द्वारिका सिटी में निर्माण पर रोक से नरक बना जीवन
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सभी कार्यों पर प्रशासन ने लगाया प्रतिबंध, एमडीए ने भी राहत देने से किया इंकार, पानी के लिए टंकी निर्माण, मकान की मरम्मत और खिड़की-दरवाजे लगाने से भी रोक रहे अफसर, हो रही निगरानी;
मुजफ्फरनगर। कभी पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सबसे महत्वाकांक्षी आवासीय परियोजनाओं में शुमार द्वारिका सिटी आज सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद गहरे संकट में फंसी हुई है। निर्माण कार्यों पर अचानक लगी रोक के चलते न केवल प्लॉटधारक ही नहीं बल्कि वहां पर अपने सपनों का घर बनाकर मकानों में रह रहे सैकड़ों परिवार भी रोजमर्रा की मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहे हैं। टंकी निर्माण, खिड़की, दरवाजे और मकान की छोटी मोटी मरम्मत करने से भी पुलिस और प्रशासन के अफसर रोक रहे हैं। अधिकारी सतत निगरानी कर रहा है और लोगों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए ड्रोन उड़ाया जा रहा है। इससे परेशान लोग कभी डीएम की दर पर दस्तक देते हैं तो कभी एमडीए के अधिकारियों को अपनी पीड़ा सुनाते हैं, लेकिन हर जगह से उनको निराशा ही मिल रही है, जिससे स्वप्निल कॉलोनी में शुमार द्वारिका सिटी में रहने वाले परिवारों का जीवन नरकीय बदहाली की तहर नजर आ रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने गुंजन गुप्ता द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए द्वारिका सिटी में विवादित भूमि पर निर्माण कार्यों को तत्काल प्रभाव से रोकने का निर्देश जारी किया। इस आदेश के अनुपालन में जिला प्रशासन ने संपूर्ण द्वारिका क्षेत्र में निर्माण कार्य पर प्रतिबंध लगा दिया और क्षेत्र में ड्रोन कैमरों के माध्यम से निगरानी भी शुरू कर दी है। प्रशासन की ओर से सख़्त चेतावनी दी गई है कि किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य सुप्रीम कोर्ट की अवमानना माने जाने की स्थिति में लाया जाएगा और दोषियों के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही की जाएगी। यहां के लोग इसके बावजूद भी कुछ राहत पाने के लिए लगातार अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं। गत दिवस वो जिलाधिकारी उमेश मिश्रा से मिले और छोटी छोटी मरम्मत का कार्य भी बंद करा दिये जाने पर आपत्ति जताते हुए राहत की मांग की, इसके बाद गुरूवार को ये लोग एमडीए कार्यालय पहुंचे और उपाध्यक्ष कविता मीणा से बात करते हुए अपनी पीड़ा उनके सामने रखी। द्वारिका सिटी में पहले से रह रहे परिवारों का कहना है कि अब स्थिति सहनशक्ति से बाहर हो चुकी है। न तो वे अपने अधूरे मकानों की मरम्मत करवा पा रहे हैं और न ही जरूरी सुविधाएं कर पा रहे हैं। द्वारिका सिटी के निवासियां ने अपनी पीड़ा उठाते हुए कहा कि हम यहां बच्चों के साथ रह रहे हैं। न सुरक्षा है, न सुविधा। बरसात का मौसम है, छत टपक रही है लेकिन कुछ कर नहीं सकते। ये कैसा न्याय है?
एमडीए वीसी कविता मीणा ने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन कर रहे हैं। यदि पीड़ित पक्ष को कोई राहत चाहिए तो वे स्वयं कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करें। उन्होंने किसी भी प्रकार की राहत देने से इंकार कर दिया। बताया कि अब सभी की निगाहें 30 जुलाई को होने वाली अगली सुनवाई पर टिकी हैं। निवासियों को उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट विवादित और गैर-विवादित क्षेत्रों के बीच स्पष्ट अंतर करेगा, जिससे कम से कम आम लोगों को राहत मिल सके। इस बीच द्वारिका सिटी एक ठहरे हुए निर्माण स्थल में तब्दील हो चुकी है, जहाँ न काम है, न समाधान। द्वारिका सिटी के डेवलपर श्री बाला जी द्वारिका कंसोर्सियम के अजय बंसल ने प्रशासन की कार्रवाई पर आपत्ति जताते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ तीन खसरा नंबरों पर विवाद की सुनवाई करते हुए निर्माण पर रोक लगाई है। बाकी इलाके में निर्माण की मनाही नहीं है, फिर भी प्रशासन ने पूरे द्वारिका क्षेत्र को ठप कर दिया है, जिससे न सिर्फ हमारे निवेशकों का नुकसान हो रहा है, बल्कि यहां रह रहे सैकड़ों परिवारों का जीवन भी प्रभावित हो रहा है। बंसल ने यह भी कहा कि कंपनी जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में पुनः अपील दाखिल करेगी ताकि स्पष्टता लाई जा सके और गैर-विवादित क्षेत्रों में निर्माण फिर से शुरू हो सके।