गुदड़ी के लाल-मुजफ्फरनगर के नये सिटी मजिस्ट्रेट पंकज प्रकाश राठौर
संकट, चुनौती और संघर्ष से भरा रहा है पंकज का जीवन, शादी के बाद सिविल सर्विस में आये;
मुजफ्फरनगर। पीसीएस पंकज प्रकाश राठौर को शासन ने प्रमोट करते हुए मुजफ्फरनगर जनपद में नया सिटी मजिस्ट्रेट बनाया है। वो मेरठ में एसीएम द्वितीय के पद पर कार्यरत थे। पंकज प्रकाश राठौर का जीवन आर्थिक संकट, चुनौती और संघर्ष से भरी पूरी कहानी रहा है। उनका पीसीएस सेवा में चयन भी एक कुछ कर गुजरने की जिद का फल रहा। शादी के बाद वो तैयारी में जुटे और बेटी के मायूस चेहरे से मिलती रही प्रेरणा ने उनको आज इस मुकाम तक पहंुचाया है। वो संघर्षशील पुत्र, जिम्मेदार पति और आदर्श पिता होने के साथ ही एक संवेदनशील प्रशासनिक अधिकारी हैं।
उत्तर प्रदेश शासन द्वारा शुक्रवार को पीसीएस अफसरों का तबादला किया गया। इसी कड़ी में मुजफ्फरनगर में तैनात सिटी मजिस्ट्रेट विकास कश्यप को प्रोन्नत करते हुए गाजियाबाद में एडीएम सिटी बनाया गया तो उनके स्थान पर मेरठ में एसीएम द्वितीय के पद पर कार्यरत पंकज प्रकाश राठौर को प्रमोट करते हुए मुजफ्फरनगर भेजा गया।
पंकज प्रकाश राठौर मूल रूप से लखीमपुर खीरी जनपद में लखीमपुर के निवासी हैं। उन्होने पीसीएस-2016 की परीक्षा में 20वीं रैंक हासिल कर संघर्ष से सफलता का परचम लहराते हुए युवाओं को प्रेरित किया। साल 2019 बैच के पीसीएस अफसर के रूप में आज उनकी पहचान होती है। प्रशिक्षण के उपरांत पंकज राठौर को सितम्बर 2019 में सीतापुर जनपद में डिप्टी कलक्टर के रूप में तैनात किया गया। यहां पर वो करीब सवा तीन साल कार्यरत रहे और एसडीएम महोली व एसडीएम सिधौली के पद पर काम करते हुए अपनी एक खास पहचान बनाई। सीतापुर से उनको शासन ने नवम्बर 2022 में मेरठ जनपद में डिप्टी कलक्टर के पद पर तैनात किया। यहां उनके द्वारा एसडीएम सरधना और एसीएम ब्रह्मपुरी तथा एसीएम द्वितीय मुख्यालय के पद पर कार्य किया। मेरठ में भी पंकज राठौर ने करीब ढाई साल का कार्यकाल पूर्ण किया। शनिवार को मेरठ से उन्होंने चार्ज छोड़ दिया है। अब सोमवार को वो मुजफ्फरनगर जनपद में सिटी मजिस्ट्रेट के पद पर चार्ज लेने की तैयारी में जुटे हुए हैं।
पिता की चाहत-सरकारी नौकरी में जाना है
पंकज राठौर के पिता सिंचाई विभाग में कार्यरत रहे। उन्होंने 2003 में लखीमपुर के राजकीय विद्यालय से 12वीं की। इसके बाद बीटेक किया और इंजीनियर बनने का सपना पूर्ण हो गया, उनके द्वारा करीब पांच साल तक सेंटर प्लांट में प्राइवेट नौकरी की। इसी बीच उनकी शादी हो गई और एक बेटी ने जन्म लिया। पिता ने हमेशा ही पंकज को सरकारी नौकरी के लिए प्रेरित किया। उनको कक्षा आठवीं से ही वो सरकारी नौकरियों में आवेदन कराने में जुटे रहे। रेलवे में भर्ती निकली तो पिता के आदेश पर वो फार्म भरने के लिए इलाहाबाद पहुंचे, जहां सिविल सर्विस की तैयारी के लिए कोचिंग के विज्ञापन देखकर उनमें एक नई जिज्ञासा ने जन्म लिया। इसके साथ ही सिविल सर्विसेज की तैयारी भी शुरू कर दी। पंकज ने जहां से तैयारी के लिए कोचिंग की, वहीं पढ़ाया भी। पंकज बताते हैं कि रिजल्ट आने से सबसे पहले उन्होंने अपने पिता से फोन पर बात की और भावुक होकर रो पड़े।
अखबार का फोटो देखकर मां ने जताई इच्छा
पंकज राठौर की माता साधारण गृहणी हैं। एक दिन पंकज की मां ने एक अखबार में ऐसा फोटो देखा, जिसने पंकज को सिविल सर्विस तक पहंुचाया। इस फोटो में एक युवक जोकि सिविल सर्विस में चयनित हुआ था, अपनी मां के पैर छू रहा था। मां ने पंकज को बुलाकर कहा कि मुझे तुमसे यही चाहिए और आखिरकार गुदड़ी के इस लाल ने अपनी मां का वो सपना पूरा किया, मां के साथ उनका फोटो भी उसी तरह अखबार में छपा। इस उपलब्धि तक पहंुचने के लिए पंकज ने कुछ खोया तो बहुत कुछ पाया। शादी के बाद तैयारी आसान नहीं थी, सबसे बड़ी परेशानी आर्थिक चुनौतियां बनी, लेकिन पिता, मां और पत्नी ने भरपूर साथ दिया। मां के गहने बिक गये, पत्नी ने इच्छाओं को मार दिया। अब पंकज के दो बेटियां हैं।
बेटी को नहीं दिला पाये मेले से खिलौना
पंकज राठौर के संघर्ष भरे जीवन को लेकर इंटरनेट की दुनिया में एक ही प्रेरणादायक पहलू खूब वायरल है। इसमें उनका वो इंटरव्यू भी शामिल है, जिसमें वो पीसीएस अफसर बनने की उस गंभीर प्रेरणा को बेहिचक साझा कर रहे हैं, जो अंत तक उनको प्रेरित करती रही। पंकज के अनुसार जब वो कोचिंग कर रहे थे, तो लखीमपुर में प्रसि( मेले के दौरान छुट्टी पर घर आये। उनकी बड़ी बेटी जो उस समय करीब तीन-चार साल की थी, ने मेले में घूमने की इच्छा की तो आर्थिक संकट के कारण बेटी से वचन लिया कि वो मेले में जाकर खिलौना लेने की जिद नहीं करेगी। वो पत्नी और बेटी के साथ मेले में गये, लेकिन न तो झूला ही झुलाया और न ही कोई खिलौना दिलाया। जब लौटने लगे तो पत्नी ने बेटी ने पूछा कि कुछ लेना तो नहीं है, बेटी ने इंकार में गर्दन हिलाई लेकिन उस क्षण बेटी के चेहरे पर जो मायूसी थी, वो ही उनकी प्रेरणा बनी और वो पीसीएस परीक्षा क्रेक कर पाये।