मुजफ्फरनगर । अशोक बालियान, चेयरमैन,पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन के संयोजक अशोक बालियान ने किसान आंदोलन में हुई किसानों की मौतों को स्वभाविक बताते हुए लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाया है।
बालियान ने कहा कि किसी भी इंसान की मौत निश्चित रूप से परिवार, समाज के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होती है, इसे किसी रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन किसान आंदोलन में 'स्वभाविक मौतों' पर किसान नेता देश को गुमराह कर रहे है, किसान संगठन जिन करीब 700 मौतों का दावा कर रहे, उनमें ज्यादातार की मृत्यु अधिक उम्र, बीमारी, दुर्घटना और ऐसे ही अन्य कारणों से हुई थी, जबकि वर्ष 2020 में महाराष्ट्र में 2 हजार 567 किसानों ने आत्महत्या की थी, और इस पर किसान संगठनों ने कभी कोई सवाल नहीं उठाया है।
उन्होंने कहा कि देश में तीन कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब के किसान संगठनों द्वारा द्वारा शुरु किये गये इतने लंबे किसान आंदोलन के दौरान कभी गोली नहीं चली, कभी पुलिस ने लाठियां नहीं बरसाईं थी। 26 जनवरी को दिल्ली में किसान ट्रैक्टर परेड के दौरान तथाकथित किसानों का जो मंजर सामने आया उसकी तस्वीरें और विडियो वायरल हुईं थी, तो आम जनता में भी प्रदर्शनकारियों के प्रति गुस्सा व्याप्त हो गया था। जब सरकार के ओर से कोई किसानों के खिलाफ कोई एक्शन ही नहीं लिया गया, तो 700 से से ज्यादा किसान आंदोलन में कैसे मारे गए? यह समझ से परे है। सवाल और भी कई उठें, सवाल यह है कि इस आंदोलन से किसानों को हासिल क्या हुआ? किसान नेताओं को आत्ममंथन करना चाहिए कि कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए हुए इस आंदोलन से आखिरकार किसे फायदा हुआ? हमारी संस्था पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन का मानना है कि देश में मोदी सरकार ने कृषि में सुधार की हिम्मत की थी और इन कानूनों के वापिस होने से किसान बहुत बड़े लाभों से वंचित हो गये है।
पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने इन मौतों की प्रकृति के बारे में पता लगाया है, और 700 किसानों की मौत की पड़ताल की थी। यह तथ्य सामने आया है कि किसी भी किसान प्रदर्शनकारी की मौत पुलिस कार्रवाई में नहीं हुई। संस्था की जानकारी में यह भी आया है कि ये सारी मौते सीधे तौर पर विरोध-प्रदर्शन से जुड़ी नहीं है। कुछ मौतें संदिग्ध आत्महत्या थी, तो कुछेक कोरोना संक्रमण से जुड़ी थी। उससे साफ जाहिर है कि जिन 700 मौतों को किसानों के विरोध-प्रदर्शन से जोड़कर सामने रखा जा रहा है, उनमें कितनी सत्यता है? ऐसे में सवाल यह भी है कि दुर्घटना में मौत को कैसे किसानों के विरोध-प्रदर्शन से जोड़ा जा सकता है? किसान आंदोलन में 'स्वभाविक मौतों' का सियासी तमाशा बनाना, अपने स्वार्थ में राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश करना है। इस सूची में 3 ऐसे लोगों का भी जिक्र है जिनकी हत्या हुई। लेकिन उस दलित सिख लखबीर सिंह का नाम नहीं है, जिसकी हत्या कुंडली बॉर्डर पर अक्टूबर 2021 में निहंग सिखों ने बेरहमी से कर दी थी। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी ज़िले में विरोध प्रदर्शन के दौरान चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत पर सुप्रीमकोर्ट के आदेश पर जाँच चल रही है और उसमे आरोपी जेल में है। इसमें दोनों तरफ से आरोपी है और यह घटना बहुत दुखद थी।
पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन का मानना है कि मौत हमेशा दुर्भाग्यपूर्ण होती है, लेकिन किसी की मृत्यु का इस्तेमाल राजनीतिक फायदे के लिए करना बिलकुल गलत है। हमारी राय में कुछ किसान संगठन और वामपंथी झुकाव वाले मीडिया संस्थान ये प्रोपेगेंडा केंद्र सरकार की छवि धूमिल करने की नीयत से कर रहे हैं।