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8 साल में भाजपा से दूर हो गयी भाकियू

कवाल कांड के बाद नंगला मंदौड़ की बेटी बचाओ महापंचायत में भाकियू के मंच पर था भाजपा नेताओं का कंट्रोल,आज भाकियू के आह्नान पर भाजपा नेताओं का हो रहा गांव गांव विरोध, महापंचायत में केवल भाजपा और भाजपा पर ही हुई चर्चा

8 साल में भाजपा से दूर हो गयी भाकियू
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मुजफ्फरनगर। किसान आंदोलन के नौ माह के बाद मुजफ्फरनगर मेें संयुक्त किसान मोर्चा की महापंचायत में मंच से केवल भाजपा और भाजपा के ही खिलाफ शोर सुनाई दिया। भारतीय किसान यूनियन की जिम्मेदारी में जीआईसी मैदान ने आंदोलन की कड़ी में एक नया इतिहास रचने का काम हुआ और भाजपा के खिलाफ किसान आंदोलन का मिशन यूपी भी इसी महापंचायत के आयोजन के साथ शुरू कर दिया गया है। आठ साल पहले की बात करें तो भाजपा और भाकियू ने ऐसी की महापंचायत में मंच साझा किया था और दोनों संगठनों के नेताओं के बीच खासा तालमेल बना था, लेकिन इन 8 साल की नजदीकी पर 9 महीने का आंदोलन भारी पड़ गया।

8 साल पहले साल 2013 में कवाल कांड के बाद भाकियू ने नंगला मंदौड में बेटी बचाओ महापंचायत बुलाई थी। इसके लिए तैयारी भाकियू की थी, मंच भी भाकियू था, लेकिन जिस दिन पंचायत हुई, उस दिन मंच पर कंट्रोल भाजपा का हो गया था। यहां से भाकियू और भाजपा का रिश्ता कायम हुआ था। इस महापंचायत के बाद ही जब भीड़ वापस लौटी तो रास्ते में टकराव की घटनाओं की जो क्रिया हुई, वह साम्प्रदायिक दंगों की प्रतिक्रिया के रूप मेें सामने आयी थी। इन दंगों को 7 सितम्बर 2021 को आठ साल पूरे होने जा रहे हैं। दंगों की आठवीं बरसी के दो दिन पूर्व ही जीआईसी मैदान पर आयोजित हुई किसान महापंचायत का माहौल पूरी तरह से भाजपा विरोधी थी। भाकियू के नेताओं के साथ दूसरे किसान संगठनों के नेताओं ने भी भाजपा, उसके नेताओं और पीएम और सीएम के खिलाफ जमकर टिप्पणी की। सरकारों की नीतियों को कोसा। यहां सवाल यह उठता है कि इन आठ साल में भाजपा और भाकियू के बीच दूरी किन कारणों से बनी है। अब पश्चिम बंगाल की भांति ही भाकियू ने किसान आंदोलन के मंच से भाजपा के खिलाफ मिशन यूपी का आगाज कर दिया है। देखना यह होगा कि यह महापंचायत उत्तर प्रदेश में राजनीतिक दृष्टिकोण से कितनी प्रभावी साबित होती है। महापंचायत में जिस प्रकार से वक्ताओं ने केवल भाजपा, यूपी के सीएम योगी और देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ ही अमित शाह और अडानी व अंबानी को निशाने पर रखा। उससे स्पष्ट है कि संयुक्त किसान मोर्चा का मिशन यूपी पूरी तरह से भाजपा के खिलाफ बिगुल फूंकने वाला रहेगा। वक्ताओं ने चुनाव में जनता से भाजपा को हराने की खुली अपील करते हुए लड़ाई का ऐलान किया है। इससे यह भी माना जा रहा है कि मिशन 2022 भाजपा के लिए भी आसान नहीं हो पायेगा।

जानकारों का मानना है कि इस महापंचायत पर भाजपा की भी निगाह लगी रहीं। भाजपा ने इस महापंचायत में आने वाले किसानों की भीड़ में भाजपा के लोग जातिगत तस्वीर बनाने में जुटे रहे। सूत्रों के अनुसार भाजपा इस महापंचायत में यह तलाशती रही कि किसानों की इस भीड़ में जाट और मुस्लिम के साथ ही कोई दूसरी जाति की भीड़ तो नहीं जुटी है। जाट और मुस्लिम को भाजपा के लोग किसान आंदोलन के बाद से ही अपने से दूर समझ चुके हैं। मुस्लिमों के बीच भाजपा पहले से ही अलोकप्रिय रही है, जाट वोट बैंक का सवाल रहा तो इसकी कमी दूसरी पिछड़ी जातियों से करने के लिए भाजपा ने पहले ही अपना डेमेज कंट्रोल शुरू किया हुआ है।

महापंचायत मेें याद दिलाया 2013 का दंगा, लगे अल्लाह हु अकबर के नारे


मुजफ्फरनगर। किसान महापंचायत में उमड़ी भीड़ में साम्प्रदायिक सौहार्द्र को भी तलाश किया गया। मंच से भाकियू नेता राकेश टिकैत ने कहा कि भाजपा केवल दंगा कराना जानती है। वहीं संयुक्त किसान मोर्चा ने भी 2013 का मुजफ्फरनगर दंगा याद दिलाया। सोशल मीडिया पर मोर्चा की ओर से इसे साम्प्रदायिक सौहार्द्र की ओर एक बड़ा सार्थक प्रयास बताया गया। मोर्चा की ओर से कहा गया कि 2013 में भाजपा ने मुज़फ्फरनगर के लोगों को बांट दिया था। किसान आन्दोलन और आज की महापंचायत ने साबित किया है कि अब लोग एकजुट होकर नफरत की राजनीति को नकारेंगे। यह आंदोलन जमीर और जमीन दोनों की लड़ाई है। मोर्चा की ओर से कहा गया है कि दिल्ली की सीमा पर संघर्षरत किसानों को उत्तर प्रदेश की जनता ने इतना प्यार दिया है जिससे यह सि( होता है कि उत्तर प्रदेश की जनता अब भाजपा के बहकावे और जुमलो में नहीं फसेंगी।

मंच से बजा रणसिंघा, शहर मेेें मुस्लिमों ने बांटा हलवा


मुजफ्फरनगर। किसान महापंचायत में मुस्लिमों ने दिल खोलकर अपनी भागीदारी सुनिश्चित की। मुस्लिमों की भीड़ जीआईसी के मैदान पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही थी, तो जिले व शहर की सड़कों पर मुस्लिमों ने किसानों के स्वागत के लिए शिविर लगाये हुए थे। इन शिविरों में भोजन का प्रबंध था तो एक स्थान पर मुस्लिमों ने बाहर से आने वाले किसानों को हलवा बांटा। वहीं मंच पर किसान आंदोलन की परम्परा का साथी रहा रणसिंघा भी बजता रहा।

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