undefined

Khatauli - 26 साल पहले रालोद ने रोकी थी भाजपा की हैट्रिक

नौ महीने में दूसरी राजनीतिक संग्राम में जीत की हैट्रिक की सियासी दहलीज पर खड़ी भाजपा, खतौली में विक्रम सैनी के सहारे भाजपा के सामने 26 साल बाद आया हैट्रिक का अवसर, साल 1996 में सुधीर बालियान रालोद प्रत्याशी राजपाल के सामने हारे थे अपना हैट्रिक वाला चुनाव, अब विक्रम सैनी की अप्रत्याशित तीसरी जीत के सामने रालोद के मदन भैया बनकर आए बड़ी चुनौती

Khatauli - 26 साल पहले रालोद ने रोकी थी भाजपा की हैट्रिक
X

मुजफ्फरनगर। कवाल कांड के परिदृश्य में एक अदालती फैसले के कारण साल 2022 के विधासनसभा चुनाव के मात्र नौ माह बाद ही खतौली विधानसभा सीट पर बनी उपचुनाव की सूरत-ए-हाल को एक बार फिर से फैसले में बदलने के लिए सभी की सुन-सुनाकर अब मतदाताओं के मन में भी ईवीएम का बटन दबाने की हलचल करवटें लेते हुए उनको अपना अंतिम निर्णय लेने के लिए तैयार करने लगी है। चुनाव प्रचार के लिए अब करीब 24 घंटों से भी कम समय शेष रह गया है। ऐसे में लोग अब खतौली उपुचनाव की सियासी गरमाहट को मतदान की ताकत से परिणाम में बदलने को तैयार हैं। खतौली सीट पर इस उपचुनाव के कारण भाजपा एक बार फिर जीत की हैट्रिक की दहलीज पर पर पहुंची है, यह दूसरा अवसर है, जबकि भाजपा के लिए इस सीट पर हैट्रिक चांस बना है। 26 साल पहले भाजपा को मिले इस अवसर को भाजपा जीत में बदलने में विफल रही थी, उस सियासी संग्राम में भी भाजपा की हैट्रिक का सपना रालोद ने ही धूमिल किया था और रालोद के राजपाल बालियान विधायक बने थे। तब भाजपा के प्रत्याशी सुधीर बालियान अपना तीसरा चुनाव हारे थे, अब फिर से खतौली में भाजपा की जीत की हैट्रिक के सामने फिर से रालोद चुनौती बना है।



बसपा और कांग्रेस के पीछे हटने और यूपी की मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी के द्वारा रालोद से गठबंधन के कारण समर्थन के कारण खतौली सीट पर हो रही उपचुनाव में शुरूआती दिन से ही सीधा सियासी संग्राम भाजपा और रालोद प्रत्याशियों के बीच ही बना हुआ है। कवाल कांड के एक मुकदमे में सिद्धदोष साबित होने पर कोर्ट से दो साल की सजा पाने के कारण इस सीट पर भाजपा के टिकट पर लगातार दूसरी बार विधायक बने विक्रम सिंह सैनी को अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी। ऐसे में कवाल के बवाल को भुनाने के लिए भाजपा ने उनकी पत्नी पूर्व प्रधान राजकुमारी सैनी को टिकट देकर एक बार फिर से विक्रम सैनी के घर ही विधायकी रखने की भावनात्मक अपील के साथ यह सियासी संग्राम शुरू किया। इसमें रालोद के अध्यक्ष सांसद जयंत चौधरी ने सपा और आजपा के साथ हाथ मिलाकर सूझबूझ के साथ गुर्जर समाज से आने वाले पूर्व विधायक मदन भैया को मैदान में उतार दिया।

खुद ही खतौली में टिककर जनता के बीच माहौल बदलने के लिए वो लगातार प्रयासरत हैं। घर घर पर्ची बांटने निकले जयंत को जो प्यार, दुलार और पुच्कार जनता से मिला, उसने सत्ता पक्ष के खेमे में कहीं न कहीं एक हलचल पैदा की। यही कारण रहा कि इस उपचुनाव में भाजपा ने सरकार और संगठन के तमाम बड़े चेहरों को प्रचार के पथ पर झौंकने का काम किया। सूबे के सीएम, दोनों डिप्टी सीएम, केन्द्रीय मंत्री, राज्यमंत्रियों की फौज, जातिगत मतदाताओं को लुभाने के लिए सजातीय नेताओं और संगठन से प्रदेशाध्यक्ष व क्षेत्रीय अध्यक्ष के साथ ही अन्य पदाधिकारियों का जमावडा यह साबित करता है कि इस सीट को गंवाने के लिए भाजपा तैयार नहीं है। वहीं इतने लंबे लाव लश्कर की चुनौती के बीच जयंत अकेले ही खड़े नजर आ रहे हैं। उनके द्वारा केवल दलित वोटों में सेंधमारी के लिए दलित समाज के बीच एक युवा सनसनी के रूप में लोगों के बीच अक्सर चर्चाओं में रहने वाले आजाद समाज पार्टी के चन्द्रशेखर आजाद को साथ जरूर लिया है।

