सपा के राष्ट्रीय महासचिव पूर्व सांसद हरेन्द्र मलिक का नाम है। हालांकि वो कह चुके हैं कि चुनाव किसे लड़ाना है यह पार्टी निर्णय करेंगी। अभी वो संगठन में काम कर रहे हैं, लेकिन जिस प्रकार से उनके द्वारा निकाय चुनाव में मुजफ्फरनगर पालिका के लिए हुए मतदान, प्रचार और अन्य व्यवस्थाओं में भागीदारी की गयी उसी को लेकर लोग चर्चा कर रहे हैं कि हरेन्द्र मलिक भाजपा के खिलाफ चुनावी तैयारी में हैं।


हरेन्द्र मलिक सियासत के बड़े खिलाड़ी हैं। 1980 के दशक से आज तक वो सियासी बिसात पर बेहद सक्रिय और सफल नेता बने हुए हैं। अपने जीवन में उन्होंने जीत का रिकार्ड बनाया तो चुनाव भी कम नहीं लड़े। इनमें ज्यादा चुनाव भाजपा के खिलाफ ही लड़े। 1985 में खतौली से वो कांग्रेस के खिलाफ चुनाव जीते और पहली बार विधायक बने। इसके बाद 1989 में भी कांग्रेस प्रत्याशी बाबू सिंह को बघरा विधानसभा पर हराया और लगातार दूसरी जीत हासिल की। 1991 में बघरा से भाजपा के प्रदीप बालियान को पराजित कर जीत की हैट्रिक लगाई और राम मंदिर लहर में 1993 में हुए चुनाव में भी हरेन्द्र मलिक का प्रभाव मजबूत नजर आया और उन्होंने बघरा से ही भाजपा के प्रदीप बालियान को पराजित कर चैथी जीत हासिल की। 1996 में फिर हरेन्द्र मलिक बघरा से चुनाव लड़े, लेकिन इस बार भाजपा के प्रदीप बालियान ने उनको हरा दिया। इसके बाद साल 1998 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने मुजफ्फरनगर संसदीय सीट से चुनाव लड़ा। यहां भाजपा के सोहनवीर सिंह से पराजित हुए। 2019 में वो कैराना लोकसभा से चुनाव लड़े और भाजपा के प्रदीप चैधरी ने उनको हराया। हरेन्द्र मलिक ने अपनी राजनीतिक विरासत अपने बड़े बेटे पंकज मलिक को सौंपी और उनको पहला चुनाव को जनाधार विहीन कांग्रेस के टिकट पर बघरा से लड़ाकर विधायक बनवाया। इसके बार वो साल 2002 में इनेलो से राज्यसभा सदस्य निर्वाचित हुए। जिले का बंटवारा होने पर उन्होंने अपने पुत्र पंकज मलिक शामली सदर से चुनाव मैदान में उतारा और पंकज यहां भी विधायक निर्वाचित हुए। अगला चुनाव वो हारे तो 2022 में हरेन्द्र मलिक ने उनको चरथावल सीट से सपा का टिकट दिलाया और पंकज ने यहां अप्रत्याशित जीत दर्ज की। अब हरेन्द्र मलिक मुजफ्फरनगर से जोरआजमाइश की तैयारी में है।

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