यौमे आशुरा पर निकले ताजिये-हुसैन तेरी शहादत पर आसमां भी रोया
मोहर्रम पर करबला के शहीदों के गम में डूबा मुजफ्फरनगर, शिया समुदाय ने मातमी जुलूसों में पेश की अकीदत की मिसाल;
मुजफ्फरनगर। यौमे आशूरा के मौके पर रविवार को शहर और जिले भर में मोहर्रम का पर्व गमगीन माहौल में मनाया गया। शिया समुदाय के सोगवारों ने या हुसैन, या हुसैन की सदाओं के साथ मातमी जुलूस निकाले और कर्बला के शहीदों को खिराज-ए-अकीदत पेश की। बारिश के बीच ही शिया सोगवामर ने मातमपुर्सी की और हजरत इमाम हुसैन व उनकी जांनिसारों की शहादत पर आसमां भी रोता नजर आया।
सुबह से ही इमामबाड़ों में मजलिसों का सिलसिला शुरू हो गया था। नदी स्थित कर्बला में मौलाना फसीह हैदर जैदी ने रोजा-ए-आशूरा के आमाल अंजाम दिए। मोती महल इमामबाड़े में हुई बड़ी मजलिस में मौलाना ने तकरीर करते हुए कहा कि हजरत इमाम हुसैन अलै. ने अपने 72 जांनिसारों के साथ मिलकर इंसानियत और दीन की हिफाजत के लिए कर्बला के मैदान में शहादत दी। उन्होंने कहा कि यजीद आज इतिहास में गुमनाम है, लेकिन इमाम हुसैन का परचम कयामत तक बुलंद रहेगा।
जगह-जगह जंजीरों और छुरियों का मातम कर सोगवारों ने अपने आप को लहूलुहान किया। फाके और नोहाख्वानी के साथ अजादारों ने शहीद-ए-कर्बला को याद किया। गली-कूचों में सबीलें लगाई गईं और घरों में न्याज़ व फातिहा का आयोजन किया गया। मोहर्रम का मुख्य जुलूस मोती महल से निकला, जो कदीमी रास्तों से होते हुए सर्राफा बाजार चौक पहुंचा। यहां विभिन्न इमामबाड़ों से आए ताजिये, अलम और जुलजुना एकजुट हुए। हजारों की तादाद में शिया सोगवार जुलूस में शामिल रहे। हनुमान चौक पर मातमी अजादारों ने नोहाख्वानी और कमा का मातम किया। इसके बाद जुलूस काली नदी स्थित कर्बला पहुंचा, जहां ताजियों को दफन कर फाका शिकनी की गई।
शाम को इमामबाड़ा यादगारे हुसैनी में ‘शाम-ए-गरीबा’ की मजलिस बरपा हुई। वहीं मोती महल से निकले मशाल जुलूस ने हाय सकीना, हाय प्यास की गूंज के साथ गढ़ी गोरवान तक का सफर तय किया। जुलूस में मंजर अब्बास जैदी उर्फ जुबी, कैसर हुसैन, नुसरत हुसैन, हसन नवाज, हसन जैदी, रौनक जैदी उर्फ राजू भाई, लारेब जैदी, मोहम्मद अली, शादाब जैदी सहित सैकड़ों अजादार शामिल रहे।