जनता के वोट से मजबूत हुआ भाईचारे का ताना-बाना

कवाल के बवाल को दरकिनार कर खेती और किसानी के मुद्दे पर पड़ा वोट, दंगों की कडुवाहट पर सौहार्द्र की चोट, नफरत की राजनीति के कीचड़ में खिला भाईचारे का कमल, सौहार्द्र का गंगाजल छिड़कने को खूब चला नल

Update: 2022-12-08 13:33 GMT

मुजफ्फरनगर। कवाल के बवाल के परिदृश्य में खतौली विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में गठबंधन की जीत ने साबित कर दिया है कि अब जनता भाजपा को केवल मोदी-योगी के नाम पर सरकार बनाने के लिए तो वोट कर सकती है, लेकिन सरकार सुरक्षित है तो दूसरे चुनावों में भाजपा के लिए मतदाता अपनी पसंद को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं। ऐसा ही कुछ परिणाम खतौली सीट पर आया है। फरवरी 2022 के चुनाव में लाख विरोध के बावजूद और नाराजगी के चलते भी खतौली की जनता ने दूसरी बार भी बड़बोले विधायक के रूप में सुप्रसि( रहने वाले विक्रम सैनी की झोली को भरपूर मतों से भरकर विधानसभा भेजा था, क्योंकि सवाल यूपी में भाजपा की सरकार को बचाने का था। उस समय प्रत्याशी नहीं मोदी योगी के नाम पर वोट दिया गया था, लेकिन उपचुनाव में सरकार को कोई खतरा ना देखकर मतदाताओं ने 'सबक' सिखाने का निर्णय करते हुए अप्रत्याशित जनादेश देकर यहां कवाल के बवाल के नाम पर होती नफरत की राजनीति को दफन कर भाईचारे को मजबूती का इशारा दिया है। मदन भैया को मिले हर एक वोट ने भाईचारे के ताने बाने को ताकत देने का काम किया है।

साल 2013 में हुए कवाल कांड के दौरान मारे गये सचिन-गौरव और शाहनवाज को लेकर बवाल मचा और इन दंगों ने ना जाने कितने बेकसूर लोगों को घर से बेघर करने के साथ ही मौत की नींद सुला दिया था। इन दंगों में 60 से ज्यादा लोगों की मौत हुई और करीब 50 हजार लोग बेघर होकर अपने ही जिले में शरणार्थी बन गये थे। इसके बाद से ही रालोद प्रमुख चौ. अजित सिंह ने इस जिले के साथ ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में छिन्न भिन्न हुए भाईचारे को समेटने का काम शुरू किया था, जिसको जयंत चौधरी लगातार आगे बढ़ाते रहे।

खतौली उपचुनाव में जयंत ने भाईचारा का संदेश दिया और नफरत की राजनीति के खिलाफ वोट करने की अपील लेकर वो घर घर गये। उन्होंने खेती और किसानी की मुद्दे पर वोट करने के लिए अपना चुनाव प्रचार लगातार जारी रखा। चुनाव परिणाम साबित करते हैं कि खेती और किसानी के मुद्दे पर ही जनता ने वोट किया और दंगों की कडुवाहट पर सौहार्द्र की चोट ने नयी सियासत के दरवाजे खोलने का काम किया है। इस चुनाव में भाजपा का प्रचार लगातार कवाल, दंगों और कांधला कैराना के पलायन कोा लेकर बना रहा, लेकिन जनता ने भाजपा के इस प्रचार को पूरी तरह से नकार दिया है। लोगों ने जो जनादेश दिया, उससे साफ है कि कवाल कांड में मारे गये गौरव और सचिन के नाम पर वोट नहीं डाला गया, क्योंकि इस चुनाव मैदान में भाजपा के खिलाफ हुंकार भरकर उतरीं गौरव की मां को 146 वोट ही मिले हैं। हालांकि 30 नवम्बर की रैली में मुख्यमंत्री के समक्ष गौरव के पिता ने भाजपा प्रत्याशी को समर्थन का ऐलान किया था। इससे साफ है कि कवाल का बवाल जनता भुला चुकी है और जनादेश को समझे तो भाजपा को भी अब इसे भूलना चाहिए। इन चुनाव परिणाम ने साबित किया है कवाल को लेकर कमोबेश हर चुनाव में की जाने वाली नफरत की राजनीति की कीचड़ में भाईचारे का कमल रालोद-सपा गठबंधन के प्रत्याशी मदन भैया के नल से निकले जीत के गंगाजल का सहारा पाकर खूब खिला है।

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