अब बात खतौली के सियासी इतिहास की करें तो यह सीट अपने वजूद से परिसीमन के पहले चुनाव यानि 2012 तक रालोद की परम्परागत सीट मानी जाती रही है। यहां पर चरण सिंह की राजनीतिक विरासत को हर बार जनता ने स्वीकार किया है। इस सीट पर वैसे तो कांग्रेस, कम्युनिस्ट और बसपा ने भी अपने विधायक दिये तथा भाजपा भी राम मंदिर और मोदी लहर में बेजोड़ प्रदर्शन कर चुकी है, लेकिन रालोद का गढ़ रहने वाली इस सीट पर अब फिर से रालोद के जयंत चौधरी ने अपने बाप-दादा के नाम पर जनता के बीच भावनात्मक रूप से कर्ज के रूप में जीत मांगी है। खतौली सीट ने सरदार सिंह, वीरेन्द्र वर्मा, लक्ष्मण सिंह और हरेन्द्र मलिक जैसे नेताओं को जनता के बीच स्थापित किया। इसी सीट पर विक्रम सैनी लगातार दो जीत दर्ज करने वाले अकेले नेता नहीं है, इससे पहले के चुनावों में पांच बार यह अवसर बना और उनसे पहले लक्ष्मण सिंह, धर्मवीर सिंह, सुधीर बालियान तथा राजपाल बालियान ने लगातार अपने दो दो चुनाव जीते हैं। भाजपा ऐसी अकेली पार्टी है, जिसने एक नहीं दो बार इस सीट पर लगातार दो-दो जीत दर्ज की हैं। इसके अलावा कोई भी पार्टी लगातार दो चुनाव नहीं जीत पाई है। हालांकि चरण सिंह और अजित सिंह की पार्टियों ने भी दो बार लगातार जीत हासिल की है, लेकिन इन जीत में पार्टियों के नाम ही अलग अलग रहे।



आज खतौली में हो रहे हैट्रिक वाले चुनाव की भांति ही 26 साल पहले भी भाजपा और रालोद के बीच इस सीट पर ऐसा ही सियासी अवसर आया था। इसमें रालोद ने बाजी मार ली थी। साल 1996 में हुए इस चुनाव से पहले इस सीट पर भाजपा ने लगातार 1991 और 1993 के चुनावों में सुधीर बालियान को प्रत्याशी बनाकर दो जीत हासिल की थी। इसके बाद भाजपा ने सुधीर बालियान पर ही विश्वास जताया और उनको तीसरी बार मैदान में उतारा था। राम मंदिर लहर में दो चुनाव भाजपा की प्रचंड जीत वाले रहे, लेकिन 1996 में भाजपा की ताकत यहां कमजोर पड़ी और अजित सिंह की नई पार्टी भारतीय किसान कामगार पार्टी के प्रत्याशी राजपाल बालियान ने यहां पर भाजपा की हैट्रिक के सपने को चकनाचूर कर दिया। इस चुनाव में राजपाल बालियान को 81334 और भाजपा के सुधीर बालियान को 43544 वोट मिले थे। राजपाल 37790 मतों के बड़े अंतर से विधायक बने। अगला चुनाव भी राजपाल बालियान ने रालोद प्रत्याशी के रूप में जीता था। इसके बाद भाजपा के लिए इस सीट पर अब 26 साल बाद हैट्रिक वाला चांस बना है। इस बार विक्रम सैनी की दो जीत के बाद भाजपा की तीसरी जीत के सामने रालोद ही चुनौती बनकर खड़ा है। यदि 08 दिसंबर को कवाल के बवाल के नाम पर परिणाम बाहर आया तो खतौली में भाजपा इतिहास रचेगी और यदि रालोद के जयंत चौधरी की घर घर पर्ची बांटने की लाज मतदाताओं ने रखकर चरण सिंह की विरासत को बचाने के नाम पर ईवीएम का बटन दबाया तो 26 साल के बाद चरण सिंह और अजित के नाम पर मतदाता भाजपा के खिलाफ इतिहास दोहराने का काम कर सकते हैं। अब लोगों की निगाह 05 दिसंबर के मतदान के बाद 08 दिसंबर को शहर के नवीन मण्डी स्थल कूकडा में होने वाली मतगणना की टेबिलों से एक बीप के सहारे बहार आने वाले परिणाम पर टिकी है।

शहरी सीट पर कपिल के सहारे भाजपा कर चुकी है तीन जीत दर्ज

मुजफ्फरनगर। भाजपा के लिए अगले कई चुनाव जीत की हैट्रिक वाले ही बन रहे हैं। भाजपा ने शहरी सीट पर कपिल देव अग्रवाल के रूप में जीत की हैट्रिक लगाकर चितरंजन स्वरूप के तीन जीत के रिकार्ड की बराबरी तो कर ली है, लेकिन इसमें उपचुनाव में जीत शामिल है, जबकि चितरंजन ने तीन जीत मुख्य चुनावों में हासिल की हैं। कपिल देव को उनके निधन के बाद फरवरी 2016 में सदर सीट पर हुए चुनाव में भाजपा ने पूर्व चेयरमैन कपिल देव को प्रत्याशी बनाया था। इस चुनाव में कपिल देव ने सपा राज में ही सपा प्रत्याशी और चितरंजन की विरासत के नाम पर मैदान में आये गौरव स्वरूप को शिकस्त दी। इसके बाद उन्होंने 2017 में फिर से गौरव स्वरूप और 2022 में उनके छोटे भाई सौरभ स्वरूप को पराजित करते हुए हैट्रिक लगाई है। शहर सीट पर कपिल देव ही अकेले ऐसे नेता हैं तो जीत की हैट्रिक लगा पाये हैं। चितरंजन तीन बार विधायक रहे, लेकिन उनका समयकाल अलग रहा। इसके बाद भाजपा के लिए आगामी चुनावों में खतौली उपचुनाव, फिर लोगसभा चुनाव 2024 और इसके बाद जिला पंचायत चुनाव भी जीत की हैट्रिक वाली संभावना लेकर आने वाले हैं।

Next Story