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भाजपा के 'हाउ' को खा गया जयंत का 'अजगर'

खतौली उपचुनाव में जिंदा हुआ चौ. चरण सिंह का अकाट्य राजनीतिक जातिगत समीकरण, अल्पसंख्यक, जाट, गुर्जर और राजपूतों के साथ ही दलित मतदाताओं में रालोद प्रत्याशी ने लगाई बड़ी सेंध, मतदाताओं ने रखी जयंत चौधरी की 'पर्ची' की लाज, चन्द्रशेखर भी साबित हुए नये सियासी बाज

भाजपा के हाउ को खा गया जयंत का अजगर
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मुजफ्फरनगर। विधानसभा चुनाव में फरवरी में हुए मतदान के बाद मार्च में आये परिणाम के दौरान किसान नेता राकेश टिकैत की 'कोक्को' को लेकर बड़ी बात की गयी। टिकैत को 'कोक्को' को करीब नौ माह पूर्व हुए चुनाव में निगलकर हजम कर जाने वाले भाजपा के 'हाउ' को अब खतौली उपचुनाव में सपा-रालोद गठबंधन की जीत के सामने आये परिणाम के दौरान भाजपा का 'हाउ' रालोद प्रमुख जयंत चौधरी का 'अजगर' निगल गया है। 'कोक्को' के पर करतकर उनको पूरा हजम कर खतौली को भाजपा के गढ़ के रूप में पेश करने वाले भाजपा के 'हाउ' को जयंत चौधरी के दबंग 'अजगर' ने सहमाये रखा। इस चुनाव में जहां भाईचारा मजबूत हुआ, वहीं चौ. चरण सिंह के अकाट्य सियासी समीकरण 'अजगर' को जीवित कर नई रोशनी पैदा की है।

पूर्व प्रधानमंत्री चौ. चरण सिंह को जोड़तोड़ की राजनीति के साथ ही सियासी जातिगत समीकरण साधने में भी माहिर माना जाता रहा है। चरण सिंह की सियासत के लिए जो बात आम चर्चाओं में बनी रही, वो उनका जातिगत समीरण 'अजगर' ही रहा है। अजगर को चरण सिंह की सियासी सफलता के बीच अकाट्य जातीय समीकरण माना जाता था। इसमें अल्पसंख्यक, जाट, गुर्जर और राजपूत जातियों के मतदाताओं का समावेश करते हुए यह 'अजगर' बनाया गया था। चरण सिंह के बाद चौ. अजित सिंह ने भी अपनी राजनीति अपने पिता की विरासत से मिले जातिगत समीकरण 'अजगर' को लेकर ही आगे बढ़ाने का काम किया, लेकिन जातिगत वोट बैंक का बदलाव हुआ तो यह समीकरण कहीं न कहीं बैकफुट पर आ गया। इस चुनाव के दौरान जो परिणाम आज खतौली के मतदान को लेकर सामने आया है, उसने इस 'अजगर' को जिंदा कर नये सियासी संकेत देने का काम किया है। यह अजगर भाजपा के हाउ को खाकर नई बयार लाने का काराण भी बना।


खतौली उपचुनाव में मतगणना के बाद जो परिणाम सामने आया है, उसमें सबसे बड़ी बात यह रही है कि सपा-रालोद गठबंधन ने भाजपा के ही गढ़ में मतदाताओं के बीच सेंध लगाने का काम किया है। रालोद प्रत्याशी के रूप में गठबंधन का हाथ थामकर सियासी मैदान में उतरे मदन भैया ने जयंत की सियासी रणनीति से पूरी बाजी ही पलटकर रख दी। यहां पर सपा-रालोद गठबंधन के परम्परागत वोट बैंक समझे जाने वाले अल्पसंख्यक और जाट मतदाताओं के साथ ही मदन भैया को सजातीय गुर्जर समाज का भरपूर वोट मिला है। इतना ही नहीं राजपूत समाज के बूथों पर भी कमल के साथ साथ नल ने भी भरपूर जोरआजमाइश की और यहां पर भी नल भाजपा के कमल को पानी पिलाते हुए नजर आया है। इस चुनाव में जयंत ने जिस प्रकार से रणनीति अपनाई और भावनात्मक रूप से मतदाताओं के दिल को छूते हुए घर-घर पर्ची बांटी है, उनकी उस पर्ची की लाज मतदाताओं ने भी रखते हुए वोट के रूप में उनको अपने सिर का ताज साबित करने का काम किया है। कुल मिलाकर जयंत का यही 'अजगर' टिकैत की 'कोक्को' को निगलने वाले भाजपा के 'हाउ' को हजम कर गया है।

खतौली में 26 साल पुराना इतिहास दोहराया

मुजफ्फरनगर। खतौली उपचुनाव में जो परिणाम आया, उसने 26 साल पुराना इतिहास दोहराने का काम किया है। यहां भाजपा दूसरी बार जीत की हैट्रिक लगाने से चूकी है। 26 साल पहले भी भाजपा और रालोद के बीच इस सीट पर ऐसा ही सियासी अवसर आया था। इसमें रालोद ने बाजी मार ली थी। साल 1996 में हुए इस चुनाव से पहले इस सीट पर भाजपा ने लगातार 1991 और 1993 के चुनावों में सुधीर बालियान को प्रत्याशी बनाकर दो जीत हासिल की थी। इसके बाद भाजपा ने सुधीर बालियान पर ही विश्वास जताया और उनको तीसरी बार मैदान में उतारा था। राम मंदिर लहर में दो चुनाव भाजपा की प्रचंड जीत वाले रहे, लेकिन 1996 में भाजपा की ताकत यहां कमजोर पड़ी और अजित सिंह की नई पार्टी भारतीय किसान कामगार पार्टी के प्रत्याशी राजपाल बालियान ने यहां पर भाजपा की हैट्रिक के सपने को चकनाचूर कर दिया। इस चुनाव में राजपाल बालियान को 81334 और भाजपा के सुधीर बालियान को 43544 वोट मिले थे। राजपाल 37790 मतों के बड़े अंतर से विधायक बने। अगला चुनाव भी राजपाल बालियान ने रालोद प्रत्याशी के रूप में जीता था




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