संजीव जीते या हरेन्द्र, ये जनादेश रचेगा इतिहास
25 साल के बाद आया ऐसा संयोग, भाजपा प्रत्याशी की जीत की हैट्रिक के सामने एक बार फिर हरेन्द्र का अडंगा;
मुजफ्फरनगर। 45 दिन पहले अपना वोट ईवीएम की बीप के साथ इलेक्ट्रानिक डिवाइस में कैद करने के बाद सियासी परिणाम का इंतजार करने वाले मतदाताओं ने अब चार जून के दिन पर टकटकी लगा दी है। उनका यह लंबा इंतजार अब कई बहस के बाद परिणाम तक पहुंचने वाला है। संगीनों के साये में कैद ईवीएम कूकड़ा मंडी के मतगणना स्थल पर आकर परिणाम उलगने को तैयार हैं। ऐसे में इस बार के चुनाव से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों और ऐतिहासिक अवसरों से हम आपको रूबरू कराने जा रहे हैं। जी हां! 18वीं लोकसभा के गठन के लिए हुआ यह चुनाव अपने परिणाम के साथ देश और प्रदेश ही नहीं बल्कि मुजफ्फरनगर सीट पर भी एक ऐसा इतिहास रचने जा रहा है, जो 25 साल पहले हुई सियासी जंग में अधूरा ही रह गया था। ढाई दशक के बाद मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर ये ऐतिहासिक मोड़ आया है। इस सीट के लिए भाजपा के सामने एक बार फिर हरेन्द्र मलिक की चुनौती है। हरेन्द्र मलिक ने 25 साल पहले 1999 के चुनाव में भाजपा के लगातार दो बार से निर्वाचित सासंद सोहनवीर सिंह की जीत के हैट्रिक चांस को ‘न खेल्लूं और न खेल्लन दूं’ जैसी स्थिति पैदा करते हुए धूमिल करने का काम किया था। इसके ढाई दशक के बाद अब 2024 में ऐसी ही परिस्थिति बन रही हैं। भाजपा प्रत्याशी संजीव बालियान लगातार तीसरी बार चुनाव मैदान में उतरे तो भाजपा प्रत्याशी के हैट्रिक चांस के सामने एक बार फिर हरेन्द्र मलिक तगड़ा मुकाबला पेश करते नजर आ रहे हैं।
मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट की देश की राजनीति में अहम भूमिका रही है। इस सीट के सियासी परिदृश्य में कई मिथक जुड़े हुए हैं। जीत और हार को लेकर कई बड़े इतिहास भी बने हैं। इस सीट से भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चै. चरण सिंह भी चुनाव लड़े तो यहा से मुफ्ती मौहम्मद सईद ने चुनाव लड़कर गृहमंत्री की भूमिका निभाई। कांग्रेसी दौर खत्म होने के बाद इस सीट पर जाट और मुस्लिम नेताओं का ही कब्जा रहा है। इस सीट पर जीत और हार को लेकर एक मिथक यह भी है कि आजादी के बाद से आज तक कोई भी प्रत्याशी यहां हैट्रिक नहीं लगा सका है। हालांकि तीन बार ऐसे अवसर आये, जिनमें इस सीट से लगातार दो दो बार एक ही व्यक्ति सांसद बना है। 1957 और 1962 में कांग्रेस के सुमत प्रसाद जैन दो बार जीते, 1996 और 1998 में भाजपा के टिकट पर सोहनवीर सिंह दो ही बार जीते। तीसरी बार वो चुनाव हार गये थे। 2014 और 2019 में भाजपा से मौजूदा सांसद संजीव बालियान जीते हैं। वह इस बार भी भाजपा के प्रत्याशी हैं।
संजीव बालियान के सामने अपनी जीत की हैट्रिक लगाने का एक बड़ा अवसर है। यह अवसर भाजपा के लिए भी ऐतिहासिक है, क्योंकि भाजपा के सामने अपने प्रत्याशी की हैट्रिक का चांस 25 साल के बाद आया है। इससे पहले साल 1999 में ऐसा ही संयोग बना था। इस चुनाव में भाजपा ने लगातार दो बार से सांसद सोहनवीर सिंह को तीसरी बार भी टिकट दिया था। इस चुनाव में जीत और हार को एक बड़ा उलटफेर हुआ था। बसपा और सपा प्रत्याशी के साथ ही रालोद का कांग्रेस से गठबंधन भाजपा प्रत्याशी के हैट्रिक चांस को धूमिल करने का कारण बना था।
साल 1999 के चुनाव में रालोद के साथ मिलकर कांग्रेस ने मुजफ्फरनगर संसदीय क्षेत्र से सईदुज्जमा को अपना प्रत्याशी बनाया था। सइदुज्जमा पूर्व में उत्तर प्रदेश सरकार में गृह राज्य मंत्री रह चुके थे। उनके पिता सईद मुर्तजा 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर इस सीट से सांसद निर्वाचित हो चुके थे, तो उनके सामने भाजपा के लगातार दो बार से सांसद सोहनवीर सिंह, बसपा से राजपाल सैनी और सपा से हरेन्द्र मलिक के रूप में बड़ी चुनौतियां भी थीं। चुनाव प्रचार शुरू हुआ तो कोई भी राजनीतिक पंडित यह मानने को तैयार नहीं था कि सोहनवीर सिंह हैट्रिक नहीं लगा पायेंगे। या फिर यहां से सईदुज्जमा सांसद निर्वाचित हो सकते हैं। चुनाव परिणाम आया तो सभी चैंक गये थे। सईदुज्जमा चुनाव जीते और सांसद बने। यहां भाजपा प्रत्याशी के हैट्रिक चांस का गुड गोबर करने में यूं तो कई फैक्टर सामने आये और लोगों ने अलग अलग कारण तय किये, लेकिन 25751 मतों के अंतर से पराजित हुए भाजपा के सोहनवीर सिंह की हार में सपा के हरेन्द्र मलिक का अडंगा भी प्रमुख कारण रहा। हरेन्द्र मलिक ने भाजपा के लिए आये इस स्वर्णिम अवसर को हार की कसक में बदल दिया था। इसमें बसपा प्रत्याशी राजपाल सैनी की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही थी। इस चुनाव में जनपद के 1217407 मतदाताओं में से 56.80 यानि 691547 ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। सईदुज्जमा ने इस चुनाव 196669 वोट प्राप्त किये। भाजपा के सोहनवीर सिंह को 170918 वोट मिले थे, बसपा के राजपाल सैनी को 163721 तथा सपा के हरेन्द्र मलिक को 112499 वोट मिले थे।
इस चुनाव को आज भी याद किया जाता है। इस बार 2024 की सियासी जंग में मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर 25 साल पुराने सोहनवीर सिंह के चुनाव जैसी ही परिस्थितियां बनी नजर आ रही है। यहां पर भाजपा और सपा प्रत्याशियों की जीत और हार में बसपा प्रत्याशी के परिणाम अहम हो सकते हैं। कुल मिलाकर यही कहा जा रहा है कि संजीव बालियान जीते या हरेन्द्र मलिक, यह चुनाव चार जून को आ रहे जनादेश के साथ एक बड़ा इतिहास रचने जा रहा है।